Wednesday, October 25, 2017

मुरैना

Sunday, October 22, 2017

हडप्पा सभ्ताता

हडप्पा निवासियों की सर्वोत्तम कलाकृतियां होने की म्रण मुद्राएं हैं अव तक 5000 मुद्रा खोदी जा चुकी है  इन पर जानवरों की आकृतियां तथा नमूने अंकित है । हड़प्पा निवासी नापतोल  के लिए बांट तथा दंड का प्रयोग करते थे क्योंकि खुदाई में बांट  तथा कांसे का तराजू मिला है । हड़प्पा सभ्यता मे पकी हुई इंटों की स्त्री प्रतिमाएं काफी तादात में मिली हैं जिससे अनुमान होता है कि देवी उपासना प्रचलित थी । एक मोहर पर तीन सिंह युक्त ध्यान करते हुए देवता का अंकन है । यह देवता पद्मासन में बैठा है । इसके आसपास एक हाथी एक गैंडा एक भैंसा तथा दो हिरणों का अंकन है । इतिहासकारों ने इस देवता की पहचान पशुपतिनाथ शिव के रुप में की है हड़प्पा सभ्यता में पक्की ईंटों और पत्थरों पर लिंग और योनि के अनेक चिन्य मिले हैं इसके अलावा कमंडल यज्ञ वेदी और स्वास्तिक चिन्ह आदि के अवशेषों के अंकन मिले हैं मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है कायथा की खुदाई में हड़प्पा सभ्यता के समान एक मोहर शेर कढ़ी के मनके मिट्टी की मूर्तियां तथा बर्तन मिले हैं हड़प्पा सभ्यता की कई मोहरों पर  कूबड वाले सांड की मृण मूर्ति का अंकन मिलता है उत्खनन में ताबीज बड़ी तादात में मिले हैं जिससे अनुमान लगता है की हड़प्पा निवासी भूतों प्रेतों में विश्वास करके उनसे बचने के लिए ताबीज पहनते थे हड़प्पा सभ्यता में पीपल की पूजा के प्रमाण  म्रण मुहरों और पात्रों पर मिलते हैं इस व्रक्ष की उपासना आज तक जारी है भारतीय पीपल को पवित्र वृक्ष मानते हैं वैज्ञानिक भी इस वृक्ष को पर्यावरण शुद्धि की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हैं पात्रों पर मिले कई चित्रों के अंकन धार्मिक विचारों की जानकारी देते हैं कुछ पात्रों पर मोर का अंकन मिलता है आज भी भारत के कई जगहों के कुमार अपने पात्रों पर मोर का अंकन करते हैं हड़प्पा निवासी योग विद्या के प्रारंभिक जनक थे म्रण मोहरों से प्राप्त चित्रांकन के आधार पर इस बात की जानकारी मिलती है कि हड़प्पा निवासी यौगिक क्रियाओं के जानकार थे हड़प्पा सभ्यता ताम्रस्य काल की है यह समय कांस्य युग भी कहलाता है तावे मे जिंग और टिन मिलाकर कांसा बनाया जाता था कांसा तांवे की तुलना में अधिक मजबूत होता था खुदाई से प्राप्त सामग्री के आधार पर ज्ञात होता है कि इस सभ्यता के लोगों ने धातुओं को गलाने ढालने और सम्मिश्रण की कला में विशेष उन्नति की थी मिट्टी के बर्तन बनाने खिलौने बनाने मोहरें निर्माण करने में यहां के कलाकार होशियार थे प्रतिमाओं को पकाया भी जाता था इसके अलावा स्वर्णकार चांदी सोना और रत्नो के आभूषण और विभिन्न रंगों के मनके भी बनाते थे कांसे की नर्तकी उनकी मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है हड़प्पा सभ्यता की जीवनदायिनी नदी सिंधु थी यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में उपजाऊ मिट्टी लाती थी हड़प्पा सभ्यता के लोग गेहूं जो सरसो कपास मटर तथा तिल की फसल उगाते थे उस समय किसानों से राजस्व कर के रूप में अनाज लिया जाता था हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नगरों में मिले अनाज रखने के विशाल गोदाम इसके प्रमाण हैं कालीबंगा में मिले जुताई के मैदानों से यह प्रतीत होता है  कि उनके खेती करने का तरीका आज की तरह ही था हड़प्पा निवासी कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते थे वे कई जानवरों पशुओं तथा पक्षियों से परिचित थे हड़प्पा निवासी विश्व के प्रथम ऐसे लोग थे जिन्होंने कपास का उत्पादन सर्वप्रथम सिंधु क्षेत्र में किया मोहनजोदड़ो है बुने हुए सूती वस्त्र का एक टुकड़ा मिला है और कई वस्तुओं पर कपड़े के छाप भी मिले हैं इस समय कताई के लिए तखलियों का इस्तेमाल होता था गुजरात के हड़प्पा सभ्यता के लोग चावल उपजाते थे और हाथी पालते थे हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता  उनकी विकसित नगर योजना प्रणाली थी हड़प्पा सभ्यता के नगरों में अनाज रखने के भण्डारो का महत्वपूर्ण स्थान था हड़प्पा तथा कालीबंगा में भी इनके प्रमाण मिले हैं मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है इसके दोनों सिरों पर नीचे तक सीढ़ियां बनी है बगल में कपड़े बदलने के कमरे है स्नानागार का फर्स पक्की ईंटों का बना है पास के एक कमरे में बड़ा सा कुआ बना है शायद यह स्नानागार किसी धार्मिक अनुष्ठान संबंधी स्नान के लिए बना होगा इसके अलावा हर छोटे-बड़े मकानों में आंगन और स्नानागार होता था पर्यावरण की दृष्टि से जल निकास प्रणाली भी इस समय थी घरों का पानी बहकर सड़कों तक जाता था यह पानी जाकर मुख्य नाले से मिलता था जो ईंट और पत्थर की पट्टियों से ढका रहता था सड़कों की मुख्य नालियों में सफाई की दृष्टि से नलमोखे भी बने थे उनके द्वारा नालियों की समय समय पर सफाई की जाती थी ताम्रस्य युगीन सभ्यता में हड़प्पा की जल निकास प्रणाली आद्वितीय थी विश्व की अन्य किसी दूसरी सभ्यता में सफाई को इतना अधिक महत्व नहीं दिया जाता था जितना की हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने दिया था इससे ज्ञात होता है कि हड़प्पा निवासियों ने पर्यावरण शुद्धि के लिए अधिक ध्यान दिया था भौगोलिक दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता थी इसका क्षेत्र मिश्र की सभ्यता से 20 गुना अधिक था इस सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल मोहनजोदड़ो हड़प्पा चान्हूदडो पाकिस्तान में है रोपड़ पंजाब में रंगपुर सौराष्ट्र में लोथर और सुतकोतरा गुजरात में थे कालीबंगा राजस्थान में धौलावारा गुजरात में और वाणावली दशारानीगडी हरियाणा में है माडा जम्मू कश्मीर में

श्योपुर

मध्य प्रदेश में श्योपुर का हिस्सा
श्योपुर जिले का नक्शा 
फर्नीचर के लिए प्रसिद्ध है । यहां पर सागोन के दरवाजे तथा खिडकियां खूबसूरत बनाए जाते हैं । श्योपुर में ककेता जलाशय , खेत्रपाल जैनी मंदिर , उठनवाड के शिवनाथ , ध्रुवकुंड , पालपुर (कूनो) की वाइल्ड लाइफ सेंचुरी , निमाड़ का मठ , रामेश्वर विजयपुर दुर्ग का संगम , सिरोनी का हनुमान मंदिर , जल मंदिर और दूबकुंड है । मध्य प्रदेश का सबसे ज्यादा कुपोषित जिला श्योपुर है । कुनो वन्यजीव अभयारण्य एशियाई शेरों के लिए चुना गया भारत का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है । अलाउद्दीन खिलजी 1301 रणथंभौर पर आक्रमण करने के बाद श्योपुर को अपने अधिकार में ले लिया था । श्योपुर चंबल नदी के तट पर स्थित है । श्योपुर जिला 1998 में मुरैना में से काट कर बनाया गया श्योपुर जिला अपनी कास्ट कला के लिए प्रसिद्ध है । शिवपुर का करहाल वन क्षेत्र वर्तमान में डकैत समस्या से ग्रसित है । पालपुर या कुनो वन्यजीव अभयारण्य श्योपुर में कूनो नदी के किनारे स्थित है । यहां पर गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान से एशियाई सिंहों को लेकर संरक्षण प्रदान किया जा रहा है । श्योपुर जिला अपनी काष्ठ कला के लिए प्रसिद्ध है ।



Thursday, October 12, 2017

ब्रम्हांड

ब्रह्मांड मे आज से लगभग 13.5 अरव वर्ष पहले एक विशाल तेज गति से चलता हुआ आग का एक गोला आकर के सूर्य से टकराया । सूर्य के टकराव से उस पिंड मे भयानक विष्फोट हुआ । जिसे बिग बैंग का विशाल धमाका कहते है 

। इसी से ब्रम्हांड की उत्पत्ती हुई । धमाके के बाद उस पिंड में से पृथ्वी सहित नौ ग्रह कई उपग्रह आकाशगंगा और तारामंडल निकले थे ।  सौरमंडल की खोज पोलैंड की खगोलशास्त्री निकोलस कॉपरनिकस ने की । हमरे सौरमंडल मे पहले 9 ग्रह थे ।

