Thursday, March 28, 2019

चाणक्य

चाणक्य का जन्म पाटलीपुत्र में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । चाणक्य बहुत ही बदसूरत ब्राह्मण थे । उनके पैर टेढ़े और आगे के दो दांत टूटे थे । बचपन में जब भी ११ साल के थे तो एक दिन उनके कुलगुरु ने उनकी मां से कहा कि आपका बालक बहुत होनहार है । ये बड़ा होकर एक महान राजा बनेगा । क्यूंकि इसके दो दांत बाहर निकल आये हैं । जो इसकी कुंडली में राजा बनने के संकेत दे रहे हैं । जब चाणक्य बाहर से खेलकर घर आये तो उसने देखा कि मां उदास बैठी है । चाणक्य ने मां से उदासी का कारण पुछा तो मां ने कुलगुरू द्वारा कही सारी बात चाणक्य को बता दी । और कहा बेटा राजा महाराजा कभी अपने माँ बाप का सम्मान नहीं करते हैं । उन्हें हमेशा प्रताड़ित करते हैं । चाणक्य ने तुरंत बिना कुछ कहे हुए एक पत्थर उठा कर अपने दांतो पर दें मारा जिससे चाणक्य के बाहर निकले हुए दोनों दांत टूट गए । और फिर यह कि कहा के मेरे इन दांतों की वजह से मां तुम दुखी हो तो मुझे ऐसे दांत नहीं चाहिए । जब चाणक्य १२ वर्ष के हो गए तो उनकी मां ने उनको तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए भेज दिया । तक्षशिला विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद चाणक्य वापस पाटिलपुत्र आ गए और वहीं पर नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षक हो गए । एक दिन नन्द वंश के राजा धनानंद ने पाटलिपुत्र के सभी ब्राह्मणों को भोजन के लिए निमंत्रण पत्र भेजा । नालंदा विश्वविद्यालय में सभी ब्राह्मण शिक्षकों के लिए निमंत्रण पत्र भेजा गया था । लेकिन चाणक्य का नाम निमंत्रण पत्र में नहीं था । चाणक्य के ब्राह्मण साथियों ने कहा कि चाणक्य तुम्हे चलना चाहिए । शायद महाराजा घनानन्द गलती से तुम्हे पत्र देना भूल गए हो । तो चाणक्य अपनो साथियों की बात मानकर घनानन्द के यहाँ दावत खाने चल देते हैं । और सभी के साथ ब्राह्मण की कतार में खाना खाने बैठ जाते हैं । जब सभी को खाना परोस दिया जाता है । तब घनानन्द ब्राह्मण की कतार मैं खाना खाने का आदेश देने के लिए आता है । ब्राह्मण की लाइन में उसे सबसे पहले चाणक्य दिखाई देते है । घनानन्द कहता है कि यह टेढ़ा मेढा क्रूप व्येक्ति कौन है । मेरे यहाँ इस वेवकूप को कौन लेकर आया है । अरे मेरे यहां आने से पहले ढाई फुटे शीशे में अपनी शकल तो देख लेता । तुझ जैसे कुरूप कलंकी पंडित को मेने निमंत्रण नहीं भेजा है । इस तरह से चाणक्य का अपमानित करने लगा । चाणक्य बिना खाना खाये थाली से खड़ा हो गया । और बोला । ऐ राजा घनानंद ! तूने आज भरे दरबार में सब ब्राम्हणो के सामने मुझे अपमानित करके अच्छा नहीं किया है । घनानंद ने कहा टेढ़े पैरों वाले बदसूरत कलंकी तू मेरा क्या करेगा । चाणक्य ने कहा कि सुन राजा घनानंद में सत्यवादी ब्राह्मण हूँ । मैं तेरे दरबार में सभी के सामने अपनी शिखा खोल