Tuesday, August 22, 2017

वायसराय

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से भयभीत होकर ब्रिटिश सरकार ने भारत में अंग्रेजो के विरुद्ध उत्पन्न हुए असंतोष के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को उत्तरदाई ठहराया । और 1858 का एक अधिनियम बनाकर भारत का शाशन सीधे इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के अधीन करके ब्रिटेन की संसद को सोंप दिया । वायसराय को भारत में इंग्लैंड की महारानी का प्रतिनिधि बनाया गया । ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल 
                          लॉर्ड कॅनिंग 

लॉर्ड कैनिंग को भारत का प्रथम वायसराय बनाया गया । इस प्रकार लॉर्ड कैनिंग को भारत का अंतिम गवर्नर जनरल तथा भारत का प्रथम वायसराय कहते है । कैनिंग ने 1856 मे विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बनाकर लागू किया और  1857 मे बम्बई , मद्रास , तथा कलकत्ता मे विश्वविद्यालय खोले । कैनिंग ने इंडियन हाईकोर्ट एक्ट बनाकर बम्बई , मद्रास , तथा कलकत्ता मे उच्च न्यायालय की स्थापना की । कैनिंग ने ही मैकाले की दंड संहिता को  1858 मे कानून बनाकर 1859 मे अपराध विधान संहिता लागू की । 1861 मे लोर्ड कैनिंग ने डलहोजी की राज्य हडप नीति की प्रथा को समाप्त कर दिया । लोर्ड कैनिंग के समय 1 नवम्बर 1958 को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया ने घोषणा की कि अंग्रेजी राज्य में अब भारत का कोई भी नवीन क्षेत्र नहीं मिलाया जाएगा । भारतीयों की रीति रिवाज एवं प्राचीन परंपराओं का सम्मान किया जाएगा । भारतीय राजाओं के सम्मान एवं अधिकारों का हनन नहीं किया जाएगा । उनके अधिकार सुरक्षित रहेंगे । प्रशासनिक सेवाओं मैं जाति एवं धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाएगा । भारतीय प्रजा को ब्रिटिश प्रजा के समान माना जाएगा । इंग्लैंड की महारानी कि इस घोषणा का भारत में स्वागत हुआ । तथा शिक्षित वर्ग ने इसकी प्रशंसा की । किंतु इसके वादे मात्र छलावा सिद्ध हुए । क्योंकि ब्रिटिश सरकार के लिए इंग्लैंड के हित सर्वोपरि थे । और भारत के हित महत्वहीन । 1857 के स्वतंत्रता संग्राम ने अंग्रेजी शासन की नीव हिला दी थी । इसलिए अंग्रेजों ने पुनः सोच समझकर ऐसे सैनिक नियुक्त किए जो उनके विरुद्ध शस्त्र न उठा सकें । अंग्रेजो ने भारतीय सैनिकों की संख्या कम करके इंग्लैंड और यूरोपिय सेना में वृद्धि की । अंग्रेजों ने इस ढंग से सेना को सुसज्जित किया कि यदि कोई एक सेना विद्रोह करें तो दूसरी सेना उसे आसानी से दबा दे । भारतीय सेनाओं को युद्ध के लिए विदेश भेजा जाने लगा । ब्रिटिश सरकार ने अपनी आर्थिक नीति में परिवर्तन कर दिया । अंग्रेजों ने भारतीयों के पूर्ण दोहन एवं शोषण की नई प्रवृत्ति को अपनाया । ब्रिटिश सरकार ने आयकर को समाप्त कर दिया । जिससे भारत में स्वतंत्र व्यापार की नीति प्रारंभ हो गई । तथा अनेक विदेशी कंपनियों ने भारत में व्यापार करने का अड्डा बना लिया । जिससे भारत के उद्योग धंधे समाप्त होने लगे । यह नई नीतियां सिर्फ इंग्लैंड के हित में बनाई गई थी । अंग्रेजों ने ऐसी नीति चलाई जिसे भारतीय जमींदार और साहूकार फलने फूलने लगे । तथा ग्रामीण और मजदूरों की स्थिति दयनीय होने लगी । मजदूरों का शोषण होने से बाल मजदूरी को प्रोत्साहन मिला । जो भारतीयों के हित में नहीं था । इस प्रकार की नई नीति के कारण भारत का विकास रुक गया । अब अंग्रेजों को स्पष्ट हो गया कि भारत जैसे विशाल देश पर भारतीयों की सहायता के बिना शाशन करना बुद्धिमानी नहीं है और उन्होंने भारतीयों को शासन में सम्मिलित करना उचित समझकर 1858 का एक अधिनियम बनाकर उसे पारित किया । इस कानून से अंग्रेज़ो की वह नीति प्रारम्भ हुई जिसे "सहयोग की नीति" या "उदार निरंकुशता" का नाम दिया गया   इस अधिनियम द्वारा भारत में सचिव पद का निर्माण किया गया । भारत के सचिव को सरकार की समस्त जिम्मेदारियां सौंपी जाती थी । वह इंग्लैंड में रहकर भारतीय प्रशासन का पूर्ण ध्यान रखता था । तथा इंग्लैंड की सरकार के प्रति उत्तरदाई था । इसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक परिषद बनाई गई । जिसे 'इंडिया कौंसिल' के नाम से जाना जाता था । इंग्लैंड में परिषद के इस कार्यालय को इंडिया ऑफिस करते थे । भारतीय सचिवालय के सभी कर्मचारियों के वेतन तथा अन्य खर्चों की राशि भारत से वसूली जाती थी । भारत के वायसराय लॉर्ड कैनिंग को सर्वोच्च प्रशासनिक पदाधिकारी माना जाता था । वायसराय की सहायता के लिए चार सदस्यों की एक समिति बनाई जाती थी । उसे परिषद करते थे । लोर्ड कैनिंग ने 1861 मे भारतीय परिषद अधिनियम बनाया यह पहला ऐसा अधिनियम था जिसमे विभागीय प्रणाली एवं मंत्रिमंडल प्रणाली की नीव रखी गई । इस अधिनियम मे प्रान्तो को स्थानीय या प्रांन्तीय विषयो के सम्बन्ध मे कानून बनाने का अधिकार दिए गए ।  1861 का अधिनियम भारत के संवैधानिक विकास के लिए किया गया था । इस अधिनियम द्वारा गवर्नर जनरल कौंसिल के सदस्यों की संख्या 4 से बढ़ाकर 5 कर दी गई । इसी प्रकार लेजिस्लेटिव कौंसिल सदस्यों की संख्या 4 से बढ़ाकर 12 कर दी गई । फिर भी कानून पर वायसराय की  स्वीक्रति आवश्यक थी । वायसराय को इनकी राय ठुकराने का पूर्ण अधिकार था । लोर्ड कैनिंग के बाद 1862 मे
                     लॉर्ड एल्गिन प्रथम 