लेकिन 2008 मे अमेरिका मे स्थित नासा के वैज्ञानिकों ने प्लूटो ग्रह से ग्रह होने का दर्जा छीन लिया है । क्योंकि यह आकार में चंद्रमा से भी छोटा है । और पूरी तरह से वृताकार नहीं है ।  हमारे सौरमंडल में वर्तमान में 8 ग्रह है ।
जो अपनी अपनी धुरी पर घूमते हैं । और सूर्य की परिक्रमा भी करते हैं । हमारे सौरमंडल में सर्पिलाकार की कई अरब मंदाकिनीयां है । जिनमें असंख्य तारे हैं । हमारी पृथ्वी की अपनी एक मंदाकिनी है । जिसे दुग्ध मेखला कहते हैं । यह बहती हुई गंगा जैसी दिखती है । इसलिए इसे आकाशगंगा भी कहते हैं । हमारी आकाशगंगा के निकटतम मंदाकिनी देवयानी मंदाकिनी है । इस समय ज्ञात नई मंदाकिनी ड्वार्फ है । सूर्य की परिक्रमा करने वाले आकाशीय पिंड ग्रह

कहलाते हैं और ग्रहों की परिक्रमा करने वाले आकाशीय पिंड उपग्रह

कहलाते हैं । सौर मंडल में सूर्य प्रधान होता है । सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित होता है । सूर्य को ही सौरमंडल का जन्मदाता माना जाता है । सूर्य एक तारा होता है । सूर्य में पाई जाने वाली सर्वाधिक गैस हाइड्रोजन और हीलियम होती है । चंद्रमा सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है । सूर्य अपने अक्ष या धुरी पर पूर्व से पश्चिम की ओर घूमता है । सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में लगभग 8 मिनट 19 सेकंड का समय लगता है । सूर्य के सबसे निकट का तारा प्रेक्सिमा सेंचुरी है ।
      सौरमंडल का पहला सदस्य बुद्ध होता है । यह सूर्य के सबसे नजदीक का ग्रह होता है । बुद्ध आकार में सबसे छोटा ग्रह होता है । यह अपनी धुरी पर लगभग 59 दिनों में घूम जाता है । तथा सूर्य की परिक्रमा लगभग 88 दिनों में पूरी कर लेता है । बुद्ध सबसे कम समय में सूर्य की परिक्रमा करने वाला एक ग्रह है । बुद्ध ग्रह को चुंबकीय क्षेत्र वाला ग्रह कहते है ।
      शुक्र सौरमंडल का दूसरा ग्रह होता है । पृथ्वी के सबसे नजदीक ग्रह शुक्र होता है । शुक्र ग्रह सबसे चमकीला होने के कारण मॉर्निंग या इवनिंग स्टार कहलाता है । प्रातकाल यह पूर्व में और सांयकाल पश्चिम में दिखाई देता है । शुक्र ग्रह को पृथ्वी की बहन या पृथ्वी का जुड़वां ग्रह भी कहते हैं । क्योंकि यह आकार और द्रव्यमान में पृथ्वी के लगभग समान और बराबर होता है । यह अपनी धुरी पर लगभग 10 घंटे 34 मिनट  मैं घूम जाता है । तथा लगभग 225 दिनों में सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेता है । यूरोपवासी इस ग्रह को सुंदरता की देवी मानकर इसकी पूजा करते हैं । यह ग्रह सबसे अधिक गर्म होता है । सबसे चमकीला ग्रह शुक्र होता है ।
       सौरमंडल का चौथा सदस्य मंगल होता है । मंगल ग्रह को लाल ग्रह भी कहते हैं । क्योंकि इसकी सतह आयरन ऑक्साइड के कारण लाल दिखती है । पृथ्वी के अलावा मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना व्यक्त की जा रही है । क्योंकि यहां पर वायुमंडल पाया जाता है । मंगल ग्रह का आकार अंडाकार है । मंगल ग्रह अपनी धुरी पर लगभग 24 घंटों में घूम जाता है । तथा लगभग 687 दिन में सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेता है । इसके सबसे अधिक छोटे मात्र 2 उपग्रह है । जिनका नाम फोबोस तथा डिमोस है । मंगल ग्रह को युद्ध का देवता माना जाता है ।
       सौरमंडल का पांचवा सदस्य बृहस्पति होता है । यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह होता है । जो सबसे तेज गति से अपनी धुरी पर लगभग 9 घंटे 50 मिनट में घूम जाता है । तथा लगभग 11 वर्ष 9 माह में अपना एक  सौर वर्ष पूरा कर लेता है । इसके उपग्रहों की संख्या 63 है । जो सबसे अधिक है । बृहस्पति का सबसे बड़ा उपग्रह गैनीमिड है । बृहस्पति को पीला और लाल धब्बा युक्त ग्रह भी कहते हैं ।बृहस्पति पर सबसे अधिक हाइड्रोजन गैस पाई जाती है ।
        सौरमंडल का छटवा सदस्य शनि होता है । शनि ग्रह आसमान में पीले तारे के समान दिखता है । इस ग्रह के चारों ओर वलय पाई जाती है । इसलिए यह ग्रह सबसे सुंदर दिखाई देने वाला ग्रह है । यह ग्रह लगभग 10 घंटे 20 मिनट में अपनी धुरी पर एक परिक्रमा पूरी कर लेता है । तथा लगभग 29 वर्ष 6 माह में अपना एक सौर वर्ष पूरा कर लेता है । इसका उपग्रहों की तुलना में बृहस्पति के बाद दूसरा स्थान है । इसके उपग्रहों की संख्या 60 है । शनि का सबसे बड़ा उपग्रह टाइटन है । शनि सबसे कम घनत्व वाला ग्रह है । इसका घनत्व 0.7 है । फोवे उपग्रह शनि की कक्षा में घूमने के विपरीत परिक्रमण का कार्य करता है । सनी को कृषि का देवता माना जाता है । शनि ग्रह आसमान में पीले तारे के समान दिखाई देता है ।
      सौरमंडल का सातवा सदस्य यूरेनस होता है । यूरेनस ग्रह 10 घंटे 50 मिनट में अपनी धुरी पर घूम जाता है । तथा लगभग 84 वर्षों में अपना एक सौर वर्ष पूरा कर लेता है । इसके लगभग 15 उपग्रह है । इसके प्रमुख उपग्रह टाइटेनियां तथा एरियल है ।  इसके चारों ओर 9 वलय हैं । यह अपनी धुरी पर सूर्य की ओर झुका हुआ लेटा सा दिखाई देता है । इसलिए इसे लेटा हुआ ग्रह भी कहते हैं । यह ग्रह नीले एवं हरे रंग के प्रकाश को उत्सर्जित करता है । इस ग्रह पर मीथेन और कई गैसे पाई जाती हैं । इसीलिए इस ग्रह को सर्वाधिक गैसों वाला ग्रह भी कहते हैं । यूरेनस के उपग्रह पृथ्वी की विपरीत दिशा में घूमते हैं ।
       सौरमंडल का आठवा सदस्य नेपच्यून होता है । नेपच्यून ग्रह लगभग 15 घंटे 45 मिनट में अपनी धुरी पर घूम जाता है । तथा लगभग 165 वर्षों में अपना एक सौर वर्ष पूरा कर लेता है । इस ग्रह पर मीथेन गैस की अधिकता होने के कारण यह ग्रह धुंधली हरे रंग का दिखता है । इसलिए इसे हरा ग्रह भी कहते हैं । सूर्य से सबसे अधिक दूरी पर स्थित होने के कारण उसे ग्रह को सर्वाधिक अंधेरे वाला ग्रह भी कहते हैं । इस ग्रह पर बर्फ की अधिकता होने के कारण इसे ग्रह को सर्वाधिक ठंडा ग्रह भी कहते हैं । इस ग्रह की खोज सबसे बाद में हुई थी इसलिए इसे आदि ग्रह भी कहते हैं । इस ग्रह के 8 उपग्रह हैं ।
      बुध और शुक्र ऐसे ग्रह है जिनका कोई उपग्रह नहीं है
      सूर्य के चारों ओर विपरीत दिशा में पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर परिक्रमण करने वाले ग्रह शुक्र और यूरेनस है ।
        बुद्ध शुक्र मंगल बृहस्पति और सनी आदि ग्रहों को खुली आंखों से देखा जा सकता है
आकाशगंगा में गैसों के बादलों से बनने वाले तत्व तारे कहलाते हैं । पृथ्वी से देखा जाने वाला सर्वाधिक चमकीला तारा सायरस होता है । जिसे लुब्दक , व्याघ्र या ध्रुवतारा भी कहते हैं । जिस तारे का प्रकाश सूर्य से कम होता है उसे बामन तारा कहते हैं । और जिस तारे का प्रकार सूर्य से अधिक होता है उसे विशाल तारा कहते हैं । अब तक लगभग 89 तारामंडलों की पहचान की जा चुकी है । जिसमें सेंटोरस तारा सबसे बड़ा होता है  वे तारे कृष्ण विवर बन सकते हैं जो सूर्य से 3 गुना ज्यादा आकार वाले होते हैं । जब तारों में हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है तब तारों की मृत्यु हो जाती है ।
ब्रह्मांड में छोटे-छोटे अन्य ग्रह जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं क्षुद्रग्रह कहलाते हैं । कभी-कभी यह ग्रह जब पृथ्वी से टकराते हैं । तो वहां पर एक विशाल गर्त बना देते हैं । महाराष्ट्र में स्थित लोनार झील ऐसा ही एक गर्त है । जो क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने से बना है । क्षुद्र ग्रह मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच पाए जाते हैं ।
तीर के समान एक लंबा चमकता हुआ आकाशीय पिंड जो रात के समय आसमान में तेजी से जाता हुआ दिखाई देता है धूम्रकेतु या पुच्छल तारा

कहलाता है । वह धूम्रकेतु जो 76 वर्ष बाद दिखाई देता है । तथा 2062 में दिखाई देगा हेली धूमकेतु है ।
एक टूटा हुआ तारा जो पृथ्वी के वायुमंडल में पहुंचने से जलने लगता है और दौड़ता हुआ दिखाई देता है उसे उल्काएं