कर कसम खाता हूँ । कि जब तक मैं तेरे इस नन्द वंश का विनाश नहीं कर दूंगा । तब तक अपनी शिखा को नहीं बांधूंगा । यह कहकर चाणक्य वहां से भाग गया । और मध्य प्रदेश के विध्यं के जंगल में आकर रहने लगा । एक दिन चाणक्य जंगल में एक बरगद के पेड़ के नीचे लेटे हुए थे । कि बरगद के पेड़ के नीचे जड़ के पास एक पत्थर रखा दिखाई दिया । चाणक्य ने सोचा इस पत्थर की वजह से बरगद के पेड़ की जड़ सही से विकसित नहीं हो पा रही है । मैं इसे हटा देता हूँ चाणक्य ने काफी मेहनत के बाद जैसे ही जड़ से पत्थर हटाया । कि उसे उस पत्थर के नीचे एक सोने के सिक्कों से भरा घड़ा मिला । चाणक्य ने उस घडे को वहां से निकालकर कहीं दूसरी जगह पर छिपा दिया । और फिर वहां आस पास रहने वाले लोगों से बरगद के पेड़ के बारे में पूछा । लोगो ने बताया के ५० साल पहले उस बरगद के पेड़ के नीचे ठग लुटेरे झोपड़ी बनाकर रहते थे । एक दिन रात में यहां के राजा ने रात में सोते समय उनकी झोंपड़ी जलावा दी । झोपडी में सब जिन्दा जल गए । वे बहुत बड़े लुटेरे थे । लेकिन फिर भी राजा के सिपाहियों को उनकी झोंपड़ी में कुछ नहीं मिला था । चाणक्य समझ गए कि उन ठगों ने ही सोने के सिक्के छिपाए होंगे । चाणक्य चुपचाप बिना कुछ कहे वहां से निकल गए । अब चाणक्य एक ऐसे आदमी को खोजने लगे । जिसे घनानन्द के सिंघासन पर बिठाया जा सके । एक दिन चाणक्य ने जंगल में काफी छोटे छोटे बच्चों को खेलते हुए देखा । चाणक्य ने देखा कि एक छोटा सा लड़का जिसका नाम पबता था वह राजा बना हुआ था । और दूसरा लड़का जिसका नाम चन्द्रगुप्त था । वह उसका मंत्री बना हुआ था । बाकि कुछ लडके सिपाही बने हुए थे। और कुछ लड़के चोर बने थे । जो लड़के सिपाही बने थे । वे चोर बने लड़कों को पकड़कर राजा के पास लाते हैं । राजा बना पबता नाम का लड़का मंत्री बने लड़के चंद्रगुप्त से कहता है कि मंत्री इन चोरों को अभी कालकोठरी में डाल दो । यह सब चाणक्य देख रहा था । चाणक्य तुरंत पबता और चन्द्रगुप्त के पिता को सौ सौ सोने के सिक्के देकर उन्हें खरीद लेता है । अगले ५ वर्ष तक चाणक्य उन्हें शिक्षा देता है । ५ वर्ष बाद चाणक्य दोनों की परीक्षा लेने की योजना बनाता है । चाणक्य पबता और चन्द्रगुप्त दोनों के गले में एक धागा बांध देता है । एक दिन जब चंद्रगुप्त सो रहा होता है । तो चाणक्य पबता से कहता है कि तुम्हे चन्द्रगुप्त के गले का धागा बिना खुले और बिना तोड़े वे लाना है । लेकिन चन्द्रगुप्त को पता नहीं चलना चाहिए । यह काम पबता से नहीं होता है । तो दूसरे दिन चाणक्य यही काम चन्द्रगुप्त को करने के लिए कहता है । तो चन्द्रगुप्त पबता की गर्दन काटकर उस धागे को ले आता है । अब चाणक्य उन छिपाए हुए कुछ सिक्को को बहार निकल कर अपनी एक फौज तैयार करते हैं । उस पूरी फौज के साथ चाणक्य और चन्द्रगुप्त सीधा घनानंद के महल पर हमला कर देते हैं । लेकिन वे दोनों बुरी तरह पराजित