Tuesday, October 3, 2017

मुगल वंश

(1) बाबर
मुगल वंश का संस्थापक बाबर था । यह तैमूर के चुगताई वंश का एक मंगोल तुर्क लुटेरा था । दिल्ली का सुल्तान बनने से पहले बाबर फरगना का शासक था । इसके वंशजों की राजधानी समरकंद थी । 11 वर्ष की उम्र में ही बाबर ने राजा बनकर पादशाह की उपाधि ग्रहण की । भारत में आकर इसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया । बाबर ने तुलुगमा युद्ध नीति को अपनाकर भारत में चार युद्ध लड़े । 1526 में इसने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहिम लोदी को बुरी तरह हराया । 1527 में बाबर ने मेवाड़ के राणा सांगा को आगरा के पास खानवा के युद्ध में परास्त किया । 1528 में चंदेरी के युद्ध में मेदिनी राय को बुरी पराजित किया । 1529 में घाघरा के युद्ध में अफगानों को हराया । बाबर का भारत पर पहला आक्रमण यूसुफजाई जाति के विरुद्ध था । खानबा के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि ग्रहण की । चंदेरी के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने राजपूतों के कटे हुए सिर की मीनार बनवाकर जिहदा का नारा लगवाया । बाबर अपनी उदारता के कारण कलंदर नाम से प्रसिद्ध था । बाबर ने मुगईयान नामक पद्य शैली का निर्माण करवाया । तथा काबुली बाग,जामी,बावरी,नूरअफगान और आगरा की मस्जिद बनवाई । उस्ताद अली और मुस्तफा बाबर के प्रसिद्ध तोपची थे । बाबर को उपवन का राजकुमार और मालियों का मुकुट भी कहते हैं । बाबर के चार पुत्र हुमायूं,कामरान,अस्करी और हिंदाल थे । तथा एक पुत्री गुलबदन बेगम थी । बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी लिखी है । आगरा में बाबर की मृत्यु हुई । उसके पार्थिव शरीर को पहले तो आगरा में स्थित है आराम बाग में दफनाया गया । किंतु बाद में शेरशाह सूरी ने इसे कब्र से खुदवाकर काबुल में पहुंचा दिया । और वहीं पर इसका मकबरा बनवा दिया गया ।                  {2} हुमायु
बाबर ने हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी बनाया था । दिल्ली का सुल्तान बनने से पहले हुमायूं बदस्खां का सूबेदार था । सुल्तान बनकर हुमायु ने अपना राज्य अपने सभी भाइयों में बराबर बराबर बांट लिया था । जो राजनैतिक दृष्टि से उस की सबसे बड़ी भूल थी । हुमायूं ज्योतिषी में विश्वास करता था । इसलिए उसने सप्ताह में सातों दिन अलग अलग रंग के कपड़े पहने के नियम बनाए । हुमायूं अफीम खाने का शौकीन था । 1532 में हुमायु ने दोहरिया के युद्ध में अफगान राजा महमूद लोदी को हराया । किंतु 1539 में हुमायूं को चौसा के युद्ध में शेरशाह सूरी से पराजय मिली । इस युद्ध में मुगल सेना की काफी तबाही हुई  । हुमायु ने युद्ध क्षेत्र से भागकर एक भिस्ती (नाव चलाने वाला) का सहारा लेकर किसी तरह गंगा नदी पार कर अपनी जान बचाई । जिस भिस्ती ने हुमायूं की जान बचाई थी उसे हुमायूं ने एक दिन के लिए दिल्ली का बादशाह बना दिया था । अब 1540 में हुमायु ने अपने भाई अस्करी और हिंदाल के साथ मिलकर पुनः शेरशाह सूरी से कन्नौज एवं बेलगांव का युद्ध छेड़ दिया । शेरशाह सूरी ने इस बार फिर हुमायूं को बुरी तरह पराजित किया । जिससे उसे मजबूर होकर अपनी गद्दी छोड़ कर इरान भागना पड़ा । हुंमायु के भाग जाने के बाद दिल्ली की सत्ता पर एक अफगान शासक शेरशाह सूरी ने अपना कब्जा कर लिया । हुमायु ने दिल्ली में दीनपनाह दुर्ग का निर्माण करवाया ।
                    शूरी वंश
       सूरी वंश 1540 से 1555 तक चला । शेरशाह सूरी