कहते हैं ।
। चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है । जो पृथ्वी की परिक्रमा करता है । यह पृथ्वी का 1/4 गुना होता है । तथा इसकी पृथ्वी से दूरी 84 हजार किलोमीटर है । पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चंद्रमा है । जो लगभग 27 दिनों में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर लेता है । पृथ्वी एवं चंद्रमा के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र को सैसुलुनर कहते हैं । पृथ्वी से चंद्रमा का 59% भाग देखा जा सकता है । सी ऑफ ट्रेंक्वॉलिटी चंद्रमा का वह भाग है । जो पृथ्वी से दिखाई नहीं देता । चंद्रमा के प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1 मिनट 30 सेकंड का समय लगता है । चंद्रमा का व्यास 3470 किलोमीटर है । चंद्रमा पर पहुंचने वाले पहले वैज्ञानिक नील आर्म स्ट्रांग थे । जो अपोलो 11 नामक अंतरिक्ष विमान में गए थे । चंद्रमा एक जीवाश्म ग्रह है । चंद्रमा पर धूल का मैदान शांतीसागर कहलाता है
किसी खगोलीय पिंड के के अंधकारमय हो जाने को ग्रहण करते हैं । ग्रहण दो प्रकार के होते है । जब चंद्रमा सूरज और पृथ्वी के बीच आ जाता है

तब सूर्य का प्रकाश चंद्रमा से रुक कर पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता ऐसी स्थिति में सूर्य ग्रहण होता है । सूर्यग्रहण हमेशा अमावस्या को होता है 
     जब पृथ्वी सूरज और चंद्रमा के बीच आ जाती है

तब सूर्य का प्रकाश प्रथ्वी से रुक कर चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता ऐसी स्थिति में चंद्रग्रहण होता है । चंद्र ग्रहण हमेशा पूर्णिमा को होता है
सौरमंडल का तीसरा सदस्य हमारी पृथ्वी होती है । यह सौरमंडल का पांचवा बड़ा ग्रह है । पृथ्वी की आकृति जियोर्ड या गोलाकार है । इसकी उत्पत्ति एक ज्वलित  गैसीय पिंड से हुई है । पृथ्वी की आयु लगभग 4.5 अरब वर्ष मानी जाती है । पृथ्वी का क्षेत्रफल 51 करोड़ वर्ग किलोमीटर है । जल की उपस्थिति के कारण पृथ्वी को नीला ग्रह कहते हैं । यह सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह जिस पर जीवन संभव है । हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5° झुकी हुई है । पृथ्वी का व्यास लगभग 12735  किलोमीटर है । सूर्य के बाद पृथ्वी के सबसे निकट का तारा पोस्थुमा सेंचुरी है । पृथ्वी सर्वाधिक घनत्व वाला एक ग्रह है । पृथ्वी पर आक्षांस रेखाएं 0° - 180°  तक होती है । इनका उपयोग दूरी नापने के लिए किया जाता है । एक आक्षांस से दूसरे अक्षांश के बीच की दूरी 111 किलोमीटर होती है । देशांतर रेखाएं 0° - 90° डिग्री तक की होती है । इनका उपयोग समय मापने के लिए किया जाता है । दो देशांतरों के मध्य 4 मिनट का समय होता है । 82°30 पूर्वी देशांतर हमारे देश के प्रधान मध्य रेखा है । इसका समय भारतीय प्रमाणिक समय माना जाता है । यह रेखा इलाहाबाद के निकट नैनी नामक स्थान से निकलती है । जो भारत के 4 राज्यों उत्तर , प्रदेश मध्य , प्रदेश , छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश से गुजरती है । ।  0° देशांतर को जीएमटी या ग्रीनविच मीन टाइम करते हैं ।  यह इंग्लैंड के ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से 6:30 घंटे आगे है । 180 डिग्री पूर्वी देशांतर को अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं ।
सूर्य हमारी पृथ्वी के सापेक्ष में स्थित है । लेकिन हमारी पृथ्वी गति कर रही है । हम एक गतिशील पिंड पर निवास कर रहे हैं ।  फिर भी हमें पृथ्वी स्थिर और सूर्य चलता हुआ वैसे ही प्रतीत होता है । जिस तरह हम बस या रेलगाड़ी में सफर करते है तो हमें बाहर स्थित पेड़ पौधे और मकान तेजी से पीछे भागते हुए दिखाई देते हैं । किंतु वास्तव में वे तो स्थिर  होते है । हमारा वाहन गति कर रहा होता है । इसलिए वे हमें घूमते हुए दिखते हैं । ऐसे ही सूर्य हमें सुबह पूर्व दिशा से उगते हुए धीरे-धीरे गति करता हुआ शाम को पश्चिम दिशा में अस्त होता हुआ दिखाई देता है ।
हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ सूर्य के चक्कर भी लगा रही है । जो अपने अक्ष पर एक लट्टू (भोंरा) की भांति घूमती है । और अंतरिक्ष में एक अंडाकार पथ पर सूर्य की परिक्रमा करती है । पृथ्वी के घूमने की दो गतियां हैं
(1) घूर्णन या दैनिक गति
(2)  परिक्रमण या वार्षिक गति
पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर 1610 किलोमीटर प्रति घंटा की चाल से लगभग 24 घंटों में एक पूरा चक्कर लगाती है । पृथ्वी की इस गति को घूर्णन या दैनिक गति कहते हैं । इसी घूर्णन गति के कारण सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ साथ दिन तथा रात होते हैं । तथा समुद्र की धारा में परिवर्तन होती है । जिससे उसमें ज्वारभाटा आता है । घूर्णन गति के दौरान पृथ्वी का प्रत्येक भाग बारी-बारी से सूर्य के सामने आता है । इससे सूर्य के सामने वाले भाग पर जहां सूर्य का प्रकाश पड़ता है । वहां दिन होता है । किंतु पीछे वाले भाग पर जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता । वहां रात होती है । तभी तो जब अमेरिका मे रात होती है । तब भारत मे सुबह और भारत मे सुबह होने पर अमेरिका मे रात होती है । हमारी पृथ्वी को प्रकाश सूर्य से मिलता है
हमारी पृथ्वी लगभग 1 वर्ष में सूर्य का एक चक्कर पूरा कर लेती है । इसे पृथ्वी की परिक्रमण या वार्षिक गति कहते हैं । इस गति के कारण हमारी पृथ्वी पर मौसम और ऋतु परिवर्तन होता है । तथा दिन रात छोटे बड़े होते हैं । हमारी पृथ्वी को ताप सूर्य से ही मिलता है पृथ्वी की परिक्रमण गति और अपने अक्ष पर 23.5° झुकी होने के कारण पृथ्वी को मिलने वाले ताप की मात्रा बदलती है । जिससे पृथ्वी पर ऋतु परिवर्तन होता है । हमारी पृथ्वी अपने अक्ष पर सीधी  ना होकर कर झुकी हुई है जो अपने तल से 66.5° का कोण बनाती है ।
भूमध्य रेखा पृथ्वी को दो भागों में बांटती है । ऊपरी सिरे को उत्तरी गोलार्ध तथा नीचे के हिस्से को दक्षिणी गोलार्ध कहते हैं । कर्क रेखा प्रथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध मे तथा मकर रेखा प्रथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्द मे स्थित है । सूर्य कर्क रेखा भूमध्य रेखा और मकर रेखा पर ही सीधा चमकता है ।
21 जून को सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध मे कर्क रेखा पर सीधा चमकता है । इस समय प्रथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य के नजदीक और सामने आ जाता है । इससे उत्तरी गोलार्ध में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है । और दिन बड़े तथा रात छोटी हो जाती है । जवकि इस समय दक्षिणी गोलार्ध में दिन छोटे तथा रातें बड़ी हो जाती हैं । और वहां काफी सर्दी पड़ती है । इसलिए इस दिन को कर्क संक्रांति कहते है । इसके बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है (दक्षिणी गोलार्द्ध की तरफ मुड जाता है)
       23 सितंबर को दक्षिणी गोलार्ध की ओर जाता हुआ सूर्य विषुवत रेखा (भूमध्य रेखा) पर पहुंच जाता है । जिससे दोनों गोलार्द्ध में समान ताप के साथ-साथ उत्तरी गोलार्द्ध यनी भारत में शरद ऋतु होती है ।
        22 दिसंबर को सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध मे मकर रेखा पर सीधा चमकता है । इस समय प्रथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध जहां भारत देस है सूर्य से दूर चले जाने कारण सूर्य की किरणे तिरछी पडती हैं । जिससे उत्तरी गोलार्ध में बहुत अधिक ठंड पड़ती है । और दिन छोटे तथा रात बड़ी हो जाती हैं । जबकि इस समय दक्षिणी गोलार्ध में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है । और दिन बड़े तथा रात छोटी हो जाती है । इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति कहते है । इसके बाद सूर्य उत्तरायण हो जाता है । (उत्तरी गोलार्द्ध की तरफ मुड जाता है )
       21 मार्च को दक्षिणी गोलार्ध से लौटता हुआ सूर्य (विषुवत रेखा) भूमध्य रेखा पर फिर से पहुंच जाता है । जिससे दोनों गोलार्द्ध में समान ताप के साथ साथ उत्तरी गोलार्ध यानी भारत में वसंत ऋतु होती है ।
      सूर्य की किरणे सीधी पड रही है या फिर तिरछी इसका अनुमान लगाना आसान है । दोपहर के समय सूर्य के सामने खडे होकर अपनी परछाई को देखो । गर्मी के मौसम में सूर्य की किरणें जब सीधी पड़ती हैं तो परछाई छोटी दिखती है । लेकिन सर्दी के मौसम में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं तो वह परछाई लंबी दिखती है ।
        जब सूर्य भूमध्य रेखा पर होता है तब भारत कर्क रेखा पर स्थित राज्यो मे दिन रात बराबर के होते है ।
       कई देशों में सूर्य बिल्कुल नहीं पहुंच पाता इसलिए वहां के लोग गोरे रहते हैं । दक्षिणअफ्रीका जैसे कई देशों में सूर्य वर्ष में दो बार सीधा चमकता है । इसलिए वहां के लोग अधिक रूप से काले पड़ जाते हैं ।

