Sunday, November 12, 2017

आजाद हिंद फौज

आजाद हिंद फौज
1942 में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिंदुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के उद्देश्य आजाद हिंद फौज (इंडियन नेशनल आर्मी) नामक एक विशाल संगठन की नीव रासबिहारी बोस (रासबिहारी बोस 1912 मेवायसराय लोर्ड होर्डिंग पर बंम फेंककर उस पर हमला करके जापान भाग गए थे ) ने टोकियो में डाली थी । शुरू मे इस फौज में उन भारतीय सैनिकों को शामिल किया गया था । जिन्हें जापानियों ने अपना बंदी बना लिया था । क्योंकि यह द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लड़ रहे थे । किंतु बाद में इसमें बर्मा में स्थित भारतीय स्वयं सेवक भी भर्ती किए गए । 1 वर्ष बाद जून 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी जापान पहुंच गए । और उन्होंने टोकियो के रेडियो स्टेसन से यह खबर भारत में पहुंचाई । कि अंग्रेजो तैयार हो जाओ स्वाधीनता का युद्ध देश के बाहर से शुरू होने जा रहा है । इससे गद्गद होकर रासबिहारी बोस ने 4 जुलाई को सुभाष चंद्र बोस को आजाद हिंद फौज का प्रधान सेनापति बना दिया । 5 जुलाई को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने सेनापति बनकर "जय हिंद दिल्ली चलो" का नारा लगाया । इस प्रकार सुभाष चंद्र बोस ने जापान सिंगापुर और बर्मा की सेना के साथ भारत में आकर इंफाल तक अपना स्वतंत्रता रूपी झंडा फहराते हुए "तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा" का नारा लगाया । 21 अक्टूबर को सुभाष चंद्र बोस ने भारत के कुछ क्षेत्रों में स्वतंत्र और अस्थाई सरकार बनाई । जिसे कई देशों ने मान्यता दे दी । जापान ने अंडमान निकोबार द्वीप को इस सरकार को दे दिया । तो सुभाष चंद्र बोस ने वहां पहुंचकर उस दीपक का नाम शहीद और स्वराज रखा । 30 दिसंबर को इन द्वीपों में स्वतंत्र भारत का ध्वज फहराया गया । इस प्रकार 4 फरवरी 1944 तक पूरे पूर्वी भारत में स्वतंत्र भारत का झंडा गाड़ दिया गया । किंतु दुर्भाग्यवश विश्वयुद्ध में जापान की पराजय ने आजाद हिंद फौज को बिखेर दिया । जिससे अंग्रेजों ने आजाद हिंद फौज के अधिकारियों को गिरफ्तार करके दिल्ली के लाल किले में उन पर मुकदमा चलाया । तथा कर्नल सहगल , कर्नल ढिल्लो और मेजर शहनवाज खान को राजद्रोही मानकर फांसी दी गई । जिससे भारत की जनता भड़क उठी और लालकिले को तोड़ दो आजाद हिंद फौज को छोड़ दो के नारे लगाने लगी ।अब सुभाष चंद्र बोस और फौज इकट्टा करने लिए हवाई जहाज से बैंकॉक जा रहे थे कि रास्ते में ताइवान के पास फारमूसा में हवाई जहाज में आग लगकर वह क्रैश हो गया । जिसमें नेताजी की मृत्यु हो गई ।

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