लॉर्ड एल्गिन प्रथम वायसराय बना । जिसने बहावी आंदोलन का दमन किया । यह 1 वर्षों तक अपने पद पर रह पाया था कि भारत में ही इसकी मृत्यु हो गई । इसके के बाद 1863 मे
                      सर जॉन लॉरेन्स

 सर जॉन लॉरेंस वायसराय बना सर जॉन लॉरेंस ने पाकिस्तान के संबंध में अहस्तक्षेप की नीति अपनाई जिसे शानदार निष्क्रियता कहते हैं सर जॉन लॉरेंस के समय भूटान का महत्वपूर्ण युद्ध हुआ सर जॉन लॉरेंस के समय भारत में 1866 - (से 1878 तक) से भयानक अकाल पडना शुरु हुआ । अकाल के साथ साथ चेचक तथा बुखार भी फैलने लगा । इसने जॉन कैंपबेल के नेतृत्व में एक अकाल आयोग का गठन किया । सर जोन लोरैंस ने 1865 में भारत एवं यूरोप के बीच प्रथम समुद्री टेलीग्राम  सेवा शुरू की गई  । सर जॉन लॉरेंस के समय पंजाब में काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया । इसके बाद 1869 मे 
                       लॉर्ड मियो

लॉर्ड मियो भारत का वायसराय बना । इसनेअजमेर मे मियो कॉलेज की स्थापना की । 1870 में लोर्ड मियो ने वित्त के विकेंद्रीकरण की शुरुआत की । भारत में जनगणना की शुरुआत 1872 में लोर्ड मियो के शासनकाल में शुरू हुई । लोर्ड मियो ने 1872 में एक कृषि विभाग की स्थापना की । 1872 में अंडमान निकोबार दीप समूह में एक अफगान कैदी शेर खान ने चाकू मारकर लोर्ड मियो की हत्या कर दी । इसके बाद 1872 
                        लॉर्ड नॉर्थब्रुक 

लोर्ड नोर्थब्रुक  वायसराय बना । इसके शासनकाल में बंगाल में भीषण अकाल पड़ रहा था । इसने मल्हाराव गायकवाड़ को भ्रष्टाचार के आरोप में पद से हटाकर करके मद्रास भेज दिया था ।पंजाब का प्रसिद्ध कूका आंदोलन लॉर्ड नॉर्थबुक के समय हुआ । लार्ड नार्थ ब्रुक ने घोषणा की कि मेरा उद्देश्य करों को हटाना तथा आवश्यक वैधानिक कार्यवाही को बंद करना है ।
                           लॉर्ड लिटन 


   1875 में लॉर्ड लिटन वायसराय बना । लॉर्ड लिटन को प्रशासनिक अनुभव था । लिटन एक प्रसिद्ध उपन्यासकार निबंध लेखक और साहित्यकार था । इसलिए साहित्य जगत मैं लिटन को ओवन मेरिटिस के नाम से जाना जाता है । इस समय भारत में भीषण अकाल पड़ रहा था । तो लिटन ने रिचर्ड स्ट्रेची की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग की स्थापना की । 1 जनवरी सन 1877 को लिटन ने इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को दिल्ली में "कैंसर ए हिंद" की उपाधि से सम्मानित किया । 1878 में लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम पारित कर भारत के प्रसिद्ध राष्ट्रीय समाचार पत्र  सोन प्रकाश पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया । जिसका भारतीयों ने घोर विरोध किया । 1878 में लिटन ने भारतीय सस्त्र अधिनियम बनाया । इसके तहत अस्त्र-शस्त्र बेचने वाले भारतीय व्यापारियों को लाइसेंस रखना अनिवार्य कर दिया ।  लिटन ने अलीगढ़ में एक मुस्लिम-ऐग्लो -प्राच्य महाविद्यालय की स्थापना की । लॉर्ड लिटन ने मुक्त व्यापार की नीति का अनुसरण किया । उसने 29 वस्तुओं पर आयत कर हटा दिया । जिसका परिणाम यह हुआ कि समुद्री व्यापार मे व्रद्धि हुई । 1879 में लॉर्ड लिटन ने वैधानिक नागरिक सेवा की स्थापना करके सिविल सेवा परीक्षा में भारतीयों के सम्मिलित होने की अधिकतम आयु 20 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष करवा दी थी । इसकी भारतीय जनता ने कडी आलोचना की और इसका घोर विरोध किया । उसने ऐसा नियम बनाया कि अब अब तक जिन पदों पर नियमित नागरिक सेवाओं के सदस्य काम करते थे उन पर वायसराय तथा भारत मंत्री द्वारा स्वीकृत तथा स्थानीय सरकारों द्वारा मनोनीत जन्म से भारतीय व्यक्ति ही नियुक्त किए जाएंगे ।  उपयुक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि लॉर्ड लिटन ने जो कार्य किए उसमें अधिकतर कार्य भारत के अहित में थे । इसलिए उसकी इतनी ज्यादा आलोचना की गई थी उतनी किसी दूसरे वायसराय की नहीं हुई ।