बिहार की एक छोटी सी जागीर के एक अफगान सरदार का पुत्र था । इसका बचपन का नाम फरीद था । इसने एक शेर का शिकार किया । इसलिए वहां के राजा बहार खान लोधी ने इसे शेरशाह की उपाधि दी । शेरशाह सूरी ने हुमायूं को चौसा एवं कन्नौज के युद्ध में हराकर हिंदुस्तान की राज्यसत्ता पर कब्ज़ा किया । शेरशाह सूरी ने भारत में चांदी का रुपया और तांबे के दाम नामक सिक्के चलाएं । शेरशाह सूरी ने परिवहन की व्यवस्था में सुधार करते हुए ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण करवाया । जिसे मुगलकालीन रोड या जी.टी.रोड भी कहते हैं । शेरशाह सूरी ने झेलम नदी के तट पर रोहतासगढ़ और दिल्ली के निकट शेरगढ़ नामक नगर बसाए । शेरशाह ने दिल्ली के पुराने किले को बनवाकर उसमें अंदर 'किला कुहना' मस्जिद बनवाई । तथा शहर पनाह का निर्माण करवाया । जो आज वहां का लाल दरवाजा है । शेरशाह ने ही भारत में मदरसों का निर्माण करवाया । 1547 में जब शेरशाह ने कलिंजर के किले का घेरा डाला तो बारूद के एक ढेर में अचानक आग लगने के कारण वहां खड़े शेरशाह की धमाके के साथ मृत्यु हो गई । शेरशाह सूरी के शासनकाल में दिल्ली में लंगर व्यवस्था लागू की गई थी । जहां पर 500 तोला सोना रोज व्यय होता था । शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद  उसका योग्य एवं चरित्रवान पुत्र जलाल खान लोदी गद्दी पर बैठा । लेकिन उसने अपने बड़े भाई आदिल खान के रहते गद्दी स्वीकार नहीं की । तो आदिल खान ने अमीरों एवं सरदारों के विशेष आग्रह पर राजपद ग्रहण किया । इसने इस्लाम शाह की उपाधि धारण की । और 1553 तक शासन चलाया । इसने 5 किले बनवाए शेरगढ़,इस्लाम गढ,रसीद गढ़,फिरोज गढ़,मान कोटर आदि । इस्लाम शाह के समय विद्रोह और षड्यंत्र का दौर चलता रहा । और इसकी हत्या के लिए कई बार प्रयास किया गया । इस्लाम शाह ने संदेह के घेरे में आने वाले विश्वासपात्र सैनिकों हकीमों और अधिकारियों की हत्या करवा दी । किंतु उसने अपने एक रिश्तेदार साले को छोड़ दिया । 1553 में मुगलों के आक्रमण के समय इस्लाम शाह एक गंभीर रोग से पीड़ित था । फिर भी वह रोग सैया से उठ कर ती हजार सैनिक साथ लेकर युद्ध के लिए चल दिया । यह खबर पाकर मुगल सेना भाग खड़ी हुई । हुमायु के भाग जाने के बाद इस्लाम शाह ने अपनी उपराजधानी ग्वालियर में आकर आराम फरमाया । वही पर उसकी मृत्यु हो गई । इस्लाम शाह सूरी सलीम शाह के नाम से भी विख्यात था । इसकी मृत्यु के बाद सूरी साम्राज्य 5 भागों में बट गया । जिसका फायदा हुमायु ने उठाया । इस्लाम शाह के बाद उसका 12 वर्षीय पुत्र फिरोज गद्दी पर बैठा । किंतु इसके राज्य अभिषेक के 2 दिन बाद ही इसके मामा मुवरिज खान ने इसकी हत्या कर दी । और स्वयं मोहम्मद शाह आदिल के नाम से सुलतान बन गया । लेकिन आदिल के चचेरे भाई  इब्राहिम खान सूर ने विद्रोह करके दिल्ली की गद्दी को छीन लिया । इसके बाद इसके भाई सिकंदर सूर ने दिल्ली की गद्दी पर शासन किया । सिकंदर को मुगलों ने पराजित कर दिल्ली की गद्दी पर अधिकार किया । सिकंदर का असली नाम अहमद खान था । इसे हुमायूं से मात खानी पड़ी । हारने के बाद यह शिवालिक की पहाड़ियों पर भाग गया । इसके भाई आदिल शाह सूरी ने मुगलों से युद्ध किया । परंतु हार गया । इस तरह सूरी राजवंश का अंत हो गया ।            हुमायु ने लगभग 15 वर्षों तक निर्वासित जीवन व्यतीत किया था । 1542 में हुमायूं को अजमेर के राजा वीरसाल के महल में हमीदा बेगम के गर्भ से अकबर के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद सूरी साम्राज्य पांच भागों में बट गया था । जिसका फायदा हुमायूं ने उठाया । और उसने तुरंत ही ईरान की सहायता से कांन्धार और काबुल को जीत लिया । 1555 में हुमायु ने लाहौर और पंजाब को जीतकर दिल्ली और आगरा पर अपना कब्जा कर लिया । इस प्रकार भारत में एक बार फिर मुगल साम्राज्य की स्थापना हो गई । सन 1556 में दीनपनाह दुर्ग की पुस्तकालय की सीढ़ियों से फिसलकर हुमायूं की मृत्यु हो गई । और इसे दिल्ली में दफना कर वहीं पर हाजी बेगम ने इसका मकबरा बनवा दिया ।                  
                     {3} अकबर
हुमायूं की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अकबर उत्तराधिकारी बना । अकबर को 1556 में कलानौर में राज्यभिशेष कर बादशाह घोषित कर दिया गया । उस समय अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष थी । इसीलिए उसके संरक्षण के लिए बैरम खान को नियुक्त किया गया । इसी समय शेरशाह सूरी के पुत्र आदिलशाह सूर ने अपने प्रधानमंत्री हेमू के नेतृत्व में सेना लेकर दिल्ली पर हमला बोल दिया । और उसने दिल्ली एवं आगरा से मुगलों को भगा दिया । इससे दुखी होकर अकबर ने बैरम खान की मदद से 1556 में पानीपत के द्वितीय युद्ध में हेमू को बुरी तरह पराजित कर दिया । अब एक बार फिर आगरा तथा दिल्ली अकबर के नियंत्रण में आ गए । अगले चार वर्षों तक बैरम खान प्रधानमंत्री के पद पर रहा । किंतु चार वर्षों बाद दरबार के कुछ लोगों ने अकबर को बैरम खान के खिलाफ भड़का दिया । जिससे अकबर ने बैरम खान को प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया । अब स्वतंत्र होकर अखबार ने अपने पहले सैन्य अभियान में मालवा के शासक बाज बहादुर को पराजित कर दिया । इसके बाद 1561 में बैरम खान को हज के लिए मक्का भेज दिया गया । किन्तु रास्ते में गुजरात के पास नाव से उतरते ही मुबारक खान लोहानी मिल गया । इसने मिलने के बहाने बैरम खान की पीठ में छुरा घोंप दिया । और बैरम खान की हत्या कर दी । बैरम खान हुमायूं का साढू और अंतरंग मित्र था । अब शासन की पूरी बागडोर अकबर के हाथों में आ गई । अकबर ने विजय और साम्राज्य के शुद्धिकरण की नीति अपनाई । उस समय रानी दुर्गावती गोंडवाना राज्य पर राज्य करती थी । अकबर ने 1564 में अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना राज्य पर आक्रमण करने के लिए भेजा । इसने  रानी दुर्गावती को पराजित करके वध कर दिया । सभी जगह अकबर ने अपनी राज्यसत्ता स्थापित कर ली थी । किंतु मेवाड़ एक ऐसा राज्य था जिसने मुगलों की अधीनता को स्वीकार नहीं किया । इसलिए 1576 में मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप  और मुगल सम्राट अकबर के बीच घमासान युद्ध हुआ । इसे हल्दीघाटी का युद्ध कहते हैं । इसमे मुग़ल विजई रहे । महाराणा प्रताप और उसके साथी सुरक्षित स्थान पर चले गए । इसके पश्चात अकबर ने अहमदनगर पर हमला कर दिया । उस समय वहां चांदबीबी का शासन था । इस युद्ध मैं चांद बीवी की हत्या हो गई । और अहमदनगर अकबर के अधिकार में आ गया । इसके पश्चात अकबर ने राजपूत राजाओं से मित्रता कर ली । और धीरे-धीरे सभी राजाओं को अपने अधिकार में ले लिया । अब 1601 में अकबर एवं दक्षिण भारत के शासकों के मध्य युद्ध हुआ । इसे असीरगढ़ का युद्ध कहते हैं । इसमें अकबर विजयी रहा । और दक्षिणी भारत को भी अपने अधिकार में ले लिया । इस प्रकार संपूर्ण भारत पर अकबर का अधिकार हो गया । अकबर 4 वर्ष 4 महीने और 4 दिन पड़ा था । बचपन मे अकबर को कबूतरों और पक्षियों के साथ खेलना पसंद था । अकबर ने फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया था । और वहां पर एक इबारत खाना बनवाया था । जहां पर अकबर सभी धर्मों के विद्वानों के साथ सत्संग करता था । अकबर ने सभी धर्मों को एक समान मानकर दीन-ए-इलाही नामक एक संगठन बनाया । अकबर के शासनकाल में वित्त विभाग के अधिकारी सूबेदार और दीवार होते थे । तथा सैनिक अधिकारी फौजदार होते थे । और सरकारी सेवा करने वाले अधिकारियों को मनसब कहा जाता था । अकबर ने अपने दरबार में नवरत्न रखे । अबुल फजल विद्वान और सलाहकार था । राजा मानसिंह अनुभवी सेनापति था । राजा टोडरमल प्रसिद्धि भूमि सुधारक था । तानसेन संगीतकार था । बीरबल चतुर वाकपटु सलाहकार था । अब्दुल रहीम खानखाना कवि थे । फैजी कवि और दार्शनिक था । मुल्ला दो प्याजा मसखरा और मनोरंजनर्ता था । अकबर ने फतेहपुर सीकरी में दीवान-ए-आम,दीवान-ए-खास,पंचमहल,जोधाबाई का महल,बीरबल का महल,शेख सलीम चिश्ती की दरगाह,जामा मज्जित और बुलंद दरवाजा बनवाया । अकबर की मृत्यु 1605 में हुई । इसे सिकंदरा में दफना कर वहीं पर जहांगीर ने इसका मकबरा बनवा दिया ।रानी दुर्गावती

