Tuesday, October 10, 2017

कश्मीर की कहानी


सन् 1947 मे जब भारत और पाकिस्तान देश आजाद हुए थे । तब जम्मू और कश्मीर देश की सबसे बडी रियासत थी । इसके दो हिस्से थे । पहला भाग जम्मू और दूसरा भाग कश्मीर था ।
और इस रियासत का राजा हरिसिंह था ।
जो एक कट्टर हिन्दूवादी राजा था । वे अधिकतर जम्मू मे रहते थे । कश्मीर मे मुस्लिम और जम्मू मे हिन्दुओं का बाहुल्य था । जम्मू और कश्मीर दोनो प्रान्तो के बीच मे हिमालय पर्वत था ।
इसलिए स्वतंत्रता से पहले राजा हरीशिंह को जम्मू से कश्मीर जाने के लिए पाकिस्तान के रास्ते से जाना होता था । यह जम्मू से कश्मीर जाने का एक ही रास्ता था । जो रास्ता  पंजाब से पाकिस्तान मे होते हुए कश्मीर को जाता था । राजा हरि सिंह ने सोचा कि यदि जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाया जाता है  तो जम्मू की हिन्दू जनता के साथ अन्याय होगा और यदि भारत में मिलाया जाता है तो कश्मीर की मुस्लिम जनता के साथ अन्याय होगा । इसलिए उसने अपनी रियासत जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र रखने का निर्णय लिया किंतु हरि सिंह के इस तरह के निर्णय से पाकिस्तान संतुष्ट नहीं हुआ क्योंकि पाकिस्तान कश्मीर को अपने अधिकार में लेना चाहता था । इसलिए पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर 1947 को कवाइली लुटेरो के भेष में  पाकिस्तानी सैनिकों को कश्मीर पर हमला करने भेज दिया । ये कश्मीर मे आकर गैर मुश्लिम लोगो की हत्या और लूटपाट का कोहराम मचाने लगे । इस समय राजा हरीसिंह कश्मीर मे ही थे । ऐसी हालत को देखकर राजा हरिसिंह 23 अक्टूबर  1947 को कश्मीर से भागकर जम्मू आए और जम्मू से सेना का एक भारी दल लेकर कश्मीर की ओर चल दिये । लेकिन हरी सिंह के भागकर जम्मू आते ही  पाकिस्तान ने कश्मीर जाने वाले रास्ते पर अपनी सेना तैनात करके उसे रोक दिया 
हिमालय की पहाड़ी पार करके कश्मीर पहुंचना असंभव था । ऐसे समय में उसने ऐलान कर दिया "हम पाकिस्तान से कश्मीर को हार गए" । भारत से मदत लेने के अलावा अब उसके पास दूसरा रास्त नहीं बचा था । ऐसे समय मे हरिसिंह अपनी रियासत को बचाने के लिए भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु
से संधि करने के लिए दिल्ली पहुंचा । और नेहरू को पाकिस्तान की करतूतों के बारे में अवगत कराया । लेकिन पहले तो नेहरू जी ने हरीसिंह को सैनिक सहायता देने से उसी प्रकार मना कर दिया । जिस प्रकार हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर रियासत को भारत में विलय करने से मना कर दिया था । इसके अलावा नेहरू जी की पाकिस्तान के गवर्नर मुहम्मद अली जिन्ना 
से अच्छी दोस्ती थी । उन्हे जिन्ना पर विश्वास था । कि जिन्ना कुछ गलत नहीं करेगा । लेकिन जब नेहरू जी को जिन्ना के खूनी खेल की करतूतों के बारे पता चला तो नेहरू जी दंग रह गए । और हरीसिंह की मदत मे आगे खडे हो गए । आखिरकार 26 अक्टूबर 1947 को नेहरु और हरिसिंह के बीच एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए । जिसमे हरिसिंह ने नेहरु जी से एक शर्त रखी कि रक्षा , विदेशी मामले और संचार को छोडकर और सभी शक्तियां राज्य के पास ही रहेंगी । जम्मू कश्मीर का अपना अलग संविधान होगा । भारत का संविधान जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होगा । तो जवाहर लाल नेहरू ने यह स्वीकार कर लिया । और तुरंत हवाई जहाजों से भारत की सेना को श्रीनगर पहुंचाया । किंतु तब तक पाकिस्तान के कवाइली लुटेरों के भेष मे पाकिस्तानी सैनिक श्रीनगर से 25 मील दूर बारामूला तक खून की होली खेलते हुए आ गए । भारतीय सेना ने वहां पहुंचते ही घमासान युद्ध शुरू कर दिया । भारतीय सेना सीघ्रता से पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा छीने गए क्षेत्र को पुन: प्राप्त करने के लिए कवाइली लुटेरों को पीछे धकेलती  गई और लाहोर तक की पाकिस्तान की जमीन पर कब्जा कर लिया  । लेकिन तब तक दिसम्बर का महीना आ गया । और वहां बहुत अधिक बर्फीली शर्दी बढ़ गई । हमारे सैनिक वहां पर बर्फीली शर्दी को सहन नहीं कर पा रहे थे । क्योंकि उन्होंने इतनी अधिक सर्दी को कभी नहीं देखा था अधिक सर्दी के मारे  वे निमोनिया  भुखार का शिकार होने लगे कुछ सैनिकों