   लॉर्ड रिपन --- 1880 - 1884


     1880 में लॉर्ड रिपन वायसराय बना । लॉर्ड रिपन ने द्वितीय अफगान युद्ध को समाप्त कर दिया । 1882 से लॉर्ड रिपन के शासनकाल से नियमित जनगणना की शुरुआत हुई । लॉर्ड रिपन 1882 में समाचार पत्रों की स्वतंत्रता को बाहाल करते हुए लॉर्ड लिटन के बनाए हुए वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त कर दिया । जिसकी भारतीयों ने द्रढता से आलोचना की थी । लॉर्ड रिपन ने नमक और कई वस्तुओं पर से संपूर्ण भारत में कर को कम कर दिया था ।  इसने स्वतंत्र व्यापारिक नीति को पूर्ण किया । इसने 1881 में प्रथम भारतीय फेक्टरी अधिनियम बनाकर 7 से 12 वर्ष के लड़कों को 9 घंटे से ज्यादा काम पर नहीं लगाने का नियम बनाया । लॉर्ड रिपन के समय शैक्षिक सुधारों के अंतर्गत विलियम हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया गया । जिसे हंटर आयोग कहते है । इस आयोग ने 1882 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की । लॉर्ड रिपन के समय भारतीय नागरिकों की सिविल परीक्षा में शामिल होने की अधिकतम आयु 18 वर्ष थी । और यह परीक्षा इंग्लैंड में होती थी । जिसमें भारतीय नागरिकों का सम्मिलित होना काफी कठिन था । रिपिन ने भारतीय नागरिकों की सिविल परीक्षा में सम्मिलित होने की अधिकतम आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करवा दी थी । लॉर्ड रिपन के शासनकाल में 1873 की भारतीय दंड संहिता के अनुसार यूरोपीय अपराधी के मुकद्दमों को सुनने का अधिकार सिर्फ यूरोपीय जज का था । इलबर्ट भारत सरकार का विधि सदस्य था । इसलिए उसने भारतीय मजिस्ट्रेटों को समान अधिकार दिलाने के लिए एक विधेयक बनाया । जिसे इल्बर्ट विल करते हैं । लॉर्ड रिपन और उसकी कौंसिल के स्वीकार होने के बाद यह बिल देश की विधानसभा में स्वीकार किया गया । लेकिन यूरोपीय जाति ने इस बिल की कटु आलोचना करते हुए विद्रोह कर दिया तो इस बिल को वापस लेना पड़ा । यूरोपीय जाति के इस विद्रोह को श्वेत विद्रोह के नाम से जाना गया । और समस्त यूरोपीय जाती ने नाराज होकर लॉर्ड रिपन को दरबार में उसे खरी-खोटी सुना कर उसका अपमान किया । और इंग्लैंड की सरकार ने इस बिल को स्वीकृति प्रदान नहीं की । इस प्रकार लार्ड रिपन अपने सभी देशवासियों का शत्रु बनने लगा तो उसने घबराकर 1884 में वायसराय के पद से इस्तीफा दे दिया । लॉर्ड रिपन ने अपने शासनकाल में भारतीयों के हित में कार्य किए । इसीलिए भारतीय जनता उसे दिल से चाहती थी ।  तभी तो वायसराय लॉर्ड रिपन इस्तीफा देकर अंतिम बार मुंबई की यात्रा कर रहा था तो उसके स्वागत के लिए भारतीय जनता का हुजूम वहां उमड पड़ा और सभी नागरिकों ने उसकी प्रशंसा की । इस प्रकार लोर्ड रिपिन को भारत के स्वराज्य तथा राष्ट्रीयता की प्रगति का सूत्रधार कहा जाता है । 

 लॉर्ड डफरिन --- 1884 - 1888


लॉर्ड लॅन्सडाऊन -- 1888 - 1894

लॉर्ड एल्गिन द्वतीय --- 1894 - 1899

लॉर्ड कर्जन  ---- 1899 - 1905

लॉर्ड मिंटो ---- 1905 - 1910




लॉर्ड हैस्टिंग ---- 1910 - 1916

लॉर्ड चेम्सफोर्ड --- 1916 - 1921



  1915 मे अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लोटे । और उन्होंने गोपाल क्रष्ण गोखले को अपना राजनैतिक गुरू बनाया । गांधी जी ने भारत मे आकर ठहरो और स्थिति का अध्यन करो और आगे बडो की नीति अपनाई । इस प्रकार भारत के राजनीतिक क्षेत्र में महात्मा गांधी का प्रवेश नवीन युग के प्रारंभ का सूचक माना जाता है । महात्मा गांधी ने भारतीय राजनीति और राष्ट्रीय आंदोलन को नया स्वरुप प्रदान किया । महात्मा गांधी के नेतृत्व में अनेक आंदोलन हुए । गांधीजी का भारत में पहला सत्याग्रह 1917 में बिहार के चंपारण से शुरू हुआ था । वहां के किसानों पर गोरे भारी अत्याचार कर रहे थे । गोरों ने तिनकठिया नामक एक नियम बनाया था । जिसके द्वारा किसानों को अपनी जमीन के एक हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य होती थी । जो बाद में अंग्रेजों द्वारा लूट ली जाती थी । गांधीजी भी स्थिति का जायजा लेने के लिए वहां पहुंचे । तो उनके दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड़ वहां पर उमड़ पड़ी। किसानों ने अपनी सारी समस्याएं गांधीजी को बता दी। तो इससे पुलिस हरकत में आ गई । पुलिस सुपरडेंट ने गांधी जी को जिला छोड़ने का आदेश दिया । तो गांधीजी ने यह आदेश मानने से इनकार कर दिया । अगले दिन गांधीजी को कोर्ट में हाजिर होना था । तो हजारों किसानों की भीड़ कोर्ट के बाहर जमा हो गई । गांधीजी के समर्थन में नारे लगाए जा रहे थे । हालात की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने पहले तो गांधीजी पर सौ रुपए का जुर्माना लगाया किंतु गांधीजी ने जुर्माना देने से इनकार कर दिया । तो फिर बाद में बिना जमानत के गांधी जी को छोड़ने का आदेश दिया । लेकिन गांधीजी ने कानून के अनुसार सजा की मांग की । अब ब्रिटिश सरकार ने मजबूत होकर एक जांच आयोग नियुक्त किया । गांधी जी को भी इसका सदस्य बनाया गया । परिणाम सामने था इसलिए कानून बनाकर सभी गलत प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया । वहां के किसान अपनी जमीन के मालिक बन गए । और गांधीजी ने भारत में अपनी पहली सत्याग्रह विजय का शंख फूंक दिया । गांधी जी चंपारण में ही थे । तभी अहमदाबाद के मिल मजदूरों ने उन्हें बुलाने का निमंत्रण भेजा । मिलों के मालिक मजदूरों को कठोर यातनाएं दे रहे थे । उनसे वेतन की अपेक्षा काम अधिक कराया जा रहा था । गांधीजी ने दोनों पक्षों से बातचीत करने के बाद उनका निर्णय मजदूरों के पक्ष में गया । लेकिन मिल मालिक मजदूरों को कोई भी आश्वासन देने को तैयार नहीं हुए । तो गांधीजी मजदूरों के साथ भूख हड़ताल पर बैठ गए । अब मालिक और मजदूरों के बीच एक बैठक हुई । जिससे समस्या का हल निकल गया । तो हड़ताल समाप्त कर दी गई । गुजरात के खेड़ा जिले में फसल बर्बाद हो चुकी थी । अंग्रेज गरीब किसानों से लगान चुकाने के लिए दबाव डाल रहे । थे गांधीजी ने एक गांव से दूसरे गांव के लिए किसानों के साथ पैदल यात्रा शुरू कर दी । और उन्होंने किसानों से कहा कि वे जब तक सत्याग्रह के मार्ग पर लगातार चलते रहे तब तक सरकार उनका लगान माफ करने की घोषणा न कर दे । चार महीने तक यह संघर्ष चला । इसके बाद सरकार ने गरीब किसानों के लगान माफ करने की घोषणा कर दी । 
          
