Sunday, August 6, 2017

भारत मे यूरोपीय कंपनियों का आगमन


               पुर्तगाल के पुर्तगाली                

भारत मैं व्यापार के लिए नया समुद्री मार्ग 22 मई सन् 1498 में पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने खोजा पुर्तगाली नाविकयह भारत के कालीकट बंदरगाह पर पहुंचा तो गुजरात के अब्दुल मनीक नामक पथ प्रदर्शक ने इसे कालीकट के राजा जामोरिन महल तक पहुंचाया ।  जामोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया । इस तरह पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने यूरोपीय कंपनी के आगमन के लिए भारत का द्वार खोल दिया । इसके बाद सन 1500 में सर्वप्रथम पुर्तगाली व्यापारी भारत में व्यापार करने के लिए पधारें । इस समय भारत में मुगलों का शासन था । पेड्रो अल्वरेज कैब्रल 13 बड़े जहाजों के साथ भारत में व्यापार करने के लिए आया । उन्होंने भारत में आकर गोवा, दमन दीप एवं हुबली के बंदरगाहों पर अपनी व्यापारिक कोठियां बनाई और काली मिर्ची एवं मसालों के व्यापार पर अपना अधिकार जमाने के लिए उन्होंने कोचीन में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की । सन् 1505 में पुर्तगाली सरकार ने फ्रांसिस्को-द-अल्मोड़ा को अपना पहला वायसराय बनाकर भारत में भेजा । 1509 में इसने अपनी सेना के बल पर दमन दीव को छीन लिया । इसके बाद दूसरे वायसराय अल्बुकर्क ने बीजापुर के शासक आदिलशाह से गोवा को छीन लिया । और कालीकट के राजा जामोरिन का महल लूट कर उसे भगा दिया । धीरे धीरे इन्होंने कई बन्दरगाहों को अपने कब्जे में ले लिया । इस प्रकार 1515 तक पुर्तगालियों ने न केवल व्यापार पर अपना अधिकार जमाया बल्कि समुद्र तट के कई क्षेत्रों को अपने अधीन करके उन पर शासन करना शुरू कर दिया । अलबुकर्क के बाद 1515 मे नीनो-दी-कून्हा  गवर्नर बनकर आया  ।  1518 मे पुर्तगालियों ने कोलम्बो मे अपना पहला कारखाना खोला । 1530 मे पुर्तगालीयों ने गोआ को अपनी राजधानी बनाया । भारत में गोधिक स्थापत्य कला का आगमन पुर्तगालियों के समय ही शुरू हुआ । पुर्तगालियों के आगमन के बाद भारत में तमाकू की खेती,जहाज का निर्माण,तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई । इस प्रकार भारत में प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत 1556 में गोवा में हुई । जिसका श्रेय पुर्तगालियों को जाता है ।...      