के पैर बर्फ मे गलकर सड़ने लगे । इसका फायदा उठाकर कवाइली लुटेरे भारतीय सैनिकों पर हावी हो गए । और एक बार फिर श्रीनगर की ओर आने बढ़ने लगे । अब नेहरु जी ने 31 दिसम्बर 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ में शिकायत की कि पाकिस्तान में भारत के एक अंग कश्मीर पर हमला कर दिया है । इससे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का खतरा पैदा हो गया है । संयुक्त राष्ट्र संघ से 21 जनवरी 1948 को आदेश आया कि जो सैनिक जहां खड़े हैं वहीं पर खड़े रह जाए । दोनों देशों में से किसी भी देश का सैनिक आगे बढ़ने की चेष्टा ना करे । संयुक्त राष्ट्र संघ आपके इस मुद्दे को सुलझाएगा । तुरंत ही संयुक्त राष्ट्र संघ से 4 व्येक्तियों का एक संगठन भारत में भेजा गया । जिसने भारत में स्थिति का अवलोकन करके जो सैनिक जहां खड़े थे वहां पर युद्ध को रोककर एक 740 किलो मीटर लम्बी नियंत्रण रेखा खींच दी । जिसे जंग रोकने वाली LOC रेखा कहा गया । LOC रेखा का मतलब होता है लाइन ऑफ कंट्रोल रेखा ।  फिर उन्होंने  संयुक्त राष्ट्र संघ में जाकर फैसला सुनाया कि जम्मू को भारत मे मिलाया जाए । पाकिस्तान अपनी सेना के कवाइली जनजाति के लोगों को POK से हटाए क्योंकि वे कश्मीर के निवासी नहीं है । और भारत कश्मीर के लोगों के साथ मिलकर जनमत करवाएं । कि वह लोग किसके साथ रहना पसंद करेंगे । यदि कश्मीर की जनता को भारत मंजूर होगा तभी कश्मीर भारत में मिलाया जाएगा । 1 फरवरी सन 1949 को दोनों देश इस फैसले पर सहमत हो गए । नेहरू जी ने कहा जम्मू मे हिंदुओं का बाहुल्य है । इसलिए जम्मू पर तो भारत का अधिकार होगा । लेकिन रही बात कश्मीर की तो कश्मीर की जनता  स्वयं जनमत के आधार पर यह तय करेगी कि वे किसके साथ रहना चाहते हैं जो जनता फैसला करेगी वह हमें मंजूर होगा । इसमें हमारी कोई आपत्ति नहीं होगी । अब संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर मे जनमत करवाने के लिए एक अमेरिकी अधिकारी नियुक्त किया । उसने कश्मीर में जाकर लोगों से जनमत संग्रह के आधार पर चर्चाएं की । किंतु वह नागरिक इसका कोई अर्थ नहीं निकाल सका । तो उसने अपने पद से इस्तीफा दे दिया  । LOC रेखा से कश्मीर का आधा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया 
। उस हिस्से को भारतीयों ने POK (पाक अधिकृत कश्मीर) क्षेत्र और पाकिस्तानियों ने आजाद कश्मीर नाम दिया । लेकिन नेहरू जी ने LOC रेखा को अपने देश की सीमा नहीं माना । उन्होंने जहां तक राजा हरि सिंह का शासन था । वहां तक अपने देश की सीमा को माना । क्योंकि राजा हरि सिंह अपनी पूरी रियासत भारत में विलय कर चुके थे । इस प्रकार उनकी पूरी रियासत पर भारत का अधिकार था । तो नेहरु जी ने जहां तक राजा हरि सिंह का शासन था । वहां तक अपने देश की सीमा को माना । नेहरू जी ने रैडक्लिफ रेखा को भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा माना । इसके बाद जवाहरलाल नेहरु ने कश्मीर पहुंचने के लिए हिमालय की पहाडियों को चीरकर उसके बीच मे से  एक सुरंग का निर्माण करवाया । जिसे जवाहर सुरंग नाम दिया । यह सुरंग भारत की सबसे बडी सुरंग है इसकी लम्बाई 2.85  किलो मीटर है । जो जम्मू से पहाड़ों के बीच मे से निकलकर सीधे कश्मीर पहुंचती है । जवाहरलाल नेहरू जनमत संग्रह की अपनी वचनबद्धता का पालन करना चाहते थे परंतु पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ की शर्तों का उल्लंघन करते हुए POK से कवाइली लोगो को नहीं हटाया । तो ऐसी स्थिति में भारत सरकार ने भी जनमत संग्रह करने से इंकार कर दिया । पाकिस्तान चाहता था कि कश्मीर पर सिर्फ और सिर्फ हमारा हक है । इसके लिए पाकिस्तान ने संसार के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका से दोस्ती करके अपना पक्ष मजबूत कर लिया । 1954 में पाकिस्तान अमेरिका से दोस्ती करके सेंट्रो नामक संगठन का सदस्य बन गया । उधर भारत ने भी  अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सोवियत संघ से मित्रता कर ली । सोवियत संघ भारत की मदद करने के लिए आगे आ गया । इसी बीच राजा हरी सिंह ने पाकिस्तान की काली करतूतों के डर से अपनी रियासत को जम्मू कश्मीर के सर्वोपरि जन हितैसी नेता शेख अब्दुल्ला
 