हो जाते हैं । फिर वे अपना भेष बदल कर वहां से भाग जाते हैं । कुछ दिन बाद फिर वे एक दिन भेष बदलकर जंगल में घूम रहे थे । तो उन्होंने देखा कि एक बालक जोर जोर से मां को पुकार रहा था कि माँ मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है । जल्दी से मेरे लिए खाना लेकर आओ । उसकी माँ कुछ ही देर में गरम गरम चावल लेकर पहुंच जाती है । भूखा बालक अपना हाथ जल्दी से बिच में गरम गरम चावलों में दाल देता है । तो उसकी उगलियाँ बुरी तरह जल जाती है । उसकी मां करती है । कि बेटा तू तो चाणक्य और चंद्रगुप्त जैसी हरकत कर रहा है । जिन्होंने बिना आसपास के गांव जीते सीधे घनानन्द के महल पर ही हमला कर दिया था । हम ले कर दिया था । तू भी वही कर रहा है आस पास के किनारे के चावल ठंडी किए बिना ही बीच में खा रहा है । यह सुनकर चाणक्य और चन्द्रगुप्त को अपनी गलती का एहसास होता है अब चाणक्य बचे हुए अपने सारे सिक्के निकालकर दोबारा से अपनी एक फौज बनाते है । और आस पास के गांवों को जीतना शुरू कर देते है धीरे धीरे वे घनानन्द के महल तक पहुंच जाते हैं और घनानन्द को मार कर उसके सिंहासन पर कब्ज़ा कर लेते हैं । चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्या को वहां का नया राजा बना देते हैं । अब चाणक्य चुपके से चन्द्रगुप्त के खाने में थोड़ा थोड़ा जहर डालना शुरू कर देते हैं ताकि कोई दुश्मन चन्द्रगुप्त को जहर खिला कर मारने की कोशिश करे तो चन्द्रगुप्त पर जहर का कोई असर न हो । लेकिन ये बात चन्द्रगुप्त की रानी को बिल्कुल भी पता नहीं थी । एक दिन चन्द्रगुप्त की रानी जिसको बच्चा होने वाला था । उसने चन्द्रगुप्त का खाना खा लिया । लेकिन तुरंत ही चंद्रगुप्त को पता चल गया कि अब रानी नहीं बचेगी । लेकिन चाणक्य ने उसके बच्चे को बचा तो लिया । लेकिन जहर के कारण उसके पुरे शारीर पर यह बिंदु हो गए । इसलिए चाणक्य ने उस बालक का नाम बिन्दुसार रखा । १० वर्ष की उम्र होते है चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने पुत्र बिंदुसार को राजा बना दिया । और खुद एक मंदिर में पुजारी बन गया । बिन्दुसार के राजा बनने के बाद चाणक्य के बहुत से दुश्मन तैयार हो गए । जिनमें एक सुबंधु नाम का व्यक्ति था । जो चाणक्य से बहुत ज्यादा नफरत करता था । वह चाणक्य को महल से भगाकर खुद मंत्री बनना चाहता था । प्रतिदिन वह चाणक्य की झूठी शिकायत बिन्दुसार से करता था । एक दिन उसने बिन्दुसार से कहा कि चाणक्य है तुम्हारी माँ का कातिल है । तो बिन्दुसार ने गुस्से में आकर चाणक्य को खरी खोटी सुनाई । और उसी समय महल छोड़ने का आदेश दिया चाणक्य अपना मंत्री पद सुबंधु को देकर उसी समय महल छोड़ कर जंगल में चले गए । लेकिन जब बिन्दुसार को सच्चाई का पता चला कि किन हालतों की वजह से उसकी माँ मरी थी तो बिन्दुसार ने मंत्री सुबंधु को जंगल से चाणक्य को माफ़ी मांग कर मनाकर लाने के लिए भेजा । लेकिन दुष्ट सुबंधु ने चालाकी से उस झोंपड़ी में आग लगा दी जिसमे चाणक्य सो रहे थे ।