गोंडवाना राज्य के दलपत शाह की पत्नी थी विवाह के 4 वर्ष बाद दलपत शाह का निधन हो गया उस समय रानी पर एक 3 वर्षीय पुत्र नारायण था अतः रानी ने स्वयं गोड़वाना का शासन संभाल लिया उसने अपनी दासी के नाम पर चेरी ताल और अपने नाम पर रानी ताल और अपने दीवान के नाम पर आधार ताल बनवाया एक बार तो इन्होंने मुगल सेना को पराजित कर दिया किंतु दूसरी बार मुगल सेनापति आशफ खान दुगुनी सेना लेकर पहुंच गया  वह समय रानी का पक्ष दुर्बल था रानी ने अपने पुत्र को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया तभी अचानक एक तीर उनकी भुजा में लगा जिसे रानी ने निकाल फेंका दूसरा तीर रानी की आंख को भेद गया जिसे भी रानी ने निकाल फेंका तीसरा तीर रानी की गर्दन में जाकर धस गया अंततः रानी ने अपने वजीर आधार सिंह से आग्रह किया कि वह रानी की गर्दन काट दे पर इसके लिए वह तैयार नहीं हुआ तो रानी ने अपनी कटारी उठाकर स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्महत्या कर ली मालवा के शासक बाज बहादुर ने रानी दुर्गावती पर कई बार हमला किया कटंगी घाटी के युद्ध में रानी दुर्गावती ने बाज बहादुर की सेना को ऐसा रौंदा कि जिससे पूरी सेना का सफाया हो गया            
{4} जहांगीर

अकबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जहांगीर 1505 में गद्दी पर बैठा जहांगीर का जन्म फतेहपुर सीकरी में भरतपुर के राजा भारमल की पुत्री मरियम जमानी के गर्भ से हुआ इसका बचपन का नाम सलीम था तथा इसने नसरुद्दीन की उपाधि प्राप्त की राजा बनते ही सके पुत्र शाहजादा खुसरो ने सिक्खों के पांचवे गुरु अर्जुन देव के साथ मिलकर जहांगीर से युद्ध छेड दिया  जहांगीर ने इसे पकड़वाकर अंधा करके जेल खाने में डाल दिया और अर्जुन देव पर आर्थिक दंड का आरोप लगाकर मृत्युदंड की सजा सुना दी जहांगीर ने आगा रजा के नेतृत्व में आगरा में एक चित्रशाला बनवाई और निसार नामक सिक्के चलवाए जहांगीर का विवाह जोधा बेगम के साथ हुआ था  किंतु 1611 में इसने एक सुंदर और बुद्धिमान विधवा स्त्री नूरजहां से दूसरा विवाह किया नूरजहां की मां अस्मिता बेगम ने गुलाब से इत्र  निकालने की विधि खोजी जहांगीर मदिरापान का बहुत शौकीन था  इसलिए अकबर ने इसे घर से भगा दिया था  तो इसने कुछ समय तक मेवाड़ में शरण ली जहांगीर ने शहजादे खुर्रम को मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप के पुत्र  अमर सिंह से युद्ध करने के लिए भेजा तो अमर सिंह ने परास्त होकर खुर्रम से संधि कर ली जहांगीर ने कांगड़ा के युद्ध में सेना भेज कर राजपूतों को परास्त किया तथा चांदबीबी के पुत्र मलिक अंबर पर आक्रमण कर अहमदनगर को जीतकर खुर्रम को सौंप दिया जहांगीर ने अपनी दीवार पर सोने की जंजीर वाली घंटी लगवा दी थी इसका उपयोग सही न्याय न होने पर जनता द्वारा किया जाता था इसके शासनकाल में पुर्तगालीयों ने समुद्री डकैती शुरू कर दी थी इसके शासनकाल में ही अंग्रेज भारत में व्यापार करने के लिए आए इसकी मृत्यु लाहौर में हुई थी तथा नूरजहां ने वहीं पर शाहदरा नामक स्थान पर इसका मकबरा बनवा दिया{5} शाहजहां