को सोंप दिया । जवाहर लाल नेहरु ने शेख अब्दुल्ला को बुलाया और कहा  कि अब्दुल्ला महोदय डॉ.भीमराव अम्बेडकर
 भारत का संविधान तैयार कर रहे है । तुम डॉ.भीमराव अंबेडकर के यहां जाकर उनसे मिलो । और जम्मू कश्मीर के लिए अपनी इच्छा के अनुसार एक ड्राफ्ट तैयार करके उन्हें दे दो । ताकि वे उसे संविधान में जोड़ दें । नेहरु जी के कहने के बाद से शेख अब्दुला डॉ. भीमराव अंबेडकर के यहां पहुंचा । और उसने कहा मुझे नेहरु जी ने आपके पास जम्मू-कश्मीर के संविधान की शर्तों को भारतीय संविधान में जोड़ने के लिए भेजा है । डॉ.अंबेडकर ने शेख अब्दुल्ला की सारी बात ध्यान से सुनी और कहा मैं देश का कानून मंत्री हूं । तुम चाहते हो कि कश्मीर के निवासियों को पूरे भारत देश में समान अधिकार मिले । लेकिन भारत और भारतीयों को तुम जम्मू कश्मीर में कोई अधिकार नहीं देना चाहते हो । मैं देश के साथ इस तरह की धोखाधड़ी और गद्दारी नहीं करुंगा । जब अंबेडकर ने शेख को फटकार लगा दी तो वह वापस नेहरू जी के पास गया । फिर नेहरु जी ने गोपाल स्वामी आयंगर 
को बुलाया । जो संविधान समिति का सदस्य और जम्मू कश्मीर के राजा हरिसिंह का दीवान रह चुका था । नेहरु जी ने उससे कहा  शेख साहब जम्मू कश्मीर के बारे में जो भी चाहते हैं । संविधान की धारा 370 में वैसा ही एक ड्राफ्ट तैयार कर दो । गोपाल स्वामी आयंगर ने वैसा ही किया । और जम्मू कश्मीर के लिए धारा 370 तैयार कर दी । यदि कोई समझदार व्यक्ति धारा 370 के नियमों को पडेगा तो अपने आप यह कहेगा कि कश्मीर भारत का अंग नहीं है । इस धारा के इन फूहड नियमो को  ध्यान लगाकर देखो--
👉जम्मू कश्मीर की रक्षा करने की जिम्मेदारी और विदेशी मामले तथा संचार सेवा के विषय में कानून बनाने का अधिकार भारत सरकार को है । 
👉जम्मू कश्मीर में किसी कानून को लागू करने के लिए भारत सरकार को राज्य की अनुमति लेनी पड़ेगी । राज्य सरकार की अनुमति के बिना केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में कोई कानून लागू नहीं कर सकती है । 
👉जम्मू कश्मीर में संविधान की धारा 356 लागू नहीं होगी इसीलिए भारत के राष्ट्रपति को राज्य के संविधान को भंग करने का अधिकार नहीं है । 
👉जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त है । जिसके तहत जम्मू कश्मीर के निवासी अपनी इच्छा अनुसार भारत या पाकिस्तान किसी भी देश की नागरिकता ले सकते हैं । इसकी वजह से पाकिस्तान से आतंकवादी POK क्षेत्र के रहने वाले बताकर भारत  में घुस आते हैं । जो बाद में ताईवान और लश्कर के खूंखार आतंकियों से मिलकर भारत में आतंक फैलाते हैं
👉कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज अलग होता है । 