Tuesday, October 10, 2017

कश्मीर की कहानी


सन् 1947 मे जब भारत और पाकिस्तान देश आजाद हुए थे । तब जम्मू और कश्मीर देश की सबसे बडी रियासत थी । इसके दो हिस्से थे । पहला भाग जम्मू और दूसरा भाग कश्मीर था ।
और इस रियासत का राजा हरिसिंह था ।
जो एक कट्टर हिन्दूवादी राजा था । वे अधिकतर जम्मू मे रहते थे । कश्मीर मे मुस्लिम और जम्मू मे हिन्दुओं का बाहुल्य था । जम्मू और कश्मीर दोनो प्रान्तो के बीच मे हिमालय पर्वत था ।
इसलिए स्वतंत्रता से पहले राजा हरीशिंह को जम्मू से कश्मीर जाने के लिए पाकिस्तान के रास्ते से जाना होता था । यह जम्मू से कश्मीर जाने का एक ही रास्ता था । जो रास्ता  पंजाब से पाकिस्तान मे होते हुए कश्मीर को जाता था । राजा हरि सिंह ने सोचा कि यदि जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाया जाता है  तो जम्मू की हिन्दू जनता के साथ अन्याय होगा और यदि भारत में मिलाया जाता है तो कश्मीर की मुस्लिम जनता के साथ अन्याय होगा । इसलिए उसने अपनी रियासत जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र रखने का निर्णय लिया किंतु हरि सिंह के इस तरह के निर्णय से पाकिस्तान संतुष्ट नहीं हुआ क्योंकि पाकिस्तान कश्मीर को अपने अधिकार में लेना चाहता था । इसलिए पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर 1947 को कवाइली लुटेरो के भेष में  पाकिस्तानी सैनिकों को कश्मीर पर हमला करने भेज दिया । ये कश्मीर मे आकर गैर मुश्लिम लोगो की हत्या और लूटपाट का कोहराम मचाने लगे । इस समय राजा हरीसिंह कश्मीर मे ही थे । ऐसी हालत को देखकर राजा हरिसिंह 23 अक्टूबर  1947 को कश्मीर से भागकर जम्मू आए और जम्मू से सेना का एक भारी दल लेकर कश्मीर की ओर चल दिये । लेकिन हरी सिंह के भागकर जम्मू आते ही  पाकिस्तान ने कश्मीर जाने वाले रास्ते पर अपनी सेना तैनात करके उसे रोक दिया 
हिमालय की पहाड़ी पार करके कश्मीर पहुंचना असंभव था । ऐसे समय में उसने ऐलान कर दिया "हम पाकिस्तान से कश्मीर को हार गए" । भारत से मदत लेने के अलावा अब उसके पास दूसरा रास्त नहीं बचा था । ऐसे समय मे हरिसिंह अपनी रियासत को बचाने के लिए भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु
से संधि करने के लिए दिल्ली पहुंचा । और नेहरू को पाकिस्तान की करतूतों के बारे में अवगत कराया । लेकिन पहले तो नेहरू जी ने हरीसिंह को सैनिक सहायता देने से उसी प्रकार मना कर दिया । जिस प्रकार हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर रियासत को भारत में विलय करने से मना कर दिया था । इसके अलावा नेहरू जी की पाकिस्तान के गवर्नर मुहम्मद अली जिन्ना 
से अच्छी दोस्ती थी । उन्हे जिन्ना पर विश्वास था । कि जिन्ना कुछ गलत नहीं करेगा । लेकिन जब नेहरू जी को जिन्ना के खूनी खेल की करतूतों के बारे पता चला तो नेहरू जी दंग रह गए । और हरीसिंह की मदत मे आगे खडे हो गए । आखिरकार 26 अक्टूबर 1947 को नेहरु और हरिसिंह के बीच एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए । जिसमे हरिसिंह ने नेहरु जी से एक शर्त रखी कि रक्षा , विदेशी मामले और संचार को छोडकर और सभी शक्तियां राज्य के पास ही रहेंगी । जम्मू कश्मीर का अपना अलग संविधान होगा । भारत का संविधान जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होगा । तो जवाहर लाल नेहरू ने यह स्वीकार कर लिया । और तुरंत हवाई जहाजों से भारत की सेना को श्रीनगर पहुंचाया । किंतु तब तक पाकिस्तान के कवाइली लुटेरों के भेष मे पाकिस्तानी सैनिक श्रीनगर से 25 मील दूर बारामूला तक खून की होली खेलते हुए आ गए । भारतीय सेना ने वहां पहुंचते ही घमासान युद्ध शुरू कर दिया । भारतीय सेना सीघ्रता से पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा छीने गए क्षेत्र को पुन: प्राप्त करने के लिए कवाइली लुटेरों को पीछे धकेलती  गई और लाहोर तक की पाकिस्तान की जमीन पर कब्जा कर लिया  । लेकिन तब तक दिसम्बर का महीना आ गया । और वहां बहुत अधिक बर्फीली शर्दी बढ़ गई । हमारे सैनिक वहां पर बर्फीली शर्दी को सहन नहीं कर पा रहे थे । क्योंकि उन्होंने इतनी अधिक सर्दी को कभी नहीं देखा था अधिक सर्दी के मारे  वे निमोनिया  भुखार का शिकार होने लगे कुछ सैनिकों के पैर बर्फ मे गलकर सड़ने लगे । इसका फायदा उठाकर कवाइली लुटेरे भारतीय सैनिकों पर हावी हो गए । और एक बार फिर श्रीनगर की ओर आने बढ़ने लगे । अब नेहरु जी ने 31 दिसम्बर 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ में शिकायत की कि पाकिस्तान में भारत के एक अंग कश्मीर पर हमला कर दिया है । इससे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का खतरा पैदा हो गया है । संयुक्त राष्ट्र संघ से 21 जनवरी 1948 को आदेश आया कि जो सैनिक जहां खड़े हैं वहीं पर खड़े रह जाए । दोनों देशों में से किसी भी देश का सैनिक आगे बढ़ने की चेष्टा ना करे । संयुक्त राष्ट्र संघ आपके इस मुद्दे को सुलझाएगा । तुरंत ही संयुक्त राष्ट्र संघ से 4 व्येक्तियों का एक संगठन भारत में भेजा गया । जिसने भारत में स्थिति का अवलोकन करके जो सैनिक जहां खड़े थे वहां पर युद्ध को रोककर एक 740 किलो मीटर लम्बी नियंत्रण रेखा खींच दी । जिसे जंग रोकने वाली LOC रेखा कहा गया । LOC रेखा का मतलब होता है लाइन ऑफ कंट्रोल रेखा ।  फिर उन्होंने  संयुक्त राष्ट्र संघ में जाकर फैसला सुनाया कि जम्मू को भारत मे मिलाया जाए । पाकिस्तान अपनी सेना के कवाइली जनजाति के लोगों को POK से हटाए क्योंकि वे कश्मीर के निवासी नहीं है । और भारत कश्मीर के लोगों के साथ मिलकर जनमत करवाएं । कि वह लोग किसके साथ रहना पसंद करेंगे । यदि कश्मीर की जनता को भारत मंजूर होगा तभी कश्मीर भारत में मिलाया जाएगा । 1 फरवरी सन 1949 को दोनों देश इस फैसले पर सहमत हो गए । नेहरू जी ने कहा जम्मू मे हिंदुओं का बाहुल्य है । इसलिए जम्मू पर तो भारत का अधिकार होगा । लेकिन रही बात कश्मीर की तो कश्मीर की जनता  स्वयं जनमत के आधार पर यह तय करेगी कि वे किसके साथ रहना चाहते हैं जो जनता फैसला करेगी वह हमें मंजूर होगा । इसमें हमारी कोई आपत्ति नहीं होगी । अब संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर मे जनमत करवाने के लिए एक अमेरिकी अधिकारी नियुक्त किया । उसने कश्मीर में जाकर लोगों से जनमत संग्रह के आधार पर चर्चाएं की । किंतु वह नागरिक इसका कोई अर्थ नहीं निकाल सका । तो उसने अपने पद से इस्तीफा दे दिया  । LOC रेखा से कश्मीर का आधा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया 
। उस हिस्से को भारतीयों ने POK (पाक अधिकृत कश्मीर) क्षेत्र और पाकिस्तानियों ने आजाद कश्मीर नाम दिया । लेकिन नेहरू जी ने LOC रेखा को अपने देश की सीमा नहीं माना । उन्होंने जहां तक राजा हरि सिंह का शासन था । वहां तक अपने देश की सीमा को माना । क्योंकि राजा हरि सिंह अपनी पूरी रियासत भारत में विलय कर चुके थे । इस प्रकार उनकी पूरी रियासत पर भारत का अधिकार था । तो नेहरु जी ने जहां तक राजा हरि सिंह का शासन था । वहां तक अपने देश की सीमा को माना । नेहरू जी ने रैडक्लिफ रेखा को भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा माना । इसके बाद जवाहरलाल नेहरु ने कश्मीर पहुंचने के लिए हिमालय की पहाडियों को चीरकर उसके बीच मे से  एक सुरंग का निर्माण करवाया । जिसे जवाहर सुरंग नाम दिया । यह सुरंग भारत की सबसे बडी सुरंग है इसकी लम्बाई 2.85  किलो मीटर है । जो जम्मू से पहाड़ों के बीच मे से निकलकर सीधे कश्मीर पहुंचती है । जवाहरलाल नेहरू जनमत संग्रह की अपनी वचनबद्धता का पालन करना चाहते थे परंतु पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ की शर्तों का उल्लंघन करते हुए POK से कवाइली लोगो को नहीं हटाया । तो ऐसी स्थिति में भारत सरकार ने भी जनमत संग्रह करने से इंकार कर दिया । पाकिस्तान चाहता था कि कश्मीर पर सिर्फ और सिर्फ हमारा हक है । इसके लिए पाकिस्तान ने संसार के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका से दोस्ती करके अपना पक्ष मजबूत कर लिया । 1954 में पाकिस्तान अमेरिका से दोस्ती करके सेंट्रो नामक संगठन का सदस्य बन गया । उधर भारत ने भी  अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सोवियत संघ से मित्रता कर ली । सोवियत संघ भारत की मदद करने के लिए आगे आ गया । इसी बीच राजा हरी सिंह ने पाकिस्तान की काली करतूतों के डर से अपनी रियासत को जम्मू कश्मीर के सर्वोपरि जन हितैसी नेता शेख अब्दुल्ला
 