शाहजहां जहांगीर का तीसरा पुत्र था जो जोधपुर के राजा उदय सिंह की पुत्री  जोधाबाई के गर्भ से उत्पन्न हुआ था  इस के बचपन का नाम खुर्रम था इसका विवाह नूरजहां के भाई आसिफ खान की पुत्री मुमताज बेगम के साथ हुआ  यह छल से उत्तराधिकारी बना  इसने जहांगीर से इसलिए विद्रोह किया क्योंकि उसे डर था कि उसका पिता उसके भाइयों में से किसी और को उत्तराधिकारी ना बना दे तो जहांगीर ने महावत खान को भेजकर इस विद्रोह का दमन करवा दिया था जहांगीर की मृत्यु के समय शाहजहां दक्षिण में था  तो उसके ससुर आसिफ खान ने शाहजहां के आने तक खुसरो के लड़के डाबर बक्स को गद्दी पर बैठाया और फिर उसका कत्ल कर दिया इसलिए इसको बलि का बकरा कहा गया सुल्तान बनते ही शाहजहां ने गो हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया और हिंदुओं को मुस्लिम दास रखने पर पाबंदी लगा दी शाहजहां ने यह नियम बनाया कि यदि कोई हिंदू स्वेच्छा से मुसलमान बनता है तो उसे अपने पिता की संपत्ति के बेदखल कर दिया जाएगा शाहजहां ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया शाहजहां के 4 पुत्र दारा सुजा औरंगजेब और मुराद थे तथा तीन पुत्री जहान आरा रोशनआरा और गोहन आरा थी  जिसमें औरंगजेब सबसे अधिक ज्यादा दुष्ट और हैवान था  शाहजहां की बेगम मुमताज एक बार बहुत बीमार पड़ गई थी उनके बचने की कोई आशा नहीं थी तो शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था शाहजहां ने दिल्ली में लाल किला मोती मस्जिद दीवाने आम दीवाने खास और जामा मस्जिद बनवाई शाहजहां ने अपने लिए दो मोरों की आकृति का एक सिंघासन बनवाया था जिसे तख्त ए ताऊस कहां गया इसे बनवाने में लगभग 7 वर्ष लगे थे गोलकुंडा के वजीर मीर जुमला द्वारा  भेंट किया गया कोहिनूर हीरा शाहजहां ने तख्त ए ताऊस मैं लगवा दिया जिसे 1739 में इरान आक्रमणकारी नादिर साह अपने साथ ले गया सन 1657 में शाहजहां बीमार हो गया चिकित्सकों ने उसकी मृत्यु की अफवाह फैला दी शाहजहां ने दारा को अपना उत्तराधिकारी बनाकर उसे साह बुलंद इकबाल की उपाधि दी शाहजहां के चारों पुत्र योग्य थे तो सिंहासन को पाने के लिए चारों में संघर्ष होने लगा औरंगजेब ने अपने तीनों भाइयों को पराजित करके मार डाला तथा अपने पिता शाहजहां को अंधा करके आगरा के किले में डाल दिया और स्वयं सुलतान बन गया 2 वर्षों बाद शाहजहां की आगरा के किले में मृत्यु हो गई  तो औरंगजेब ने मुमताज बेगम के बगल से ताजमहल में शाहजहां को दफना दिया और ताजमहल को शाहजहां का मकबरा घोषित कर दिया शाहजहां ने वीर सिंह बुंदेला के पुत्र जुझार सिंह को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया था  शाहजहां ने पुर्तगालियों को हुबली क्षेत्र से भगा दिया था क्योंकि यहां हुबली नदी के सहारे बंगाल की खाड़ी में डकैती करते थे एक प्रकार का जहां के शासन काल को वैभव एवं विलासिता का युग कहते हैं{6} औरंगजेब
औरंगजेब का जन्म गुजरात के दोहद नामक स्थान पर मुमताज के गर्भ से हुआ था । यह इस्लाम धर्म का कट्टर अनुयाई था । जो शुन्नी धर्म को मानता था । इसे जिंदा पीर कहते हैं । यह संगीत से नफरत करता था । सिंहासन पर बैठने से पहले यह दक्कन का गवर्नर था । इसने दिल्ली के लाल किले में अपना राज्यभिषेक करवाया था । यह आलमगीर के नाम से सिंहासन पर बैठा । इसने दो बार अपना राज्यभिषेक करवाया था । इसने अपने पिता शाहजहां को पकडकर अंधा करके कैदखाने में डाल दिया था । और सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया । यह जेल खाने में अपने पिता को कुत्तों से कटवाता था । और जेल खाने में अपने पिता को मारने के लिए दो बार जहर भिजवाया । किंतु जिन व्यक्तियों को इसने जहर भिजवाया था  वे शाहजहां के वफादार थे । इसलिए उस जहर को वे खुद  पी गए ।इसने अपने बडे भाई दारा को पकड़कर  राजा बनते ही इसने हिंदू त्योहारों पर प्रतिबंध लगा दिया और हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनने को मजबूर कर दिया उसने कई पंडितों की चुटिया कटवा डाली थी और वह रोज ढाई मन जनेऊ नहीं जला देता तब तक उसे नींद नहीं आती थी  इसने मंदिरों को तुडवाकर वहां पर मस्जितें , मतलब और कसाईखाने बनवा दिए औरंगजेब ने मथुरा और वृंदावन में विनाश का तांडव मचा दिया उसने भगवान की मूर्तियों को तोड़ तोड़ कर कसाइयों को मास तोड़ने के लिए दे दिया औरंगजेब ने गौ हत्या की खुली छूट दे दी औरंगजेब की नीति का सिक्खों के नवे गुरु तेग बहादुर
ने विरोध किया  तो यह तेग बहादुर को कैद करके दिल्ली ले गया और दिल्ली के चांदनी चौक में ले जाकर सभी जनता के सामने तेग बहादुर का सिर काट दिया तेग बहादुर का सिर जहां काटा गया था वहां पर वर्तमान में शीशगंज नामक गुरुद्वारा बना हुआ है इसके बाद तेग बहादुर के बेटे गुरु गोविंद