👉विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है ।  जम्मू कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक व राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करना अपराध नहीं माना जाता । भारत की संसद या सुप्रीम कोर्ट का कोई भी आदेश जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता है । 17 अक्टूबर 1949 को अनुच्छेद 370 संविधान मे जोडकर पारित कर दिया गया । 6 फरवरी 1954 को जम्मू कश्मीर की विधानसभा में जम्मू कश्मीर को भारत में मिलाने की स्वीकृति प्रदान कर दी गई । अनुच्छेद 370 मे यह बताया गया है कि जम्मू कश्मीर राज्य से सम्बधित उपबंध अस्थाई है स्थाई नहीं । यदि भारत सरकार चाहे तो धारा 370 को हटा सकती है । लेकिन के कुछ अलगाववादी लोग धारा 370 को हटाने नहीं देते हैं । कश्मीर के भारत में विलय होते ही भारत सरकार ने 14 मई सन 1954 को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा भी दे दिया । और 26 जनवरी सन 1957 को जम्मू कश्मीर का अलग संविधान लागू कर दिया । इस प्रकार कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग तो  बन गया लेकिन POK क्षेत्र विवाद का विषय इसलिए बन गया क्योंकि 1947-48 मे लुटेरे कवाइलीयों के सहयोग से पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को भारत से छीनकर अपने अधिकार मे ले लिया ।