को सोंप दिया । जवाहर लाल नेहरु ने शेख अब्दुल्ला को बुलाया और कहा  कि अब्दुल्ला महोदय डॉ.भीमराव अम्बेडकर
 भारत का संविधान तैयार कर रहे है । तुम डॉ.भीमराव अंबेडकर के यहां जाकर उनसे मिलो । और जम्मू कश्मीर के लिए अपनी इच्छा के अनुसार एक ड्राफ्ट तैयार करके उन्हें दे दो । ताकि वे उसे संविधान में जोड़ दें । नेहरु जी के कहने के बाद से शेख अब्दुला डॉ. भीमराव अंबेडकर के यहां पहुंचा । और उसने कहा मुझे नेहरु जी ने आपके पास जम्मू-कश्मीर के संविधान की शर्तों को भारतीय संविधान में जोड़ने के लिए भेजा है । डॉ.अंबेडकर ने शेख अब्दुल्ला की सारी बात ध्यान से सुनी और कहा मैं देश का कानून मंत्री हूं । तुम चाहते हो कि कश्मीर के निवासियों को पूरे भारत देश में समान अधिकार मिले । लेकिन भारत और भारतीयों को तुम जम्मू कश्मीर में कोई अधिकार नहीं देना चाहते हो । मैं देश के साथ इस तरह की धोखाधड़ी और गद्दारी नहीं करुंगा । जब अंबेडकर ने शेख को फटकार लगा दी तो वह वापस नेहरू जी के पास गया । फिर नेहरु जी ने गोपाल स्वामी आयंगर 
को बुलाया । जो संविधान समिति का सदस्य और जम्मू कश्मीर के राजा हरिसिंह का दीवान रह चुका था । नेहरु जी ने उससे कहा  शेख साहब जम्मू कश्मीर के बारे में जो भी चाहते हैं । संविधान की धारा 370 में वैसा ही एक ड्राफ्ट तैयार कर दो । गोपाल स्वामी आयंगर ने वैसा ही किया । और जम्मू कश्मीर के लिए धारा 370 तैयार कर दी । यदि कोई समझदार व्यक्ति धारा 370 के नियमों को पडेगा तो अपने आप यह कहेगा कि कश्मीर भारत का अंग नहीं है । इस धारा के इन फूहड नियमो को  ध्यान लगाकर देखो--
👉जम्मू कश्मीर की रक्षा करने की जिम्मेदारी और विदेशी मामले तथा संचार सेवा के विषय में कानून बनाने का अधिकार भारत सरकार को है । 
👉जम्मू कश्मीर में किसी कानून को लागू करने के लिए भारत सरकार को राज्य की अनुमति लेनी पड़ेगी । राज्य सरकार की अनुमति के बिना केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में कोई कानून लागू नहीं कर सकती है । 
👉जम्मू कश्मीर में संविधान की धारा 356 लागू नहीं होगी इसीलिए भारत के राष्ट्रपति को राज्य के संविधान को भंग करने का अधिकार नहीं है । 
👉जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त है । जिसके तहत जम्मू कश्मीर के निवासी अपनी इच्छा अनुसार भारत या पाकिस्तान किसी भी देश की नागरिकता ले सकते हैं । इसकी वजह से पाकिस्तान से आतंकवादी POK क्षेत्र के रहने वाले बताकर भारत  में घुस आते हैं । जो बाद में ताईवान और लश्कर के खूंखार आतंकियों से मिलकर भारत में आतंक फैलाते हैं
👉कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज अलग होता है । 

👉विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है ।  जम्मू कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक व राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करना अपराध नहीं माना जाता । भारत की संसद या सुप्रीम कोर्ट का कोई भी आदेश जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता है । 17 अक्टूबर 1949 को अनुच्छेद 370 संविधान मे जोडकर पारित कर दिया गया । 6 फरवरी 1954 को जम्मू कश्मीर की विधानसभा में जम्मू कश्मीर को भारत में मिलाने की स्वीकृति प्रदान कर दी गई । अनुच्छेद 370 मे यह बताया गया है कि जम्मू कश्मीर राज्य से सम्बधित उपबंध अस्थाई है स्थाई नहीं । यदि भारत सरकार चाहे तो धारा 370 को हटा सकती है । लेकिन के कुछ अलगाववादी लोग धारा 370 को हटाने नहीं देते हैं । कश्मीर के भारत में विलय होते ही भारत सरकार ने 14 मई सन 1954 को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा भी दे दिया । और 26 जनवरी सन 1957 को जम्मू कश्मीर का अलग संविधान लागू कर दिया । इस प्रकार कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग तो  बन गया लेकिन POK क्षेत्र विवाद का विषय इसलिए बन गया क्योंकि 1947-48 मे लुटेरे कवाइलीयों के सहयोग से पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को भारत से छीनकर अपने अधिकार मे ले लिया ।

लेकिन असल मे यह भारत का एक हिस्सा है ।हमारा कश्मीर दो हिस्सों में बटा है । पहले भाग को आजाद जम्मू और कश्मीर तथा दूसरे भाग को गिलगित-बल्तिस्तान  कश्मीर कहते हैं । गिलियत-बल्तिस्तान कश्मीर को भारतीय पाक अधिकृत कश्मीर (POK) कहते है । इस क्षेत्र को पाकिस्तान-भारत से आजाद हुआ मानकर "आजाद कश्मीर" कहता है । यह POK क्षेत्र भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय इसीलिए बना है क्योंकि यह क्षेत्र भारत के जम्मू कश्मीर का एक हिस्सा है जिसे पाकिस्तान ने 1947-48 में लुटेरे कव्वालियों के सहयोग से भारत से छीन लिया था । तभी से यह क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकार में चला गया है । लेकिन असल में यह जम्मू कश्मीर का एक टुकड़ा है । POK में मुसलमान जाति के लोगों का बाहुल्य है । लेकिन कश्मीरी पंडितों की संख्या भी कम नहीं है । इसके साथ ही इस क्षेत्र में पाकिस्तान के कवाइली लुटेरे भी पाकिस्तान के सहयोग से वहां पर जबरदस्ती निवास कर रहे हैं । लेकिन यह कवाइली असल में कश्मीर के निवासी नहीं है । अब कवाली जनजाति के लोगों की तादात दिनों दिन बढ़ती जा रही है । उनमें से अधिकतर लोग आतंक के उद्देश्य से POK मे आते हैं । 1988 से पीओके में आतंकवादियों को ट्रेंड करने का ट्रेनिंग सेंटर चल रहा है । पाकिस्तानी कबीले यहां ट्रेनिंग लेकर जम्मू कश्मीर मैं घुसपैठ करके आतंक फैलाने के लिए आते हैं । इस समय कई आतंकवादी टी वी पर सुर्खियों में चल रहै है जो आतंकवादियों को पीओके में ट्रेनिंग देते हैं और फिर उन्हें हथियार मुहैया करा कर भारत में आतंक फैलाने के लिए भेज देते है । POK में दोहरी शासन प्रणाली चल रही है । दोनों देश भारत और पाकिस्तान अपने अपने हिसाब से इस क्षेत्र का शासन चला रहे हैं । भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर की विधानसभा में POK  के लिए 25 और संसद में 7 सीटें रिजर्व रखी है । और इन सीटों पर भारत सरकार POK में समय-समय पर चुनाव कराकर उम्मीदवारों को चुनौती है । लेकिन पाकिस्तान भी POK क्षेत्र में अपना अलग चुनाव कराता है ।  1974 से पाकिस्तान ने इस क्षेत्र की राजधानी मुजफ्फरनगर बना दी है । और वहां पर POK का अलग प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है । जो पाकिस्तान के कहे अनुसार शख्स नियमों से इस्लामाबाद में रहकर POK  का शासन चलाता है । लेकिन इस चुनाव को पाकिस्तान और POK से बाहर मान्यता नहीं मिली है ।  2009 से पाकिस्तान ने  POK में विधानसभा चुनाव भी कराने शुरू कर दिए हैं । इनमें 24 सदस्य होते हैं । और मुख्यमंत्री सरकार तो चलाता है । लेकिन उसे पाकिस्तान की अनुमति के बिना कोई भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं है । लद्दाख के लोग जम्मू कश्मीर के आतंक से काफी परेसान है वे भारत सरकार से यह कहते हैं कि लद्दाख क्षेत्र को या तो केंद्र शासित प्रदेश बना दें या फिर हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बना दें । लद्दाख के लोग अपने यहां जम्मू कश्मीर का झंडा भी नहीं लगाते हैं । वे  तो भारत का तिरंगा लहराते हैं और POK के कश्मीर निवासियों का दर्द यह है कि उनकी पाकिस्तान सरकार ने उन्हें  आज तक वह अधिकार नहीं दिए है जिसे वे चाहते हैं । उन्हें पाकिस्तान सरकार के बस एक ही अधिकार दिया है कि भारत के साथ युद्ध करो । गिलगित और बलूचिस्तान में लोग आर्थिक तंगी की वजह से भूखे मर रहे हैं । वहां न तो कोई स्कूल है और नहीं अस्पताल । वहां तो सिर्फ आतंक का ही राज है । पाकिस्तान ने पहले तो ISI से मिलकर वहां पर दंगे करा कर आतंकवाद का सिलसिला शुरू किया । फिर पाकिस्तान ने गैर मुस्लिम और भारत के साथ रहने की चाह करने वाले शिया मुसलमानों को वहां से खदेड़ा । फिर उसने वहां के लोगों को भारत से आजाद होने के लिए बहकाया । और कहा कि भारत का काम तो मुसलमानों का कत्ल करना है । इनमें कुछ लोग पाकिस्तान के बहकवे मे आकर वहां पर अलगाववाद फैलाते हैं । ये अलगाववादी  POK में पाकिस्तानी झंडा लहराते हैं । और सरेआम भारत की खिलाफत करते हैं । क्योंकि अब वहां गैर मुस्लिम और  शिया मुसलमानों की संख्या बहुत कम बची है । कुछ है भी वे कवालियों के आतंक की वजह से घर से बहुत कम बाहर निकलते हैं । वहां पर TV समाचार पत्र सब पाकिस्तानी है । उनमे बढ़ा चढ़ाकर भारत की निंदा की जाती है । जो कोई अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए आवाज उठाता है । उसे उम्रकैद या फांसी दे दी जाती है । वहां पर बेरोजगारी और गरीबी चारों तरफ फैली हुई है । इसलिए काफी लोगों ने भारत में शरण ले रखी है । तो कई पाकिस्तान और दूसरे मुल्क में निवास कर रहे हैं । दुष्ट आताताई कबालियों के बर्बर हमले , कत्लेआम और जुर्म के कारण वहां के लोग दर दर की ठोकर खा रहे हैं । उन्हें भारत सरकार इसलिए नहीं बचा पा रही है क्योंकि पूरे POK क्षेत्र पर पाकिस्तान का अधिकार है । और पाकिस्तान इस  क्षेत्र मे विकास के नाम पर कुछ इसीलिए नहीं करता क्योंकि उसे यह शंका रहती है कि POK हिस्सा पाकिस्तान का बनेगा भी या नहीं । कश्मीर अभी पूर्ण रुप से न तो पाकिस्तान का हिस्सा है और नहीं भारत के अधिकार मे है । उसका आधा भाग पाकिस्तान के कब्जे में हैं तो कुछ भाग पर चीन अपना अधिपत्य जमाए बैठा है ।
पाकिस्तान के अधिकार वाले कश्मीर को पाक अधिकृत कश्मीर यानी POK कहते हैं । और चीन के अधिकार वाले कश्मीर को चीन अधिकृत कश्मीर यानी कि COK कहते हैं । भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा LOC रेखा कहते हैं । लेकिन वास्तविक अंतरराष्ट्रीय सीमा रेडक्लिफ रेखा हैं । इस प्रकार भारत और चीन के बीच की सीमा को LAC कहते हैं ।  LAC का मतलब होता है लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल रेखा । जबकि वास्तविक अंतरराष्ट्रीय सीमा मेक मोहन रेखा कहलाती हैं । और POK को पाकिस्तान अपनी भूमि घोषित करने में इसलिए असमर्थ है क्योंकि वहां बहुलता से निवास करने वाले कश्मीरी पंडित और शिया मुसलमान पाकिस्तान के साथ रहना नहीं चाहते हैं । लेकिन वर्तमान में पाकिस्तान की सहमति से चीन इस क्षेत्र में लाखों डॉलर निवेश कर रहा है । भारत सरकार ने इस पर कई बार आपत्ति जताई है । परन्तु इस क्षेत्र पर पाकिस्तान का अधिकार है इसलिए कोई हल नहीं निकल पाता । अत: हम सब भारत वासियों को मिलकर यह प्रयास करना चाहिए कि पूरा कश्मीर दोबारा से भारत का हिस्सा बने जिससे POK क्षेत्र भी विकास के पथ पर आगे बढ़ सके ।