ने मुगलों से संघर्ष किया तो औरंगजेब ने गुरु गोविंद के 2 पुत्रों को जिंदा दीवाल में चुनाव डाला था । औरंगजेब की गुरु का नाम मीर मोहम्मद हाकिम था । औरंगजेब ने 49 वर्षों तक राज्य किया । छत्रसाल को उसके गुरु प्राणनाथ ने औरंगजेब का वध करने के लिए एक खंजर दिया । और यह कहा कि इस खंजर को औरंगजेब के ऐसे चुभाना है कि जिससे उसके घाव हो जाए । किंतु वह मर ना पाए  छत्रसाल ने गुरु के कहे अनुसार वैसा ही किया । उस खंजर में प्राणनाथ नहीं ऐसी जहरीली दवा लगा दी थी उससे औरंगजेब 3 महीने मे तड़प तड़प कर मरा । औरंगजेब का निधन अहमदनगर में हुआ था । किंतु इसे दौलताबाद में दफना कर वहीं पर इसका मकबरा बनवा दिया गया ।x


No comments:

Post a Comment

thankyou for comment

कश्मीर की कहानी

सन् 1947 मे जब भारत और पाकिस्तान देश आजाद हुए थे । तब जम्मू और कश्मीर देश की सबसे बडी रियासत थी । इसके दो हिस्से थे । पहला भाग जम्मू औ...

भारत पाकिस्तान युद्ध