      अब गांधी जी ने मुस्लिम जनता को अपने साथ सम्मिलित करके अंग्रेजी हुकूमत से लडना उचित माना । प्रथम विश्वयुद्ध में इंग्लैंड ने तुर्की को पराजित कर सीवर्स की संधि द्वारा खलीफा के पद को समाप्त कर दिया । ब्रिटेन के इस कार्य की भारत के मुसलमानों ने घोर निंदा की । और 1919 में मोहम्मद अली जिन्ना तथा मौलाना आजाद के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरोध में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ । जिसमे गांधी जी के साथ सम्पूर्ण कांग्रेस कमैटी ने मुसलमानों का पूर्ण सहयोग किया । इस प्रकार भारत की राजनीति मे गांधी युग की शुरुआत हुई । 
अब 8 मार्च 1919 को ब्रिटिश सरकार ने रोलेक्ट एक्ट पारित किया । जिसमें ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार प्राप्त हुए की पुलिस संदेह के घेरे में आने वाले किसी भी व्यक्ति को बिना किसी प्रमाण के गिरफ्तार करके सजा सुनाई जा सकती है । इसे आतंकवादी अपराधी अधिनियम भी कहा गया । भारतीयों ने इस बिना अपील , बिना वकील और बिना दलील के लागू होने वाले कानून की घोर निंदा की । और गांधीजी ने इसे शैतान सरकार का काला कानून कहा । इसके विरोध में पूरे देश में 1 दिन का उपवास रखा गया । और दुकानें बंद तथा हड़ताल रही । 6 अप्रैल का दिन राष्ट्रीय अपमान दिवस के रूप में मनाया गया गांधीजी ने असहयोग आंदोलन चलाने का निश्चय कर लिया । इस एक्ट का पूरे देस मे विरोध होने लगा । पंजाब मे इस एक्ट का विरोध कर रहे पंजाब के लोकप्रिय नेता सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू 
                              
को अंग्रेजों ने बिना किसी अपराध के गिरफ्तार करके काले पानी की सजा सुना दी थी । जिसके विरोध में लोगों ने एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला । जिसे अंग्रेजों ने काफी रोकने का प्रयास किया किंतु वह सफल नहीं हुए । तो जुलूस करने वाले लोगों ने गुस्से में आकर सरकारी इमारतों में आग लगा दी । अमृतसर की ऐसी स्थिति से घबराकर सरकार ने 10 अप्रैल 1919 को शहर का प्रशासन सैन्य अधिकारी जनरल डायर 
                            
को सौंप दिया । जिसने सभा आयोजन एवं प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया । मगर यह सूचना जनता को पता नही चल पाई । 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने एक विरोध सभा का आयोजन किया । जिसमें लगभग 10 हजार लोग एकत्रित होकर अपने काम मे लगे हुए थे । तभी अचानक जनरल डायर अपने 90 सशक्त सैनिकों के साथ वहां आकर मुख्य द्वार को घेर लेता है । और लोगों को सूचित किए बिना सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दे देता है । सैनिकों  देखते ही देखते 1650 गोलियां लोगों के सीने में दाग देते है । सैकड़ों लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग में स्थित कुए में जिंदा कूद जाते है । भारी हडकंप मच जाता है । इसमें लगभग 1 हजार लोग मारे  जाते हैं । और 2 हजार से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हो जाते है । ब्रिटिश सरकार जनरल डायर को पद से हटा देती है । किंतु उसकी निंदा नहीं करती है । बल्कि उसे ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करने वाला शेर मानकर उसे एक रत्न जडित तलवार भेंट करती है । इस दावानल कार्य की पूरा संसार  निंदा  करता है । डायर की क्रूरता भरी करतूत से अनेक अंग्रेजों की आत्मा तक कांप जाती है । भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह  13 अप्रैल 1940 को लंदन में जनरल डायर को गोली से मारकर इस हत्याकांड का बदला लेता है । उधम सिंह को 4 जून सन 1940 को इंग्लैंड में फांसी दे दी जाती है । 
        ब्रिटिश सरकार की दमन नीति अत्याचार और जलियांवाला बाग हत्याकांड से दुखी होकर गांधीजी ने 31 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया । सितम्बर 1920 मे कांग्रेस का अधिवेसन कलकत्ता मे हुआ । जिसकी अध्यक्षता लाला लाजपतराय ने की । इस अधिवेसन मे गांधी जी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा । इसके बाद दिसम्बर 1920 मे कांग्रेस का अधिवेसन नागपुर मे हुआ । इस अधिवेसन की अध्यक्षता वीर राघवाचार्य ने की । इस अधिवेसन मे असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पास कर दिया गया । और संपूर्ण भारत में इसकी सूचना पहुंचा दी । इस आंदोलन में संपूर्ण भारत में विदेशी वस्तुओं एवं कपडों का बहिष्कार करके स्वदेशी वस्तुऐं एवं खादी के वस्त्र अपनाने की घोषणा की गई । कई लोगों ने सरकारी उपाधि और अवेतनिक पदों को त्याग दिया । और सरकारी तथा अर्धसरकारी उत्सवों का बहिष्कार किया । कई स्थानों पर लोगों ने सरकारी व सरकार से सहायता प्राप्त विद्यालयों से अपने बच्चे हटा लिए । और राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान बनाने की मांग की । इस आंदोलन में लोगों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित किसी भी प्रकार के चुनाव में हिस्सा न लेने का वादा किया । और अंग्रेजी न्यायालयों का बहिष्कार करके अपने विवादों का निर्णय सीधे पंचायतों द्वारा करने की घोषणा स्वीकार की । जब असहयोग आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था । तब चोरी चौरा नामक स्थान पर एक अप्रिय घटना घट गई । जिसके कारण गांधी जी को असहयोग आंदोलन स्थगित करना पडा । 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चोरी-चौरा ग्राम मे कांग्रेस का जुलूस अनियंत्रित भीड़ के साथ निकल रहा था । तभी अचानक पुलिस ने इन आंदोलनकारियों पर गोली चला दी । जिससे जनता अनियंत्रित हो गई । और जनता ने पुलिस थाने को घेरकर उसमे आग लगा दी । जिसमें 21 सिपाही और एक थानेदार जलकर मर गए । अहिंसा के पुजारी गांधी इस हिंसा को कैसे बर्दाश्त करते थे । इसलिए 12 फरवरी 1922 को गांधीजी को असहयोग आंदोलन स्थगित करना पडा । गांधी जी के इस फैसले की संपूर्ण भारत में आलोचना की गई । ब्रिटिश सरकार ने 10 मार्च 1922 को गांधीजी को गिरफ्तार कर 6 वर्ष के लिए जेल भेज दिया । किंतु बाद में गांधीजी के बीमार हो जाने के कारण उन्हें समय से पूर्व 5 फरवरी 1924 को रिहा कर दिया गया