लेकिन असल मे यह भारत का एक हिस्सा है ।हमारा कश्मीर दो हिस्सों में बटा है । पहले भाग को आजाद जम्मू और कश्मीर तथा दूसरे भाग को गिलगित-बल्तिस्तान  कश्मीर कहते हैं । गिलियत-बल्तिस्तान कश्मीर को भारतीय पाक अधिकृत कश्मीर (POK) कहते है । इस क्षेत्र को पाकिस्तान-भारत से आजाद हुआ मानकर "आजाद कश्मीर" कहता है । यह POK क्षेत्र भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय इसीलिए बना है क्योंकि यह क्षेत्र भारत के जम्मू कश्मीर का एक हिस्सा है जिसे पाकिस्तान ने 1947-48 में लुटेरे कव्वालियों के सहयोग से भारत से छीन लिया था । तभी से यह क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकार में चला गया है । लेकिन असल में यह जम्मू कश्मीर का एक टुकड़ा है । POK में मुसलमान जाति के लोगों का बाहुल्य है । लेकिन कश्मीरी पंडितों की संख्या भी कम नहीं है । इसके साथ ही इस क्षेत्र में पाकिस्तान के कवाइली लुटेरे भी पाकिस्तान के सहयोग से वहां पर जबरदस्ती निवास कर रहे हैं । लेकिन यह कवाइली असल में कश्मीर के निवासी नहीं है । अब कवाली जनजाति के लोगों की तादात दिनों दिन बढ़ती जा रही है । उनमें से अधिकतर लोग आतंक के उद्देश्य से POK मे आते हैं । 1988 से पीओके में आतंकवादियों को ट्रेंड करने का ट्रेनिंग सेंटर चल रहा है । पाकिस्तानी कबीले यहां ट्रेनिंग लेकर जम्मू कश्मीर मैं घुसपैठ करके आतंक फैलाने के लिए आते हैं । इस समय कई आतंकवादी टी वी पर सुर्खियों में चल रहै है जो आतंकवादियों को पीओके में ट्रेनिंग देते हैं और फिर उन्हें हथियार मुहैया करा कर भारत में आतंक फैलाने के लिए भेज देते है । POK में दोहरी शासन प्रणाली चल रही है । दोनों देश भारत और पाकिस्तान अपने अपने हिसाब से इस क्षेत्र का शासन चला रहे हैं । भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर की विधानसभा में POK  के लिए 25 और संसद में 7 सीटें रिजर्व रखी है । और इन सीटों पर भारत सरकार POK में समय-समय पर चुनाव कराकर उम्मीदवारों को चुनौती है । लेकिन पाकिस्तान भी POK क्षेत्र में अपना अलग चुनाव कराता है ।  1974 से पाकिस्तान ने इस क्षेत्र की राजधानी मुजफ्फरनगर बना दी है । और वहां पर POK का अलग प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है । जो पाकिस्तान के कहे अनुसार शख्स नियमों से इस्लामाबाद में रहकर POK  का शासन चलाता है । लेकिन इस चुनाव को पाकिस्तान और POK से बाहर मान्यता नहीं मिली है ।  2009 से पाकिस्तान ने  POK में विधानसभा चुनाव भी कराने शुरू कर दिए हैं । इनमें 24 सदस्य होते हैं । और मुख्यमंत्री सरकार तो चलाता है । लेकिन उसे पाकिस्तान की अनुमति के बिना कोई भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं है । लद्दाख के लोग जम्मू कश्मीर के आतंक से काफी परेसान है वे भारत सरकार से यह कहते हैं कि लद्दाख क्षेत्र को या तो केंद्र शासित प्रदेश बना दें या फिर हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बना दें । लद्दाख के लोग अपने यहां जम्मू कश्मीर का झंडा भी नहीं लगाते हैं । वे  तो भारत का तिरंगा लहराते हैं और POK के कश्मीर निवासियों का दर्द यह है कि उनकी पाकिस्तान सरकार ने उन्हें  आज तक वह अधिकार नहीं दिए है जिसे वे चाहते हैं । उन्हें पाकिस्तान सरकार के बस एक ही अधिकार दिया है कि भारत के साथ युद्ध करो । गिलगित