Friday, August 11, 2017

मैसूर के युद्ध

बंगाल पर अधिपत्य जमाने के पश्चात अंग्रेजो ने दक्षिण की ओर अपनी द्रष्टि डाली । दक्षिण भारत मे उस समय मराठे,हैदराबाद मे निजाम,और मैशूर मे हैदरअली ये तीन प्रमुख सत्ताएं थी । इन तीनो को एकजुट होने से रोकना अंग्रेजो ने अपना ध्वेय समझा । सबसे पहले अंग्रेजो ने निजाम को वेवकूफ बनाया । इन्होने निजाम से कहा कि मराठे और हैदर अली तुमस द्वेस रखते है और तुम्हारे राज्य को छीनना चाहते है यदि तुम चाहो तो हम इन दुश्मनो से तुम्हें बचा सकते है । निजाम अंग्रेजों की बातों मे आ गया । और अंग्रेजो के कहने पर हैदर अली तथा मराठों को अपना दुश्मन समझ बैठा । और अंग्रेजो के साथ मिलकर उन्हे ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गया । बस इसी दिन का ही तो अंग्रेजो को इंतजार था क्योंकि मंद बुद्धि निजाम को बहकाने मे उन्होंने सफलता प्राप्त कर ली थी । 1766 मैं हैदर अली
मराठी से एक छोटी सी लड़ाई में उलझा हुआ था । तभी ब्रिटिश गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्स ने इसका फायदा उठाया । और उसने तुरंत ही निजाम का समर्थन लेकर हैदर अली से 1767 में प्रथम मैसूर युद्ध छेड़ दिया । किन्तु हैदर अली एक बुद्धिमान व्यक्ति था । उसने तुरंत मराठों से संधि की । और स्थिर बुद्धि निजाम को अपनी तरफ मिलाया । निजाम ने तुरंत ही कर्नाटक पर हमला कर दिया । जो अंग्रेजों के नियंत्रण में था । किंतु 1768 में निजाम युद्ध से हट गया । और अकेले हैदर अली को अंग्रेजों का सामना करने के लिए छोड़ दिया । 1769 तक हैदर अली युद्ध करते हुए मद्रास किले तक पहुंच गया । अपनी पराजय से अंग्रेज बुरी तरह भयभीत हो गए । और उन्हें विवश होकर हैदर अली से मद्रास की संधि करनी पड़ी । संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेजों ने हैदर अली को आश्वासन दिया कि वह मैसूर पर किसी और राजा के आक्रमण के समय हैदर अली का साथ देंगे । किंतु 1770 में मराठा पेशवा माधवराव के आक्रमण के समय हैदर अली के अनुरोध करने पर भी अंग्रेजों ने उसका साथ नहीं दिया । अंग्रेजों के इस विश्वासघात से हैदर अली को अत्यधिक क्षोभ हुआ । जो द्वतीय कर्नाटक युद्ध का कारण बना । इसके बाद 19 मार्च सन 1779 मैं अंग्रेजों ने हैदर अली का समर्थन करने वाले फ्रांसीसियों की एक बस्ती माही पर अपना अधिकार कर लिया । जो हैदर अली के अधिकार क्षेत्र में आती थी । जिससे हैदर अली भड़क गया । और 1780 में उसने कर्नाटक में अंग्रेजों के अधिपत्य में आने वाले अर्काट पर आक्रमण कर उसे घेर लिया । अंग्रेजों ने गुस्से में आकर हैदर अली का समर्थन करने वाले महादजी सिंधिया और निजाम को भड़काकर अलग करने में सफलता पाई । औऱ 1780 मे द्वतीय मैशूर युद्ध छेड दिया । गुट के बिखर जाने पर भी हैदर अली के उत्साह में कोई भी कमी नहीं आई । वह डटकर अंग्रेजों का मुकाबला करता रहा । किंतु 1781 में सर आयरकूट में हैदर अली को पोर्टोनोवो में पराजित कर दिया । पराजय का उसे ऐसा गम लगा के 7 दिसंबर सन 1782 में दिल का दौरा पड़ने से 'बिरहा सम्राट' हैदर अली 'जुगनू' की मृत्यु हो गई । इसके बाद उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा । उसने अंग्रेजों का सामना पूरी ताकत के साथ किया । किंतु फिर भी उसे अपनी स्थिति दुर्बल होती दिख रही थी । तो उसने 1784 में अंग्रेजो के साथ मंगलोर की संधि कर ली । इस संधि के द्वारा दोनों पक्षों ने एक दूसरे के हडपे हुए भू-भाग वापस कर दिए । साथ ही टीपू ने अंग्रेज बंदियों को भी छोड़ दिया । संधि की शर्तों के अनुसार दोनों पक्षों में मित्रता हो गई और एक दूसरे के खिलाफ षड्यंत्र नहीं रचने का वचन देना पडा । 