लॉर्ड रिडिंग ---- 1921 - 1926


        कांग्रेस के प्रशिद्ध नेता चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू का मानना था कि गांधीजी की गिरफ्तारी से भारतीय राजनीति में एक रिक्तता आई है । इस रिक्तता को भरना जरूरी है । इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए 1 जनवरी सन 1923 को चितरंजन दास एवं मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद में स्वराज पार्टी की स्थापना की । उनका मानना था कि गांधी जी को असहयोग आंदोलन वापस नहीं लेना चाहिए था । क्योंकि इस आंदोलन को ब्रिटिश हुकूमत को भयभीत करने वाली सफलता मिल रही थी । अब कांग्रेस की गांधीवादी नीति मे बदलाव करना उचित है । बदलाव के लिए इन्होने कांग्रेस पार्टी की अनुमति मांगी तो डॉ.राजेंद्र प्रसाद और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इसका विरोध किया । क्योंकि ये गांधीवादी नीति में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते थे । अब स्वराज दल के नेताओं ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया । इस प्रकार इनकी स्वराज पार्टी को कांग्रेस के खिलाफ हो गई । इसके अध्यक्ष चितरंजन दास तथा सचिव मोतीलाल नेहरु बने । जिसका उद्देश्य भारत को स्वराज दिलाना था । बाद में जब गांधीजी जेल से वापिस आ गए तो 6 नवंबर 1924 को स्वराज पार्टी के नेताओं को कांग्रेस का अभिन्न अंग घोषित कर दिया । किंतु 1925 में चितरंजन दास की मृत्यु के बाद इस पार्टी का अंत हो गया ।   






लॉर्ड एर्विन ---- 1926 - 1931

     1926 में लॉर्ड इरविन भारत का वायसराय बना । इसके समय में 1927 में साइमन कमीशन भारत आया  था । साइमन कमीशन 1919 के अधिनियम की व्यवस्था का मूल्यांकन करने के लिए एक आयोग लेकर भारत मे आया था । इस आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन थे । इसे 'साइमन आयोग' भी कहते हैं । इस आयोग के अध्यक्ष और सभी 7 सदस्य अंग्रेज थे । इस कमीशन में एक भी भारतीय नहीं था । इस कमीशन ने जिन बातों पर विचार करने को कहा था । उससे भारतीय जनता को स्वराज्य प्राप्त करने की जरा सी भी आशा नहीं थी । अतः भारतीय जनता ने इस आयोग का घोर विरोध किया । यह आयोग 3 फरवरी 1928 को मुंबई पहुंचा । तो उसे दिन सारे देश में हड़ताल रही । और उसे जगह जगह काले झंडे दिखाए गए । और 'साइमन वापस जाओ' के नारे लगाए गए । मुंबई एक स्थान पर इस कमीशन का विरोध लालालाजपतराय कर रहे थे । उनके सीने और शरीर में पुलिस अधिकारी सांण्डर्स की लाठियों की गहरी चोट लगने से लाला लाजपत राय का देहांत हो गया । 

लार्ड इरविन के समय 28 अगस्त सन 1928 को पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की गई  थी । जिसमें भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया गया था । किंतु मुस्लिम लीग ने नेहरू रिपोर्ट के प्रावधानों को खारिज कर दिया । और जिन्ना ने अपना 14 सूत्री फार्मूला बनाया । जिसे जिन्ना फोर्मूला नाम दिया गया । 1928 मे मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा बनाए गए जिन्ना फार्मूला में जिन्ना ने निर्वाचन मंडल के साथ केंद्रीय तथा प्रांतीय सदस्यों में एक तिहाई प्रतिनिधित्व मुसलमानों को देने की बात रखी गई थी । 

  लॉर्ड इरविन के समय 1929 में प्रसिद्ध लाहौर षड्यंत्र कारी जतिन दास की 64 दिन की भूख हड़ताल के बाद जेल में ही मृत्यु हो गई थी  लॉर्ड इरविन के समय 1929 में दिल्ली के असेंबली हॉल में बम फेंका गया  जिसे फेंकने की योजना भगतसिंह ने बनाई थी भगत सिंह ने केंद्रीय असेंबली कलकत्ता में अपनी मित्र सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर दो बम फेंके थे इसीलिए तीनों को एक साथ 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी

      लॉर्ड इरविन के समय 1930 में नेहरू रिपोर्ट के अस्वीकृत हो जाने के बाद चारों और असंतोष का वातावरण था । गांधी जी ने 2 मार्च 1930 को वायसराय लॉर्ड इरविन को एक पत्र लिखकर 11 सूत्रीय मांग प्रस्तुत की साथ में यह चेतावनी भी दी कि यदि उनकी मांग स्वीकार नहीं की गई तो वह नागरिक अवज्ञा आंदोलन शुरू कर देंगे । जैसा कि अनुमान था कि मांगों के प्रति लोर्ड इर्विन का उत्तर अत्यंत असंतोषजनक निकला ।  तो कांग्रेस की वर्किंग कमेटी ने गांधी जी को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन करने का अधिकार दे दिया । सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ दांडी यात्रा की ऐतिहासिक घटना से हुआ । 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने अपने 78 साथियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी के लिए प्रस्थान किया । इन्होंने गुजरात के समुद्र तट पर स्थित दांडी गांव तक की लगभग 240 मीर की यात्रा 24 दिनो मे पूरी की । और 6 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोडा । इसी के साथ ही पूरे भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु हो गया । कई स्थानों पर लोगों ने ब्रिटिश सरकार के नमक कानून को तोड़कर स्वम नमक बनाना शुरु कर दिया । भारतीय विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल व कॉलेजो का बहिष्कार कर दिया । सरकारी कर्मचारियों ने अपने दफ्तर त्याग दिए। कई जगहों पर लोगों ने सरकार को टैक्स देना बंद कर दिया । सविनय अवज्ञा आंदोलन बड़ी तेजी से देश के गांव-गांव तक फैला । स्त्रियों ने शराब और अफीम की दुकानों पर धरना दिया गया । विदेशी वस्त्रों को इकट्ठा करके उनकी होली जलाई गई । महिलाओं ने बहुत बड़ी संख्या में इस आंदोलन में भाग लिया । खान अब्दुल गफ्फार खां सीमान्त गांधी के नाम से मसहूर हुए । उन्होंने उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत में खुदाई खिदमतगार नामक संगठन की स्थापना की । यह संगठन काली कुर्ती के नाम से  प्रसिद्ध हुआ । सरकार ने दमन नीति अपनाई । गांधीजी आदि बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए । 90 हजार से अधिक लोग जेल में डाल दिए गए । सविनय अवज्ञा आंदोलन की बढ़ती हुई तीव्रता से घबराकर ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की । कि भारत के सभी राजनैतिक दलों से एक एक प्रतिनिधियों को लंदन में भारतीय संवैधानिक समस्या के सम्बन्ध मे उनसे बात करने के लिए गोलमेज सम्मेलन में बुलाया जाएगा 