                  हालैंड के डच                      

1602 में हालैंड (नीदरलैंड) के डच भारत में व्यापार करने के लिए आए । उन्होंने अपनी पहली व्यापारिक कोठी पुलीकट में बनाई तथा पहला कारखाना मछलीपट्टनम में खोला । उन्होंने भारत में मसाले, नील, रेशम, चावल एवं अफीम का व्यापार किया । डचों की प्रमुख फैक्ट्री पुलीकट में थी यहां पर स्वर्णमुद्रा पगौड़ा को ढालते थे । इसी पगौड़ा नाम की स्वर्ण मुद्रा को डचों ने भारत में चलाया । भारत में व्यापार को लेकर डचों एवं पुर्तगालियों में सैनिक संघर्ष हुए जिनमें पुर्तगाली शक्ति कमजोर हुई । सभी पुर्तगालियों को एक ही जगह पर रहकर व्यापार करना पड़ा ।............ 
                  इंग्लैंड के अंग्रेज                    
सन 1509 मे जॉन मिल्डेन हॉल नामक ब्रिटिश यात्री जल मार्ग से भारत आया और भारत की जांच पड़ताल करने के बाद वापिस इंग्लैंड जाकर इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम से जाकर मिला और फिर 31 दिसंबर सन 1600 में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने भारत के साथ व्यापार करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी बनाई । 1608 में हैक्टर नामक एक जहाज भारत के लिए रवाना हुआ । इस जहाज के कैप्टेन का नाम होकिंस था । यह हेक्टर नामक जहाज भारत में आकर सूरत के बंदरगाह पर आकर रुका । उस समय सूरत भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में से एक था । और भारत में मुगल सम्राट जहांगीर का शासन था । हॉकिंस अपने साथ इंग्लैंड के बादसाह जेम्स प्रथम का एक पैगाम जहांगीर के नाम से लेकर आया था । जिसमे कंपनी को 15 वर्षों तक वह भारत में व्यापार करने के लिए अनुमति मांगी गई थी । होकिंस ने जहांगीर के राजदरबार में स्वयं को राजदूत के रूप में पेश किया । तथा घुटनों के बल झुककर बादशाह जहांगीर को सलाम किया । चूंकि वह इंग्लैंड के सम्राट का राजदूत बनकर आया था । इसलिए जहांगीर ने भारतीय रीति रिवाज के अनुसार अतिथि का विशेष स्वागत सत्कार किया । किंतु जहांगीर को क्या पता था कि जिस व्यक्ति को वह सम्मान दे रहे हैं एक दिन इसी के वंशज भारत में शासन करेंगे । और हमारे शाशकों तथा जनता को अपने सामने घुटने टिकवा कर मजबूर करेंग । उस समय पुर्तगाली कालीकट में अपना डेरा जमा चुके थे । होकिंस ने जहांगीर की उदारता तथा दयालुता का भरपूर लाभ उठा कर जहांगीर को पुर्तगालियों के खिलाफ भड़काया । और उसने जहांगीर से कुछ विशेष सुविधाएं तथा अधिकार ले लिए । उसने इस कृपा के बदले अपना एक सैनिक संगठन बनाकर पुर्तगालियों के जहाज को लूटा । तथा सूरत से पुर्तगालियों के व्यापार को भी ठप्प करने के प्रयास किए । सन् 1612 में एक छोटी सी लड़ाई के दौरान अंग्रेजो ने सूरत से पुर्तगालियों को भगा दिया । जहांगीर ने सबसे पहले अंग्रेजो को मसुलीपट्टनम में एक व्यापारिक कोठी बनाकर रहने की इजाजत दे दी । इसके बाद सन् 1613 में हॉकिंस ने जहांगीर से एक शाही फरमान जारी करवा लिया । जिससे सूरत में कंपनी को व्यापारिक कोठी बनाकर रहने की इजाजत मिल गई । इसके साथ ही जहांगीर ने यह भी कहा कि हमारे दरबार में इंग्लैंड का एक राजदूत रह सकता है । इसके बाद सन् 1615 में सर-थोमस-रो राजदूत बनकर भारत में आया । यह मुगल दरबार में 4 वर्षों तक रहा । अपने इस कार्यकाल में इसने मुगल साम्राज्य के विभिन्न भागों में व्यापारिक कोठी बनाकर रहने की अनुज्ञा ले ली । शीघ्र ही कंपनी ने आगरा, आहमदाबाद और भचौड में अपनी व्यापारिक कोठियां बना डाली । सन 1633 में अंग्रेजों ने अपना पहला कारखाना उड़ीसा में खोला । इसके बाद शाहजहां के शासनकाल में 1634 में अंग्रेजों ने शाहजहां से कह कर कलकत्ते से पुर्तगालियों को हटाकर स्वयं व्यापार करने की अनुमति ले ली । उस समय अंग्रेजों को हुबली के बंदरगाहों पर अपने जहाज लाने और ले जाने के लिए व्यापारिक चुंगी देनी पड़ती थी । किंतु शाहजहां की पुत्री का इलाज करने वाले एक अंग्रेज डॉक्टर ने इस चुंगी को क्षमा करवा लिया । सन् 1661 में इंग्लैंड के सम्राट चाल्स द्वतीयका विवाह पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरी के साथ हुआ । इसे विवाह में दहेज के रूप में मुंबई का टापू दिया गया । इस टापू को ईस्ट इंडिया कंपनी ने सम्राट से खरीदकर उस की किलेबंदी करवा दी । और अब अंग्रेजो ने सूरत के स्थान पर मुंबई को पश्चिमी तट की कोठियों का मुख्यालय बना दिया ।.............
                फ्रांस के फ्रांसीसी                    
सन् 1664 में ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह ही फ्रांस की द इंद ओरियंतल नामक कंपनी केरण के नेतृत्व में भारत में व्यापार करने के लिए आई । इसने सन् 1668 में अपनी फौज के बल पर अपनी पहली कोठी सूरत में बनाई । और सन् 1674 में पांडुचेरी में फोर्टलुई किले का निर्माण करवाया । 1740 तक इस कंपनी का प्रधान दूमास होता था । किंतु 1741 में इस कंपनी में गवर्नर डूप्ले की नियुक्ति हुई । डूप्ले को प्रथम फ्रांसीसी गवर्नर भी कहते हैं । डूप्ले यूरोप का ऐसा नागरिक था कि जिसके मन में यूरोपीय साम्राज्य को भारत में कायम रखने की इच्छा उत्पन्न हुई । डूप्ले को अंग्रेजों पर शंका थी कि उनकी निगाहें मुगलों के खजाने पर लगी है । उसका यह शक तब सही हुआ जब 1742 में कर्नल स्मिथ ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा को लूटने की गुपचुप योजना बनाकर यूरोप में भेजी थी । इस योजना में यह कहा गया था कि मुगल साम्राज्य सोने एवं चांदी के खजाने से लबालब भरा पड़ा है । इस समय उनके साम्राज्य की आपसी फूट ने उनकी सेना को बिखेर दिया है । यह अच्छा मौका है कि एक छोटे से हमले में ही इतना धन कमाया जा सकता है कि ब्राजील और पेरू की सोने की खाने भी मात खा जाएंगी । बंगाल के नवाब अली वर्दी खान के पास 3 करोड पोंड का खजाना है और उसकी सालाना आमदनी 20 लाख पोंड से कम नहीं है । इस समय वहां के नदी तथा बंदरगाहों के रास्ते खुले पड़े हैं । जहां से ही आसानी से हमला किया जा सकता है । अंग्रेज ऐसे ही अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए एक तरफ जुट गए । जिसमे खुद भारत के लोगों ने अंग्रेजों का साथ दिया । और आगे चलकर अपने पैरों में ही गुलामी की बेड़ियां पहन ली । 1717 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर एक गंभीर रोग से पीड़ित हो गए । वह विलियम हैमिल्टन की सहायता से रोगमुक्त हो गए । इसलिए प्रसन्न होकर उन्होंने 3 फरमानो द्वारा अंग्रेजों को अनेक सुविधाएं दे दी । 3000रू वार्षिक कर देने के बदले कंपनी को बंगाल में बिना कर दिए व्यापार करने का अधिकार मिल गया । कंपनी को कलकत्ता के आसपास के सहरों को किराए पर लेने की अनुमति मिल गई । इस प्रकार कंपनी को भारत में व्यापार करने को बढ़ावा मिला । अंग्रेजों ने अपनी पहली कोठी मछलीपट्टनम में बनाई तथा पहला कारखाना 1633 में उड़ीसा में खोला ।

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