1790 में लॉर्ड कार्नवालिस ने टीपू का नाम मित्रों की सूची से हटा कर संधि की शर्तों का उल्लंघन किया । क्योंकि अंग्रेजों ने निजाम को एक चिट्ठी लिखकर यह कहा कि हम लोग टीपू से उस भू-भाग को छीनने में आपकी सहायता करेंगे जो आप की रियासत का एक अंग रह चुकी है । अंग्रेजों ने ऐसे विश्वासघात को देखकर टीपू के मन में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी । जो 1790 मे तृतीय मैसूर युद्ध का कारण बनी । टीपू ने ट्रावनकोट पर हमला कर उसे तहस-नहस कर दिया । अंग्रेजों ने तुरंत निजाम तथा मराठों को यह आश्वासन दिया कि युद्ध जीतने के बाद जो प्राप्त होगा उसे तीनों में बराबर-बराबर बांट लिया जाएगा । निजाम तथा मराठे टीपू से युद्ध करने को तैयार हो गए । तीन और से तीन सेनाएं टीपू पर हमला करने टूट पड़ी । टीपू ने इनका डटकर सामना किया । लेकिन कार्नवालिस ने अपनी सेना के बल पर टीपू की राजधानी रंगपट्टम को घेर लिया । अपनी राजधानी पर शस्त्रुओं का अधिकार हो जाने के कारण टीपू को विवश होकर 1792 में रंगपट्टम की संधि करनी पड़ी । जिसमें टीपू को अंग्रेजो के खिलाफ किसी भी प्रकार का षड्यंत्र न रचने का वचन देना पड़ा । और उसे अपने पुत्रों को बंधक के रूप में अंग्रेजों को सौंपना पड़ा । इसके साथ ही टीपू पर तीन करोड़ रुपए का क्षतिपूर्ति हर्जाना अदा करने का भार थोपा गया । इन उपायों को अंग्रेज, निजाम और मराठो ने आपस में बांट लिए । वेलेजली टीपू से नाराज था । क्योंकि उसे फ्रांसीसियों की सहायता मिल रही थी । ऐसे समय में टीपू ने अपने दूत काबुल, कुस्तुनतुनिया और फ्रांस में भेजकर भारत से अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने की योजना बनाकर संधि की शर्तों का उल्लंघन किया । जो चतुर्थ मैशूर युद्ध का एक कारण बनी । जिससे वेलेजली गुस्सा हो गया । और उसने 1799 में निजाम तथा मराठों को टीपू के राज्य का दोनो को आधा-आधा हिस्सा देने का वादा करके अपनी तरह मिला लिया । और टीपू से चौथा मैशूर युद्ध छेड दिया । तीन ओर से तीन सैनाऐं टीपू की सेना पर मधुमक्खियों की तरह भिनभिनाने लगे । 4 मई सन 1799 में अपनी राजधानी की रक्षा करते हुए टीपू वीरगति को प्राप्त हुआ । और मैसूर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया । टीपू के पुत्रों ने आत्मसमर्पण कर दिया । अंग्रेजों ने टीपू के राज्य को निजाम और मराठों को देने से इंकार कर दिया । और कृष्णराज को टीपू के सिंहासन पर बैठा दिया । जो मैशूर के उस पुराने राजा का वंशज था जिसे हैदर अली ने अपदस्थ करके गद्दी पर कब्जा किया था । टीपू को रंगपट्टम में दफनाकर वहीं पर उसका मकबरा बना दिया गया । टीपू ने पालक्काड का किला बनवाया था हैदर अली ने टीपू को 'मैसूर के टाइगर' की उपाधि दी थी । डॉक्टर ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने कई बार अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले टीपू सुल्तान को 'विश्व का रॉकेट अविष्कार' कहा है ।

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