    लॉर्ड विलिंगटन ---- 1931 - 1936


      1931 में लॉर्ड विलिंगडन भारत का वायसराय बना । 

। प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवंबर 1930 से 19 नवंबर 1931 तक) लंदन में हुआ । इस सम्मेलन में भारत से 89 प्रतिनिधियों ने भाग लिया । इस सम्मेलन में जिन्ना और डॉ.अंबेडकर ने भाग लिया । लेकिन कांग्रेस ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया था । ब्रिटिश सरकार इस बात को जानती थी की कांग्रेस की उपस्थिति के बिना कोई फैसला संभव नहीं है । तो ब्रिटिश सरकार ने इस सम्मेलन को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया । और भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन ने महात्मा गांधी को एक पत्र लिखकर समझौते के लिए बुलाया । अब 5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच  दिल्ली मे एक समझौता हुआ । जिसे गांधी-इरविन समझौता कहते हैं । इसे समझते हैं लॉर्ड इरविन ने कहा कि हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा । भारतीयों को समुद्र के किनारे नमक बनाने का अधिकार दे दिया जाएगा । आंदोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को उनके पदों पर पुनः बाहाल कर दिया जाएगा । भारतीय शराब एवं विदेशी कपड़ों की दुकानों पर के सामने धरना दे सकते हैं । आंदोलन के दौरान जब्त की गई संपत्ति को वापस कर दिया जाएगा । कांग्रेस की तरफ से गांधीजी ने कहा सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित कर दिया जाएगा । कांग्रेस ब्रिटिश सामान का बहिष्कार नहीं करेगी । कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी । इस प्रकार ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस की तरफ से महात्मा गांधी दोनों के बीच यह प्रथम समझौता हुआ । अब दूसरा गोलमेज सम्मेलन (7 सितंबर 1931 से 1 दिसंबर 1931 तक) मे लंदन में हुआ । जिसमें गांधीजी , अंबेडकर , सरोजिनी नायडू एवं मदन मोहन मालवीय पहुंचे । इस सम्मेलन में गांधीजी ने कहा कि कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो सभी धर्मों का सम्मान करती है यह समस्त भारतीय जातियों का एक मानकर सभी का प्रतिनिधित्व करती है । मैं भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग कर रहा हूं । लेकिन ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी की इस मांग को स्वीकार नहीँ किया । भारत से गए दूसरे दलों के लोगों ने अपनी अपनी जाति के अनुसार अलग-अलग निर्वाचन मंडल की मांग की । गांधी जी चाहते थे कि भारत में एकता बनी रहे । लेकिन भारत की दूसरी जाति के लोग इस एकता का विखंडन करना चाहते थे । इस तरह गांधीजी की निराश होकर वापस लौट आए । और उन्होंने भारत में आकर पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया । ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी और सरदार पटेल को गिरफ्तार करके कांग्रेस को गैर कानूनी संस्था घोषित कर दिया  ।द्वतीय गोलमेज सम्मेलन के बाद 16 अगस्त 1932 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मैक्डानल्ड ने सांप्रदायिक पंचांट बनाकर भारत को जातियों के आधार पर बांट दिया । उन्होंने हिंदू , मुसलमान और सिक्खो को अलग अलग तथा भारत के हरिजनों को हिंन्दुओं से अलग कर दिया । इन सभी के लिए अलग अलग निर्वाचन मंडल की घोषणा की । भारत को तोड़ने और जातियों में विभक्त करने की ब्रिटिश सरकार की यह कूटनीतिक चाल थी । कांग्रेस ने इसका विरोध किया । गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार को चेतावनी दी कि वह अपना यह निर्णय वापिस ले नहीं तो में आमरण अनसन करुंगा ।  मेक्डानल्ड ने कहा  सारी दुनियां हमारे सामने मस्तक झुकाए खडी है और यह कम बक्त बुड्डा हमें झुकने को कह रहा है जो हमेशा से हमारा पक्का दुश्मन  है । जब गांधी जी की यह बात नहीं मानी गई तो वे 20 सितम्बर 1932 को जेल में 21 दिन के अनसन पर बैठ गए । इस समय गांधीजी पुणे की यरवदा जेल में थे । मदन मोहन मालवीय ने 25 दिसम्बर सन 1932 को गांधीजी और अंबेडकर के बीच एक समझौता करवाया । जिसमें गांधी जी ने दलितों की 71 सीटों को बढ़ाकर 147 करा दी । तो अंबेडकर ने यह संयुक्त निर्वाचन मंडल स्वीकार कर लिया । जिसे पूना पैक्ट कहा गया ।  पूना समझौता होने के बाद गांधीजी ने अपना अनसन तोड दिया । 1 मई 1933 को सविनय अवज्ञा आन्दोलन समाप्त कर दिया । अब तीसरा गोलमेज सम्मेलन (17 नवंबर 1932 से 24 दिसंबर 1932) लंदन मे हुआ । इस सम्मेलन में ब्रिटिश सरकार को आशा थी कि इस सम्मेलन में कांग्रेस जरूर भाग लेगी लेकिन इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया । तीनों सम्मेलन की सिफारिश के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी किया । और प्रस्ताव पर विचार करने के लिए वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति नियुक्त की गई । लॉर्ड लिनलिथगो की सिफारिश में कुछ बदलाव करके 3 अगस्त 1935 को भारत सरकार अधिनियम पारित किया गया । जिसमें 461 धाराएं एवं 15 परिशिष्ट रखे । इस प्रकार 1935 में एक संघीय न्यायालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई ।

  लॉर्ड लिनलिंथगो ---- 1936 - 1944


1936 मे लोर्ड लिनलिंथगो भारत का नया वायसराय बना । इसने 1935 के एक्ट के अनुसार 1937 में प्रांतों में चुनाव कराए । जिसमे पाकिस्तान सहित सम्पूर्ण हिन्दुस्तान को 11 प्रांतों मे विभाजित किया गया था । जिसमें 11 प्रांतो ये से 7 प्रांतों में कांग्रेस को और 4 प्रांतों मे मुस्लिम लीग को सफलता मिली थी । 

लॉर्ड लिनलिथगो के समय 1939 में कांग्रेस का अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ था । जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्ष चुना गया था । जबकि महात्मा गांधी पट्टाभि सीतारमैया को अध्यक्ष बनना चाहते थे । इसलिए महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच इस त्रिपुरी अधिवेशन में मतभेद की स्थिति बनी गांधी जी के नाराज होने से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया । और अपनी एक नई फॉरवर्ड ब्लॉक नामक पर्टी बनाकर क्रांतिकारी भावना का प्रचार करने लगे । तो अंग्रेजो ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को बंदी बनाकर कैदखाने मे डाल दिया । नेताजी सुभाष चंद्र बोस गुप्त रुप से एक मुस्लिम स्त्री का वेश धारण करके पुलिस को चकमा देकर जर्मनी और फिर वहां से जापान पहुंचे । उन्होंने अपनी बुद्धि से पूर्व के कई देशों से मित्रता करके आजाद हिंद फौज बनाई