झोपड़ी जलने के बाद सुबंधु को अचानक एक बड़ा सा भारी बक्सा दिखा । उसमें ताला लगा था । सुबंधु ने सोचा कि चाणक्य ने इसमें धन रखा होगा । में इसको बिना राजा को बताये चुपके से ले जाता हूँ । वह बक्से को अपने घर ले गया । और ताला तोड़कर जैसे ही सुबंधु ने बक्सा खोला । तो देखा कि पूरा बक्सा पत्थरों से भरा था । और ऊपर परफ्यूम की एक छोटी सी कांच की शीशी रखी थी । सुबन्धू उसे खोलकर सूंघने लगा । तभी अचानक उसकी नजर बक्से में के सामने लिखी एक चेतावनी पर पड़ी । जिसमे लिखा था कि जो भी इस परफ्यूम को सूंघेगा उसे पूरी जिन्दगी संन्यासी बनकर जंगलों में रहना पड़ेगा । नहीं तो वह जो कुछ भी खाएगा या पियेगा तो वह उसके मुंह में जाते है जहर बन जायेगा । और मौत उसे गले लगा लेगी । सुबंधु ने तुरंत ही उस परफ्यूम को किसी दूसरे व्यक्ति पर आजमाया । सुबन्धु ने उस व्यक्ति को पहले परफ्यूम सुंघाया । फिर पानी पीने को कहा पानी पीते ही वह मर गया । शुबन्धू डर गया और पूरी जिंदगी संन्यासी बनकर जंगलों में बिताने के लिए चला गया ।

Sunday, March 17, 2019

मुहम्मद अली जिन्ना

वर्तमान समय में मोहम्मद अली जिन्ना को कौन नहीं जानता है । जिन्ना ही वह इन्सान है जिसने अखण्ड भारत के दो टुकड़े कराकर हिन्दू मुस्लिम दंगों मे लाखो लोगों का ख़ून चूस लिया था । मुहम्मद अली जिन्ना को पाकस्तान में "काइदे-आजम" यानि कि महान नेता और "बाबा-ए-कौम" यानि कि राष्ट्रपिता के नाम से जाना जाता है। जिस प्रकार महात्मा गांधी का भारत में स्थान है, वहीं स्थान ज़िन्ना का पाकिस्तान में है । जिस प्रकार भारतीय मुद्रा पर गांधी जी छिपे रहते है वैसे ही पाकिस्तानी मुद्रा पर मुहम्मद अली जिन्ना छिपा रहता है । मुहम्मद अली जिन्ना मुशलमान नहीं हिन्दू था । जिन्ना के पिता का नाम पूंजा भाईजी तथा माता का नाम मीठीबाई था जो गुज़ारत के काठियावाड जिले के रहने वाले लोहना जाति के हिन्दू थे । लोहना जाति के लोगों को वैश्य यानी बनिया कहते हैं और यह सब जानते हैं कि बनिया का काम तो व्यापार करना होता है । जिन्ना के पिता को अपने कारोबार में घाटा हुआ तो उसने मछली बेचने का काम शुरू कर दिया । लोहना जाति के लोगों ने जिन्ना के पिता से मछली बेचने का कारोबार नहीं करने के लिए काफी मना किया था क्योंकि लोहाना जाति के लोग मांस खाना तो दूर देखना भी पसंद नहीं करते हैं । लेकिन जिन्ना के पिता ने अपना मछली बेचने का कारोबार बंद नहीं किया तो संपूर्ण लोहाना जाति ने जिन्ना के पिता का तिरस्कार कर दिया । और उसे अपमानित करते थे ऐसी स्थिति में जिन्ना के पिता ने अपनी पत्नी को लेकर गुजरात से निकलना उचित समझा । वह गुजरात से निकलकर करांची पहुंच गये । और वहां पर जाकर उसने मुस्लिम धर्म कबूल करके अपना नया नाम पूजा भाई से बदलकर मोहम्मद