Tuesday, October 3, 2017

मुगल वंश

(1) बाबर
मुगल वंश का संस्थापक बाबर था । यह तैमूर के चुगताई वंश का एक मंगोल तुर्क लुटेरा था । दिल्ली का सुल्तान बनने से पहले बाबर फरगना का शासक था । इसके वंशजों की राजधानी समरकंद थी । 11 वर्ष की उम्र में ही बाबर ने राजा बनकर पादशाह की उपाधि ग्रहण की । भारत में आकर इसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया । बाबर ने तुलुगमा युद्ध नीति को अपनाकर भारत में चार युद्ध लड़े । 1526 में इसने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को बुरी तरह हराया । 1527 में बाबर ने मेवाड़ के राणा सांगा को आगरा के पास खानवा के युद्ध में परास्त किया । 1528 में चंदेरी के युद्ध में मेदिनी राय को बुरी पराजित किया । 1529 में घाघरा के युद्ध में अफगानों को हराया । बाबर का भारत पर पहला आक्रमण यूसुफजाई जाति के विरुद्ध था । खानबा के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि ग्रहण की । चंदेरी के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने राजपूतों के कटे हुए सिर की मीनार बनवाकर जिहदा का नारा लगवाया । बाबर अपनी उदारता के कारण कलंदर नाम से प्रसिद्ध था । बाबर ने मुगईयान नामक पद्य शैली का निर्माण करवाया । तथा काबुली बाग,जामी,बावरी,नूरअफगान और आगरा की मस्जिद बनवाई । उस्ताद अली और मुस्तफा बाबर के प्रसिद्ध तोपची थे । बाबर को उपवन का राजकुमार और मालियों का मुकुट भी कहते हैं । बाबर के चार पुत्र हुमायूं,कामरान,अस्करी और हिंदाल थे । तथा एक पुत्री गुलबदन बेगम थी । बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी लिखी है । आगरा में बाबर की मृत्यु हुई । उसके पार्थिव शरीर को पहले तो आगरा में स्थित है आराम बाग में दफनाया गया । किंतु बाद में शेरशाह सूरी ने इसे कब्र से खुदवाकर काबुल में पहुंचा दिया । और वहीं पर इसका मकबरा बनवा दिया गया ।                  {2} हुमायु
बाबर ने हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी बनाया था । दिल्ली का सुल्तान बनने से पहले हुमायूं बदस्खां का सूबेदार था । सुल्तान बनकर हुमायु ने अपना राज्य अपने सभी भाइयों में बराबर बराबर बांट लिया था । जो राजनैतिक दृष्टि से उस की सबसे बड़ी भूल थी । हुमायूं ज्योतिषी में विश्वास करता था । इसलिए उसने सप्ताह में सातों दिन अलग अलग रंग के कपड़े पहने के नियम बनाए । हुमायूं अफीम खाने का शौकीन था । 1532 में हुमायु ने दोहरिया के युद्ध में अफगान राजा महमूद लोदी को हराया । किंतु 1539 में हुमायूं को चौसा के युद्ध में शेरशाह सूरी से पराजय मिली । इस युद्ध में मुगल सेना की काफी तबाही हुई  । हुमायु ने युद्ध क्षेत्र से भागकर एक भिस्ती (नाव चलाने वाला) का सहारा लेकर किसी तरह गंगा नदी पार कर अपनी जान बचाई । जिस भिस्ती ने हुमायूं की जान बचाई थी उसे हुमायूं ने एक दिन के लिए दिल्ली का बादशाह बना दिया था । अब 1540 में हुमायु ने अपने भाई अस्करी और हिंदाल के साथ मिलकर पुनः शेरशाह सूरी से कन्नौज एवं बेलगांव का युद्ध छेड़ दिया । शेरशाह सूरी ने इस बार फिर हुमायूं को बुरी तरह पराजित किया । जिससे उसे मजबूर होकर अपनी गद्दी छोड़ कर इरान भागना पड़ा । हुंमायु के भाग जाने के बाद दिल्ली की सत्ता पर एक अफगान शासक शेरशाह सूरी ने अपना कब्जा कर लिया । हुमायु ने दिल्ली में दीनपनाह दुर्ग का निर्माण करवाया ।
                    शूरी वंश
       सूरी वंश 1540 से 1555 तक चला । शेरशाह सूरी