और बलूचिस्तान में लोग आर्थिक तंगी की वजह से भूखे मर रहे हैं । वहां न तो कोई स्कूल है और नहीं अस्पताल । वहां तो सिर्फ आतंक का ही राज है । पाकिस्तान ने पहले तो ISI से मिलकर वहां पर दंगे करा कर आतंकवाद का सिलसिला शुरू किया । फिर पाकिस्तान ने गैर मुस्लिम और भारत के साथ रहने की चाह करने वाले शिया मुसलमानों को वहां से खदेड़ा । फिर उसने वहां के लोगों को भारत से आजाद होने के लिए बहकाया । और कहा कि भारत का काम तो मुसलमानों का कत्ल करना है । इनमें कुछ लोग पाकिस्तान के बहकवे मे आकर वहां पर अलगाववाद फैलाते हैं । ये अलगाववादी  POK में पाकिस्तानी झंडा लहराते हैं । और सरेआम भारत की खिलाफत करते हैं । क्योंकि अब वहां गैर मुस्लिम और  शिया मुसलमानों की संख्या बहुत कम बची है । कुछ है भी वे कवालियों के आतंक की वजह से घर से बहुत कम बाहर निकलते हैं । वहां पर TV समाचार पत्र सब पाकिस्तानी है । उनमे बढ़ा चढ़ाकर भारत की निंदा की जाती है । जो कोई अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए आवाज उठाता है । उसे उम्रकैद या फांसी दे दी जाती है । वहां पर बेरोजगारी और गरीबी चारों तरफ फैली हुई है । इसलिए काफी लोगों ने भारत में शरण ले रखी है । तो कई पाकिस्तान और दूसरे मुल्क में निवास कर रहे हैं । दुष्ट आताताई कबालियों के बर्बर हमले , कत्लेआम और जुर्म के कारण वहां के लोग दर दर की ठोकर खा रहे हैं । उन्हें भारत सरकार इसलिए नहीं बचा पा रही है क्योंकि पूरे POK क्षेत्र पर पाकिस्तान का अधिकार है । और पाकिस्तान इस  क्षेत्र मे विकास के नाम पर कुछ इसीलिए नहीं करता क्योंकि उसे यह शंका रहती है कि POK हिस्सा पाकिस्तान का बनेगा भी या नहीं । कश्मीर अभी पूर्ण रुप से न तो पाकिस्तान का हिस्सा है और नहीं भारत के अधिकार मे है । उसका आधा भाग पाकिस्तान के कब्जे में हैं तो कुछ भाग पर चीन अपना अधिपत्य जमाए बैठा है ।
पाकिस्तान के अधिकार वाले कश्मीर को पाक अधिकृत कश्मीर यानी POK कहते हैं । और चीन के अधिकार वाले कश्मीर को चीन अधिकृत कश्मीर यानी कि COK कहते हैं । भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा LOC रेखा कहते हैं । लेकिन वास्तविक अंतरराष्ट्रीय सीमा रेडक्लिफ रेखा हैं । इस प्रकार भारत और चीन के बीच की सीमा को LAC कहते हैं ।  LAC का मतलब होता है लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल रेखा । जबकि वास्तविक अंतरराष्ट्रीय सीमा मेक मोहन रेखा कहलाती हैं । और POK को पाकिस्तान अपनी भूमि घोषित करने में इसलिए असमर्थ है क्योंकि वहां बहुलता से निवास करने वाले कश्मीरी पंडित और शिया मुसलमान पाकिस्तान के साथ रहना नहीं चाहते हैं । लेकिन वर्तमान में पाकिस्तान की सहमति से चीन इस क्षेत्र में लाखों डॉलर निवेश कर रहा है । भारत सरकार ने इस पर कई बार आपत्ति जताई है । परन्तु इस क्षेत्र पर पाकिस्तान का अधिकार है इसलिए कोई हल नहीं निकल पाता । अत: हम सब भारत वासियों को मिलकर यह प्रयास करना चाहिए कि पूरा कश्मीर दोबारा से भारत का हिस्सा बने जिससे POK क्षेत्र भी विकास के पथ पर आगे बढ़ सके ।

No comments:

Post a Comment

thankyou for comment

कश्मीर की कहानी

सन् 1947 मे जब भारत और पाकिस्तान देश आजाद हुए थे । तब जम्मू और कश्मीर देश की सबसे बडी रियासत थी । इसके दो हिस्से थे । पहला भाग जम्मू औ...

भारत पाकिस्तान युद्ध