लॉर्ड लिनलिथगो के समय मार्च 1940 में लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान को मोहम्मद अली जिन्ना ने प्रथक देश बनाने की मांग की । जिसे पाकिस्तान प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है । मुसलमानों के लिए पृथक राष्ट्र का सुझाव सबसे पहले 1930 में इकबाल ने दिया । तथा पाकिस्तान को पाकिस्तान शब्द कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले रहनत अली ने दे दिया । 

अगस्त 1940 में वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो द्वारा अगस्त प्रस्ताव पेश किया गया । जिसमें मुस्लिमों के हितों का उल्लेख किया गया है । तथा यह बताया गया है कि युद्ध के बाद भारत में औपनिवेशिक सरकार की स्थापना की जाएगी । और भारतीयों के लिए ऐसा स्वयं का संविधान तैयार किया जाएगा जिसमें अल्पसंख्यकों की अनुमति के बिना सरकार का कोई भी संवैधानिक परिवर्तन लागू नहीं कर सकेगी । कांग्रेस ने इस प्रस्ताव का विरोध किया । किंतु मुस्लिम लीग के लिए यह प्रस्ताव हथियार साबित हुआ । जिसके बल पर वह अपनी सभी इच्छाएं पूरी करवा सकती थी । 

लॉर्ड लिनलिथगो के समय 1942 मे क्रिप्स मिशन इसलिए भारत आया क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश फौजों की दक्षिण पूर्वी एशिया में हार होने से उन पर जापान का खतरा मंडरा रहा था । इसलिए मित्र देश अमेरिका,रूस और चीन ब्रिटेन को इस संकट से बचने के लिए भारत का समर्थन लेने के लिए कह रहे थे । इसलिए ब्रिटेन के मंत्रिमंडल से स्टेफोर्ड क्रिप्स कुछ ठोस आश्वासन के साथ भारत में आया । और उसने कहा कि ब्रिटिश सरकार युद्धोपरांत भारत को अधिराज्य का दर्जा देकर उसे सुरक्षा देना चाहती है । किंतु भारत ने इन सारे प्रस्तावों को खारिज कर दिया ।  
लॉर्ड लिनलिथगो के समय 8 अगस्त 1942 मे भारत छोड़ो आंदोलन इसलिए शुरु हुआ क्योंकि क्रिप्स मिशन के असफल हो जाने के बाद गांधीजी ने समूचे भारत में भारत छोडो आंदोलन शुरु करने की घोषणा कर दी  । 9 अगस्त 1942 को सुबह गांधीजी सहित कांग्रेस के अधिकांश नेता गिरफ्तार कर लिए गए । गांधीजी को पुना के आगा खां महल में रखा गया । गांधीजी के गिरफ्तार होने से आंदोलन के उग्र रूप धारण कर लिया । पूरे देश मे चारों तरफ गोलियां चली,लाठीचार्ज हुए,हड़ताल रही और सारे देश में गिरफ्तारियां हुई । आखिरकार आक्रोशित जनता हिंसा पर उतर आई । लोगों ने सरकारी संपत्ति पर हमला किया । रेल की पटरियों को तोड़ा । और पुल टेलीफोन तथा चार लाइनों को क्षति पहुंचाई । जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया तथा अरुणा आसफ अली ने भूमिगत रहकर आंदोलन का नेतृत्व किया । ऊषा मेहरा ने कांग्रेस रेडियो का कार्य किया । बालिया और सतारा जैसे कुछ स्थान अंग्रेजी दासता से मुक्त हो गए । मगर सरकारी दमनचक्र की उग्रता अपनी सभी सीमाएं तोड़ गई । वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने हवाई जहाज से बम बरसाने और अंधाधुंध गोलियां चलाने के आदेश दे दिए । जिससे बड़ी संख्या में लोग मारे गए । सरकारी दमनचक्र के कारण यह आंदोलन अधिक समय तक नहीं टिक सका । इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने 'करो या मरो' तथा लाल बहादुर शास्त्री 'मरो नहीं मारो' का नारा दिया । 