बिहार की एक छोटी सी जागीर के एक अफगान सरदार का पुत्र था । इसका बचपन का नाम फरीद था । इसने एक शेर का शिकार किया । इसलिए वहां के राजा बहार खान लोधी ने इसे शेरशाह की उपाधि दी । शेरशाह सूरी ने हुमायूं को चौसा एवं कन्नौज के युद्ध में हराकर हिंदुस्तान की राज्यसत्ता पर कब्ज़ा किया । शेरशाह सूरी ने भारत में चांदी का रुपया और तांबे के दाम नामक सिक्के चलाएं । शेरशाह सूरी ने परिवहन की व्यवस्था में सुधार करते हुए ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण करवाया । जिसे मुगलकालीन रोड या जी.टी.रोड भी कहते हैं । शेरशाह सूरी ने झेलम नदी के तट पर रोहतासगढ़ और दिल्ली के निकट शेरगढ़ नामक नगर बसाए । शेरशाह ने दिल्ली के पुराने किले को बनवाकर उसमें अंदर 'किला कुहना' मस्जिद बनवाई । तथा शहर पनाह का निर्माण करवाया । जो आज वहां का लाल दरवाजा है । शेरशाह ने ही भारत में मदरसों का निर्माण करवाया । 1547 में जब शेरशाह ने कलिंजर के किले का घेरा डाला तो बारूद के एक ढेर में अचानक आग लगने के कारण वहां खड़े शेरशाह की धमाके के साथ मृत्यु हो गई । शेरशाह सूरी के शासनकाल में दिल्ली में लंगर व्यवस्था लागू की गई थी । जहां पर 500 तोला सोना रोज व्यय होता था । शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद  उसका योग्य एवं चरित्रवान पुत्र जलाल खान लोदी गद्दी पर बैठा । लेकिन उसने अपने बड़े भाई आदिल खान के रहते गद्दी स्वीकार नहीं की । तो आदिल खान ने अमीरों एवं सरदारों के विशेष आग्रह पर राजपद ग्रहण किया । इसने इस्लाम शाह की उपाधि धारण की । और 1553 तक शासन चलाया । इसने 5 किले बनवाए शेरगढ़,इस्लाम गढ,रसीद गढ़,फिरोज गढ़,मान कोटर आदि । इस्लाम शाह के समय विद्रोह और षड्यंत्र का दौर चलता रहा । और इसकी हत्या के लिए कई बार प्रयास किया गया । इस्लाम शाह ने संदेह के घेरे में आने वाले विश्वासपात्र सैनिकों हकीमों और अधिकारियों की हत्या करवा दी । किंतु उसने अपने एक रिश्तेदार साले को छोड़ दिया । 1553 में मुगलों के आक्रमण के समय इस्लाम शाह एक गंभीर रोग से पीड़ित था । फिर भी वह रोग सैया से उठ कर ती हजार सैनिक साथ लेकर युद्ध के लिए चल दिया । यह खबर पाकर मुगल सेना भाग खड़ी हुई । हुमायु के भाग जाने के बाद इस्लाम शाह ने अपनी उपराजधानी ग्वालियर में आकर आराम फरमाया । वही पर उसकी मृत्यु हो गई । इस्लाम शाह सूरी सलीम शाह के नाम से भी विख्यात था । इसकी मृत्यु के बाद सूरी साम्राज्य 5 भागों में बट गया । जिसका फायदा हुमायु ने उठाया । इस्लाम शाह के बाद उसका 12 वर्षीय पुत्र फिरोज गद्दी पर बैठा । किंतु इसके राज्य अभिषेक के 2 दिन बाद ही इसके मामा मुवरिज खान ने इसकी हत्या कर दी । और स्वयं मोहम्मद शाह आदिल के नाम से सुलतान बन गया । लेकिन आदिल के चचेरे भाई  इब्राहिम खान सूर ने विद्रोह करके दिल्ली की गद्दी को छीन लिया । इसके बाद इसके भाई सिकंदर सूर ने दिल्ली की गद्दी पर शासन किया । सिकंदर को मुगलों ने पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर अधिकार किया । सिकंदर का असली नाम अहमद खान था । इसे हुमायूं से मात खानी पड़ी । हारने के बाद यह शिवालिक की पहाड़ियों पर भाग गया । इसके भाई आदिल शाह सूरी ने मुगलों से युद्ध किया । परंतु हार गया । इस तरह सूरी राजवंश का अंत हो गया ।            हुमायु ने लगभग 15 वर्षों तक निर्वासित जीवन व्यतीत किया था । 1542 में हुमायूं को अजमेर के राजा वीरसाल के महल में हमीदा बेगम के गर्भ से अकबर के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद सूरी साम्राज्य पांच भागों में बट गया था । जिसका फायदा हुमायूं ने उठाया । और उसने तुरंत ही ईरान की सहायता से कांन्धार और काबुल को जीत लिया । 1555 में हुमायु ने लाहौर और पंजाब को जीतकर दिल्ली और आगरा पर अपना कब्जा कर लिया । इस प्रकार भारत में एक बार फिर मुगल साम्राज्य की स्थापना हो गई । सन 1556 में दीनपनाह दुर्ग की पुस्तकालय की सीढ़ियों से फिसलकर हुमायूं की मृत्यु हो गई । और इसे दिल्ली में दफना कर वहीं पर हाजी बेगम ने इसका मकबरा बनवा दिया ।                  
                     {3} अकबर
हुमायूं की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अकबर उत्तराधिकारी बना । अकबर को 1556 में कलानौर में राज्यभिशेष कर बादशाह घोषित कर दिया गया । उस समय अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष थी । इसीलिए उसके संरक्षण के लिए बैरम खान को नियुक्त किया गया । इसी समय शेरशाह सूरी के पुत्र आदिलशाह सूर ने अपने प्रधानमंत्री हेमू के नेतृत्व में सेना लेकर दिल्ली पर हमला बोल दिया । और उसने दिल्ली एवं आगरा से मुगलों को भगा दिया । इससे दुखी होकर अकबर ने बैरम खान की मदद से 1556 में पानीपत के द्वितीय युद्ध में हेमू को बुरी तरह पराजित कर दिया । अब एक बार फिर आगरा तथा दिल्ली अकबर के नियंत्रण में आ गए । अगले चार वर्षों तक बैरम खान प्रधानमंत्री के पद पर रहा । किंतु चार वर्षों बाद दरबार के कुछ लोगों ने अकबर को बैरम खान के खिलाफ भड़का दिया । जिससे अकबर ने बैरम खान को प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया । अब स्वतंत्र होकर अखबार ने अपने पहले सैन्य अभियान में मालवा के शासक बाज बहादुर को पराजित कर दिया । इसके बाद 1561 में बैरम खान को हज के लिए मक्का भेज दिया गया । किन्तु रास्ते में गुजरात के पास नाव से उतरते ही मुबारक खान लोहानी मिल गया । इसने मिलने के बहाने बैरम खान की पीठ में छुरा घोंप दिया । और बैरम खान की हत्या कर दी । बैरम खान हुमायूं का साढू और अंतरंग मित्र था । अब शासन की पूरी बागडोर अकबर के हाथों में आ गई । अकबर ने विजय और साम्राज्य के शुद्धिकरण की नीति अपनाई । उस समय रानी दुर्गावती गोंडवाना राज्य पर राज्य करती थी । अकबर ने 1564 में अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना राज्य पर आक्रमण करने के लिए भेजा । इसने  रानी दुर्गावती को पराजित करके वध कर दिया । सभी जगह अकबर ने अपनी राज्यसत्ता स्थापित कर ली थी । किंतु मेवाड़ एक ऐसा राज्य था जिसने मुगलों की अधीनता को स्वीकार नहीं किया । इसलिए 1576 में मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप  और मुगल सम्राट अकबर के बीच घमासान युद्ध हुआ । इसे हल्दीघाटी का युद्ध कहते हैं । इसमे मुग़ल विजई रहे । महाराणा प्रताप और उसके साथी सुरक्षित स्थान पर चले गए । इसके पश्चात अकबर ने अहमदनगर पर हमला कर दिया । उस समय वहां चांदबीबी का शासन था । इस युद्ध मैं चांद बीवी की हत्या हो गई । और अहमदनगर अकबर के अधिकार में आ गया । इसके पश्चात अकबर ने राजपूत राजाओं से मित्रता कर ली । और धीरे-धीरे सभी राजाओं को अपने अधिकार में ले लिया । अब 1601 में अकबर एवं दक्षिण भारत के शासकों के मध्य युद्ध हुआ । इसे असीरगढ़ का युद्ध कहते हैं । इसमें अकबर विजयी रहा । और दक्षिणी भारत को भी अपने अधिकार में ले लिया । इस प्रकार संपूर्ण भारत पर अकबर का अधिकार हो गया । अकबर 4 वर्ष 4 महीने और 4 दिन पड़ा था । बचपन मे अकबर को कबूतरों और पक्षियों के साथ खेलना पसंद था । अकबर ने फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया था । और वहां पर एक इबारत खाना बनवाया था । जहां पर अकबर सभी धर्मों के विद्वानों के साथ सत्संग करता था । अकबर ने सभी धर्मों को एक समान मानकर दीन-ए-इलाही नामक एक संगठन बनाया । अकबर के शासनकाल में वित्त विभाग के अधिकारी सूबेदार और दीवार होते थे । तथा सैनिक अधिकारी फौजदार होते थे । और सरकारी सेवा करने वाले अधिकारियों को मनसब कहा जाता था । अकबर ने अपने दरबार में नवरत्न रखे । अबुल फजल विद्वान और सलाहकार था । राजा मानसिंह अनुभवी सेनापति था । राजा टोडरमल प्रसिद्धि भूमि सुधारक था । तानसेन संगीतकार था । बीरबल चतुर वाकपटु सलाहकार था । अब्दुल रहीम खानखाना कवि थे । फैजी कवि और दार्शनिक था । मुल्ला दो प्याजा मसखरा और मनोरंजनर्ता था । अकबर ने फतेहपुर सीकरी में दीवान-ए-आम,दीवान-ए-खास,पंचमहल,जोधाबाई का महल,बीरबल का महल,शेख सलीम चिश्ती की दरगाह,जामा मज्जित और बुलंद दरवाजा बनवाया । अकबर की मृत्यु 1605 में हुई । इसे सिकंदरा में दफना कर वहीं पर जहांगीर ने इसका मकबरा बनवा दिया ।रानी दुर्गावती

गोंडवाना राज्य के दलपत शाह की पत्नी थी विवाह के 4 वर्ष बाद दलपत शाह का निधन हो गया उस समय रानी पर एक 3 वर्षीय पुत्र नारायण था अतः रानी ने स्वयं गोड़वाना का शासन संभाल लिया उसने अपनी दासी के नाम पर चेरी ताल और अपने नाम पर रानी ताल और अपने दीवान के नाम पर आधार ताल बनवाया एक बार तो इन्होंने मुगल सेना को पराजित कर दिया किंतु दूसरी बार मुगल सेनापति आशफ खान दुगुनी सेना लेकर पहुंच गया  वह समय रानी का पक्ष दुर्बल था रानी ने अपने पुत्र को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया तभी अचानक एक तीर उनकी भुजा में लगा जिसे रानी ने निकाल फेंका दूसरा तीर रानी की आंख को भेद गया जिसे भी रानी ने निकाल फेंका तीसरा तीर रानी की गर्दन में जाकर धस गया अंततः रानी ने अपने वजीर आधार सिंह से आग्रह किया कि वह रानी की गर्दन काट दे पर इसके लिए वह तैयार नहीं हुआ तो रानी ने अपनी कटारी उठाकर स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्महत्या कर ली मालवा के शासक बाज बहादुर ने रानी दुर्गावती पर कई बार हमला किया कटंगी घाटी के युद्ध में रानी दुर्गावती ने बाज बहादुर की सेना को ऐसा रौंदा कि जिससे पूरी सेना का सफाया हो गया            
{4} जहांगीर

अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जहांगीर 1505 में गद्दी पर बैठा जहांगीर का जन्म फतेहपुर सीकरी में भरतपुर के राजा भारमल की पुत्री मरियम जमानी के गर्भ से हुआ इसका बचपन का नाम सलीम था तथा इसने नसरुद्दीन की उपाधि प्राप्त की राजा बनते ही सके पुत्र शाहजादा खुसरो ने सिक्खों के पांचवे गुरु अर्जुन देव के साथ मिलकर जहांगीर से युद्ध छेड दिया  जहांगीर ने इसे पकड़वाकर अंधा करके जेल खाने में डाल दिया और अर्जुन देव पर आर्थिक दंड का आरोप लगाकर मृत्युदंड की सजा सुना दी जहांगीर ने आगा रजा के नेतृत्व में आगरा में एक चित्रशाला बनवाई और निसार नामक सिक्के चलवाए जहांगीर का विवाह जोधा बेगम के साथ हुआ था  किंतु 1611 में इसने एक सुंदर और बुद्धिमान विधवा स्त्री नूरजहां से दूसरा विवाह किया नूरजहां की मां अस्मिता बेगम ने गुलाब से इत्र  निकालने की विधि खोजी जहांगीर मदिरापान का बहुत शौकीन था  इसलिए अकबर ने इसे घर से भगा दिया था  तो इसने कुछ समय तक मेवाड़ में शरण ली जहांगीर ने शहजादे खुर्रम को मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप के पुत्र  अमर सिंह से युद्ध करने के लिए भेजा तो अमर सिंह ने परास्त होकर खुर्रम से संधि कर ली जहांगीर ने कांगड़ा के युद्ध में सेना भेज कर राजपूतों को परास्त किया तथा चांदबीबी के पुत्र मलिक अंबर पर आक्रमण कर अहमदनगर को जीतकर खुर्रम को सौंप दिया जहांगीर ने अपनी दीवार पर सोने की जंजीर वाली घंटी लगवा दी थी इसका उपयोग सही न्याय न होने पर जनता द्वारा किया जाता था इसके शासनकाल में पुर्तगालीयों ने समुद्री डकैती शुरू कर दी थी इसके शासनकाल में ही अंग्रेज भारत में व्यापार करने के लिए आए इसकी मृत्यु लाहौर में हुई थी तथा नूरजहां ने वहीं पर शाहदरा नामक स्थान पर इसका मकबरा बनवा दिया{5} शाहजहां


शाहजहां जहांगीर का तीसरा पुत्र था जो जोधपुर के राजा उदय सिंह की पुत्री  जोधाबाई के गर्भ से उत्पन्न हुआ था  इस के बचपन का नाम खुर्रम था इसका विवाह नूरजहां के भाई आसिफ खान की पुत्री मुमताज बेगम के साथ हुआ  यह छल से उत्तराधिकारी बना  इसने जहांगीर से इसलिए विद्रोह किया क्योंकि उसे डर था कि उसका पिता उसके भाइयों में से किसी और को उत्तराधिकारी ना बना दे तो जहांगीर ने महावत खान को भेजकर इस विद्रोह का दमन करवा दिया था जहांगीर की मृत्यु के समय शाहजहां दक्षिण में था  तो उसके ससुर आसिफ खान ने शाहजहां के आने तक खुसरो के लड़के डाबर बक्स को गद्दी पर बैठाया और फिर उसका कत्ल कर दिया इसलिए इसको बलि का बकरा कहा गया सुल्तान बनते ही शाहजहां ने गो हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया और हिंदुओं को मुस्लिम दास रखने पर पाबंदी लगा दी शाहजहां ने यह नियम बनाया कि यदि कोई हिंदू स्वेच्छा से मुसलमान बनता है तो उसे अपने पिता की संपत्ति के बेदखल कर दिया जाएगा शाहजहां ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया शाहजहां के 4 पुत्र दारा सुजा औरंगजेब और मुराद थे तथा तीन पुत्री जहान आरा रोशनआरा और गोहन आरा थी  जिसमें औरंगजेब सबसे अधिक ज्यादा दुष्ट और हैवान था  शाहजहां की बेगम मुमताज एक बार बहुत बीमार पड़ गई थी उनके बचने की कोई आशा नहीं थी तो शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था शाहजहां ने दिल्ली में लाल किला मोती मस्जिद दीवाने आम दीवाने खास और जामा मस्जिद बनवाई शाहजहां ने अपने लिए दो मोरों की आकृति का एक सिंघासन बनवाया था जिसे तख्त ए ताऊस कहां गया इसे बनवाने में लगभग 7 वर्ष लगे थे गोलकुंडा के वजीर मीर जुमला द्वारा  भेंट किया गया कोहिनूर हीरा शाहजहां ने तख्त ए ताऊस मैं लगवा दिया जिसे 1739 में इरान आक्रमणकारी नादिर साह अपने साथ ले गया सन 1657 में शाहजहां बीमार हो गया चिकित्सकों ने उसकी मृत्यु की अफवाह फैला दी शाहजहां ने दारा को अपना उत्तराधिकारी बनाकर उसे साह बुलंद इकबाल की उपाधि दी शाहजहां के चारों पुत्र योग्य थे तो सिंहासन को पाने के लिए चारों में संघर्ष होने लगा औरंगजेब ने अपने तीनों भाइयों को पराजित करके मार डाला तथा अपने पिता शाहजहां को अंधा करके आगरा के किले में डाल दिया और स्वयं सुलतान बन गया 2 वर्षों बाद शाहजहां की आगरा के किले में मृत्यु हो गई  तो औरंगजेब ने मुमताज बेगम के बगल से ताजमहल में शाहजहां को दफना दिया और ताजमहल को शाहजहां का मकबरा घोषित कर दिया शाहजहां ने वीर सिंह बुंदेला के पुत्र जुझार सिंह को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया था  शाहजहां ने पुर्तगालियों को हुबली क्षेत्र से भगा दिया था क्योंकि यहां हुबली नदी के सहारे बंगाल की खाड़ी में डकैती करते थे एक प्रकार का जहां के शासन काल को वैभव एवं विलासिता का युग कहते हैं{6} औरंगजेब
औरंगजेब का जन्म गुजरात के दोहद नामक स्थान पर मुमताज के गर्भ से हुआ था । यह इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयाई था । जो शुन्नी धर्म को मानता था । इसे जिंदा पीर कहते हैं । यह संगीत से नफरत करता था । सिंहासन पर बैठने से पहले यह दक्कन का गवर्नर था । इसने दिल्ली के लाल किले में अपना राज्यभिषेक करवाया था । यह आलमगीर के नाम से सिंहासन पर बैठा । इसने दो बार अपना राज्यभिषेक करवाया था । इसने अपने पिता शाहजहां को पकडकर अंधा करके कैदखाने में डाल दिया था । और सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया । यह जेल खाने में अपने पिता को कुत्तों से कटवाता था । और जेल खाने में अपने पिता को मारने के लिए दो बार जहर भिजवाया । किंतु जिन व्यक्तियों को इसने जहर भिजवाया था  वे शाहजहां के वफादार थे । इसलिए उस जहर को वे खुद  पी गए ।इसने अपने बडे भाई दारा को पकड़कर  राजा बनते ही इसने हिंदू त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया और हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनने को मजबूर कर दिया उसने कई पंडितों की चुटिया कटवा डाली थी और वह रोज ढाई मन जनेऊ नहीं जला देता तब तक उसे नींद नहीं आती थी  इसने मंदिरों को तुडवाकर वहां पर मस्जितें , मतलब और कसाईखाने बनवा दिए औरंगजेब ने मथुरा और वृंदावन में विनाश का तांडव मचा दिया उसने भगवान की मूर्तियों को तोड़ तोड़ कर कसाइयों को मास तोड़ने के लिए दे दिया औरंगजेब ने गौ हत्या की खुली छूट दे दी औरंगजेब की नीति का सिक्खों के नवे गुरु तेग बहादुर
ने विरोध किया  तो यह तेग बहादुर को कैद करके दिल्ली ले गया और दिल्ली के चांदनी चौक में ले जाकर सभी जनता के सामने तेग बहादुर का सिर काट दिया तेग बहादुर का सिर जहां काटा गया था वहां पर वर्तमान में शीशगंज नामक गुरुद्वारा बना हुआ है इसके बाद तेग बहादुर के बेटे गुरु गोविंद

ने मुगलों से संघर्ष किया तो औरंगजेब ने गुरु गोविंद के 2 पुत्रों को जिंदा दीवाल में चुनाव डाला था । औरंगजेब की गुरु का नाम मीर मोहम्मद हाकिम था । औरंगजेब ने 49 वर्षों तक राज्य किया । छत्रसाल को उसके गुरु प्राणनाथ ने औरंगजेब का वध करने के लिए एक खंजर दिया । और यह कहा कि इस खंजर को औरंगजेब के ऐसे चुभाना है कि जिससे उसके घाव हो जाए । किंतु वह मर ना पाए  छत्रसाल ने गुरु के कहे अनुसार वैसा ही किया । उस खंजर में प्राणनाथ नहीं ऐसी जहरीली दवा लगा दी थी उससे औरंगजेब 3 महीने मे तड़प तड़प कर मरा । औरंगजेब का निधन अहमदनगर में हुआ था । किंतु इसे दौलताबाद में दफना कर वहीं पर इसका मकबरा बनवा दिया गया ।x


कश्मीर की कहानी

सन् 1947 मे जब भारत और पाकिस्तान देश आजाद हुए थे । तब जम्मू और कश्मीर देश की सबसे बडी रियासत थी । इसके दो हिस्से थे । पहला भाग जम्मू औ...

भारत पाकिस्तान युद्ध