जिन्ना रख लिया और वहां जिन्ना के पिता ने मुस्लिम बहुलता वाले क्षेत्रों में मछली का कारोबार शुरू कर दिया । उसका कारोबार दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा जल्द ही वह बहुत बड़ा मछली कारोबारी बन गया । उसका कारोबार भारत में ही नहीं लंदन तक फैल गया । मोहम्मद अली जिन्ना का जन्म 1876 में कराची में ही हुआ था । मोहम्मद अली जिन्ना का बचपन का नाम अली था । जब वह लंदन से वकालत की पढ़ाई करके भारत आये थे तो वह गांधी जी से मिला । उसने देखा के गांधी जी ने अपना पूरा नाम पिता के नाम के साथ जोड़कर मोहनदास करमचंद गांधी रख लिया है । तो जिन्ना ने भी अपना नाम अली के स्थान पर मोहम्मद अली जिन्ना रख लिया था ‌। यह बात सत्य है कि जिन्ना को इस्लाम धर्म की कोई जानकारी नहीं थी । जब वह लंदन से लौटा तो स्वयं को मुस्लिम कहलाना उसे पसंद नहीं था । जिन्ना को नवाज पढ़ना नहीं आता था जिन्ना सूअर का मांस खाता था । सूअर का गोश्त जिन्ना को बहुत पसंद था । मुस्लिम लोग सूअर से बहुत नफरत करते हैं सूअर शब्द मुंह से बोलने पर उनकी जवान खराब हो जाती है । वे सूअर को जानवर या खिंजीर कहकर पुकारते हैं सूअर का मांस खाना तो दूर मुशलमान सूअर को देखना भी पसंद नहीं करते हैं । 1906 में जिन्ना ने मुस्लिम लीग की स्थापना की । फिर वे मुस्लिम लीग विचारधारा के समर्थक होते चले गए । 1930 तक आते-आते भारत में आजादी की लड़ाई तेज हो गई थी । जिसका फायदा जिन्ना ने उठाया और मुसलमानों को भड़काना शुरू कर दिया । जिन्ना ने मुसलमानों से कहा कि हिंदू और मुसलमान कभी एक नहीं हो सकते हैं । क्योंकि दोनों के रीति-रिवाज और रहन-सहन अलग-अलग होते हैं । दोनों समुदाय एक दूसरे के घर खाना नहीं खाते हैं और नहीं शादी विवाह करते हैं । बस इसी बात को आधार बनाकर उसने मुसलमान जनता को पूरी तरह से बहका  दिया और अंग्रेजों के सामने भारत के दो टुकड़े करने की मांग रख दी । जिन्ना की इस मांग को महात्मा गांधी ने मानने से इनकार कर दिया । फिर उसने मुस्लिम जनता से हिंदुओं की खिलाफत करना शुरू कर दिया । मुस्लिम जनता जिन्ना की बात को मानने के लिए तैयार हो गई और मुसलमानों के लिए नए राष्ट्र की मांग करने लगी । अंग्रेजों ने भी जिन्ना को काफी समझाने की कोशिश की थी अलग रहने से कोई फायदा नहीं है साथ में मिलकर रहो । लेकिन सत्ता के लालच ने जिन्ना की आंखों पर पट्टी बांधी थी । जिन्ना को लगता था कि भारत में रह कर वह सत्ता के शिखर तक नहीं पहुंच सकते हैं उनके मन की महत्वकांक्षा तो किसी देश की मुद्रा पर हमेशा के लिए छपने की थी 
जिसमें वे सफल तो हुए लेकिन उनकी ये कहानी लाखों लोगों की ख़ून की स्याही से लिखी गई ।

कश्मीर की कहानी

सन् 1947 मे जब भारत और पाकिस्तान देश आजाद हुए थे । तब जम्मू और कश्मीर देश की सबसे बडी रियासत थी । इसके दो हिस्से थे । पहला भाग जम्मू औ...

भारत पाकिस्तान युद्ध