सनातन धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है इसलिए गाय को मारने वाला अपने माता पिता को पीटने के समान घोर पाप करता है
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि
धेनु प्रताडिते दुष्टे: नरकामि हस्ताः छिन्नन्ति ।
गाय पर अत्याचार करने वाले दुष्टों के नरक में हाथ काटे जाते हैं
भगवान श्री कृष्ण ने साफ कहा है
(सांड को जलाना नहीं चाहिए)
यो नन्दी दहति महापापः कुर्वंतम् |
तेषां यमदूते उष्णाङ्गारेण स्नानम् ।
जो नंदी को जलाता है वह महापाप करता है उसे यमदूत गर्म-गर्म कोयले के अंगारों से नाहलाते है
ऋग्वेद में साफ लिखा है:-------
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा
विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका
स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः
जैसे कीट-पतंगे अपना नाश करने के लिये बड़े वेग से दौड़ते हुए जलती हुई अग्नि में प्रवेश हो जाते हैं वैसे ही इस कलियुग में सभी लोग अपना नाश करने के लिये बड़े वेग से दौड़ लगाते हुए पाप के मुख में प्रवेश हो जाते हैं
विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका
स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः
जैसे कीट-पतंगे अपना नाश करने के लिये बड़े वेग से दौड़ते हुए जलती हुई अग्नि में प्रवेश हो जाते हैं वैसे ही इस कलियुग में सभी लोग अपना नाश करने के लिये बड़े वेग से दौड़ लगाते हुए पाप के मुख में प्रवेश हो जाते हैं
इस संसार में सभी दुखी है------
कोई तन दुखी कोई मन दुखी
कोई धन बिन रहत उदास |
थोड़े थोड़े सब दुखी सुखी राम के दास ||
तो फिर सुखी कोन है इस संसार में :------
न चेन्द्रस्य सुखं किचिन्न न सुखं चक्रवर्तिनः |
सुखमस्ति विरक्तस्य मुने रेकान्तजीविनः ||
इस संसार में ना तो इंद्र को सुख हैं और ना चक्रवर्ती को सुख है तो फिर सुख कहां है। सुख तो उन विरक्त मुनियों के पास है जिनका जीवन एकांत में पड़ा है
दीन कहे धनवान सुखी
धनवान कहे सुख राजा को भारी
राजा कहे महाराजा सुखी
महाराजा कहे सुख इंद्र को भारी |
इंद्र कहे चतुरानन सुखी है
चतुरानन कहे सुख शिव को भारी
तुलसी जी जान बिचारी कहे
हरि भजन बिना सब जीव दुखारी ||
कोई तन दुखी कोई मन दुखी
कोई धन बिन रहत उदास |
थोड़े थोड़े सब दुखी सुखी राम के दास ||
तो फिर सुखी कोन है इस संसार में :------
न चेन्द्रस्य सुखं किचिन्न न सुखं चक्रवर्तिनः |
सुखमस्ति विरक्तस्य मुने रेकान्तजीविनः ||
इस संसार में ना तो इंद्र को सुख हैं और ना चक्रवर्ती को सुख है तो फिर सुख कहां है। सुख तो उन विरक्त मुनियों के पास है जिनका जीवन एकांत में पड़ा है
दीन कहे धनवान सुखी
धनवान कहे सुख राजा को भारी
राजा कहे महाराजा सुखी
महाराजा कहे सुख इंद्र को भारी |
इंद्र कहे चतुरानन सुखी है
चतुरानन कहे सुख शिव को भारी
तुलसी जी जान बिचारी कहे
हरि भजन बिना सब जीव दुखारी ||