 1943 मे लॉर्ड वेवेल
   भारत के नए वायसराय बने । 1944 में इंग्लैंड में चुनाव हुए थे जिसमें इंग्लैंड की सरकार बदल गई थी । इस सरकार के नए प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली बने जो भारत सरकार के पक्ष मे थे । और उन्हे भारतीयों की गरीब स्थिति के नाम पर इग्लैण्ड मे बहुमत मिला था । इग्लैंड के अंग्रेज नागरिक चुनाव के समय ऐटली के भाषण से प्रभावित हुए और यह चाहने लगे कि भारतीयों  की आर्थिक तंगी की वजह अगर इग्लैंड सरकार है तो ऐसी सरकार को हम दुबारा नहीं आने देंगे और नई सरकार चुनेंगे जो भारतीयों की गरीबी को दूर कर सके और उन्हें यह आश्वासन दिला सके कि इग्लैंड भारतीयों की निर्धन स्थिति का जिम्मेदार नहीं है । प्रधानमंत्री बनते ही ऐटली ने कहा कि ब्रिटिश सरकार भारत के पूर्ण स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता प्रदान इसलिए कर रही है क्योंकि यह उसका अधिकार है कि वह ब्रिटिश शाशन के साथ रहना चाहते है या नहीं । हम भारतीयों के हिन्दू तथा मुसलमानो के अधिकारों के प्रति भलीभांति जागरूक हैं । और चाहते हैं कि भारत के हिन्दू तथा मुसलमान बिना किसी भय के स्वतंत्रता पूर्वक रहें । परंतु हम यह भी सहन नहीं करेंगे कि भारतवासी अपनी गरीबी और आर्थिक तंगी के लिए इग्लैंड को उत्तरदायी ठहराए । और उन्होंने जून 1948 तक भारत को स्वतंत्र कराने की घोषणा कर दी । इसके बाद 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो जाने के बाद एटली ने भारत के वायसराय वेवेल से हिंदू और मुस्लिम लोगों को एक साथ सम्मिलित करके भारत का संविधान स्वयं बनाने की जिम्मेदारी देने को कहा । भारत के वायसराय वेवेल ने इस काम को करने के लिए शिमला में सभा बुलाई । जिसे वेवेल की शिमला वार्ता योजना कहते हैं । इस सभा में जिन्ना ने यह मांग रखी के मुस्लिम सदस्यों को संविधान में चुनने का अधिकार सिर्फ मुस्लिम लीग पार्टी को है । जिन्ना की इस मांग से कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार दोनों सहमत नहीं थे । इसलिए वेवेल की शिमला वार्ता योजना विफल हो गई । इसके बाद एटली ने 1946 मे भारतीय संविधान सभा के लिए कैबिनेट मिशन नामक तीन सदस्यों का एक संगठन बनाकर इग्लैंड से भारत में भेजा । जिसमे भारत मंत्री लोर्ड पैथिक लोरेंस , व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष सर स्टैफोर्ट क्रिप्स और नोसैना मंत्री सर ए.बी. एलेक्जेंडर थे ।   24 मार्च 1946 को इस मिशन ने दिल्ली पहुंचकर संविधान सभा के लोगों को चुनकर उनसे बातचीत की । किन्तु इस मिशन में मुस्लिम लीग पार्टी ने अस्वीकृति दी । तथा इसका विरोध इसलिए किया क्योंकि मुस्लिम लीग पार्टी के बडे नेता मुहम्मद अली जिन्ना को डर था कि अंग्रेजों के चले जाने के बाद भारत हिंदू राष्ट्र में बदल जाएगा । और मुस्लिम समुदाय के लोगों के अधिकारों का हनन किया जाएगा । इसलिए उन्होंने पाकिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से कैबिनेट मिशन का विरोध किया । इसके साथ ही भारत के हिन्दू तथा मुसलमानो मे कई स्थानों पर भयानक संप्रदाय दंगे हुए । इन दंगों ने भारत के कई स्थानों को रक्तपात हत्या और भय की बाढ़ में डुबो दिया । हजारों लोगों के कत्ल कर दिए गए । और कई हजार लोग घायल हुए । मुस्लिम लीग पार्टी ने 16 अगस्त का दिन भारतीय इतिहास का काला दिन कहा । वेवेल और कैबिनेट मिशन नामक संगठन ने मुसलमानों को काफी समझाने का प्रयास किया कि वे अलग न हो । गांधी जी और कांग्रेस के कई नेताओ ने भी मुस्लिम नेता मुहम्मद अली जिन्ना को अलग नही होने के लिए काफी निवेदन किया लेकिन वो नहीं मान रहा था । उसका तो एक ही कहना था मुसलमानों के लिए प्रथक राष्ट्र का विभाजन होगा । अब कैबीनेट मिसन ने जुलाई 1946 मे कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों पार्टियों के बीच उनकी ही सहमति और एकजुटता के लिए चुनाव कराए । चुनाव होने से पहले मुस्लिम लीग पार्टी भारत के साथ रहने के लिए तैयार हो गई  । जिसमे सम्पूर्ण भारत मे संविधान सभा के लिए 389 सीटों पर चुनाव हुए थे ।  211 सीटो पर कांग्रेस तथा 73 सीटों पर मुस्लिम लीग को सफलता मिली । इस चुनाव को मुस्लिम लीग पार्टी ने बाद मे अस्वीकार करके 16 अगस्त को प्रतक्ष कार्यवाही दिवस मनाया । उधर एटली इस बात को लेकर चिंतित थे कि भारत के बहुसंख्यक लोग जब तक राजी नहीं हो जाते तब तक उन पर संविधान का भार नहीं थोपा जा सकता । हिन्दू और मुसलमानों के बीच हिंसा बढती जा रही थी और खुलेआम मारकाट तथा कत्ल हो रहे थे ऐसी स्थिति मे ब्रिटिश सरकार ने लोर्ड माउन्टबेटन को नया वायसराय बनाकर भारत मे भेजा । फरवरी 1947 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने भारत को जल्द से जल्द स्वतंत्र कराने का पक्का वादा कर दिया । मार्च 1947 में लॉर्ड माऊंटबेटन 

को भारत का नया वायसराय बनाया गया । माउन्टबेटन भारत मे आकर कांग्रेस और लीग के नेताओं से मिलकर एक साथ रहने के लिए काफी समझाते है । लेकिन मुस्लिम लीग पार्टी के नेता मोहम्मद अली जिन्ना भारत के साथ मिलकर रहने से स्पष्ट मना कर देते है । तो माउन्टबेटन पाकिस्तान की परिस्थिति को समझकर जून 1947 में भारत तथा पाकिस्तान विभाजन संबंधी प्रस्ताव ब्रिटिश संसद को सौंपते है । और यह कहते कि हिन्दुओं और मुसलमानों के आपसी दंगे शांत करने का एक ही हल है और वह है भारत तथा पाकिस्तान के रूप मे हिन्दुस्तान का विभाजन होना । इसके बाद 2 जुलाई 1947 में यह प्रस्ताव पारित हो जाता है । इस योजना को लॉर्ड माउंटबेटन योजना कहते हैं । इसी योजना में यह निर्णय लिया गया कि 14  अगस्त को पाकिस्तान को और 15 अगस्त 1947 को भारत को उनकी सत्ता का हस्तांतरण सौंप दिया जाएगा । इस प्रकार हमारा भारत देश दो टुकडो मे बंट जाता है । और भारतीय भू-भाग से पाकिस्तान बन जाता है । अब एटली ने माउन्टबेटन के जरिए घोषणा करवाई कि भारत की सभी रियासते अपनी अपनी इच्छा अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले भारत तथा पाकिस्तान मे विलेय हो जाऐं भारत मे रियासतों के विलय की जिम्मेदारी सरदार बल्लव भाई पटेल ने ली । उस समय  बल्लभ भाई पटेल ने 362 रियासत भारत मे विलेय करवायीं थी इसलिए लोर्ड माउन्टबेटन ने उनकी प्रशंशा की । किंतु जूनागढ हैदराबाद और जम्मू कश्मीर ऐसी रियासत थी जिन्होने भारत मे विलेय होने से स्पष्ट मना कर दिया । जूनागढ का राजा मुस्लिम था किन्तु वहाँ की जनता हिन्दू थी जो भारत मे विलेय होना चाहती थी । परन्तु शाशक ने पाकिस्तान के साथ मिलने की घोषणा कर दी । ऐसी स्थिति मे जनता ने विद्रोह कर दिया । शाशक को पाकिस्तान भागना पडा । शाशक के भाग जाने के बाद जूनागढ के दीवान शाहनवाज भुट्टो ने जनमत करवाया जो भारत के पक्ष मे रहा और जूनागढ भारत मे विलेय हो गया । हैदराबाद भारत की सबसे बडी रियासत थी  पाकिस्तान के कहने पर निजाम ने अपनी रियासत को स्वतंत्र रखा । जिसे सैन्य बल पर भारत मे मिलाया गया । जम्मू कश्मीर को भी बाद मे विलेय किया गया । सन 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान स्वतंत्र हो गया और 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया । भारत को स्वतंत्र हो जाने के बाद भारत  के वायसराय लोर्ड माउन्टवेटन को स्वतंत्र भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाया गया । लोर्ड माउन्टवेटन 21 जून 1948 को 
                 चक्रवती राज गोपालाचारी
           
को अपना यह पद सोंपकर इंग्लैंड के लिए चला गया । इस प्रकार चक्रवती राज गोपालाचारी स्वतंत्र भारत के दूसरे और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल बने । ये गांधी जी के समधी थे जो 26 जनवरी 1950 तक गवर्नर जनरल रहे । इसके बाद भारतीय संविधान लागू हो गया । भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजाजी को 1954 मे प्रथम भारत रत्न प्रदान किया गया । 

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