Sunday, August 13, 2017

कंपनी राज

ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी सभी प्रतिद्वंदी कंपनियों को भारत से बाहर का रास्ता दिखा दिया । फिर उन्होंने बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा पर अपना अधिकार जताया । इसके बाद इन्होंने दक्षिणी रियासतों को अपने अधीन करने के बाद अवध वह मुगल राज्यों को छीना । इस प्रकार अंग्रेज भारत के सत्ताधीस बन गए । जिन रियासतों को अपने अधीन नहीं कर पाया उनसे युद्ध करके उनका वर्चस्व यानी सभी कुछ छीन लिया । इस प्रकार एक व्यापारी भारत की राजनीतिक कमजोरियों का लाभ उठाकर शहंशाह बन गए । सत्ता प्राप्त करने के बाद भी अंग्रेजों का मूल्य चरित्र वही एक दलाल का बना हुआ था । कंपनी द्वारा नियुक्त कर्मचारी अर्धशित्रत,अदूरदर्शी, बेईमान व धन के लालची थे । उनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ धन प्राप्त करना था । धन प्राप्त करने के लिए उचित और अनुचित तरीकों का प्रयोग उनके लिए गलत नहीं था । मुनाफा अर्जित करने के लिए लूटमार करना भी वे उचित मानते थे । इस तरह व्यापार एवं लूटमार के तरीकों से कंपनी शीघ्र ही मालामाल हो गई । इस कंपनी के सभी कर्मचारी भ्रष्ट,चरित्रहीन व घूंसखोर थे । उनका उद्देश्य अधिक से अधिक धन वसूलना था । इसके लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते थे । इस कंपनी ने कुछ कर्मचारी क्लर्क के रूम में भर्ती किए । जो व्यवहार में चालाकी चरित्र में मक्कारी तथा नीति में अनीति अपनाते थे । ऐसे ही कुछ कर्मचारियों ने फूहड नियम बनाए । जो उनके लिए सर्वोपरि थे और भारतीयों के लिए महत्वहीन और उनके वर्चस्व का हनन करने वाले थे । भारतीयों को अधिक पढ़े-लिखे होने पर भी ऊंचा ओहदा नहीं मिलता था । उन्हें सिर्फ सिपाही की नौकरी दी जाती थी । और पदोन्नति के सारे रास्ते बंद थे । ऊंचे-ऊंचे ओहदे अंग्रेजों के लिए सुरक्षित थे । भारतीयों और अंग्रेजो के वेतन में बड़ा अंतर था । अंग्रेज अफसर भारतीय सैनिकों को नफरत की निगाह से देखते थे । लड़ाई में जाने के लिए भारतीय सैनिकों को अगुवा किया जाता था । अंग्रेजों ने भारतीय व्यापारियों और कर्मचारियों के काम पर भी अंकुश लगा दिया था । और उन्होंने किसानों दस्तकारों तथा राजा-महाराजाओं को खूब लूटा । इसके साथ ही अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भूमि व्यवस्थाओं से किसान काफी परेशान थे । किसानों से इतना राजस्व कर वसूला जाता था कि उसे देने के बाद किसानों को खाने के लिए कुछ भी नहीं बचता था । और भी काफी कर्जदार होते चले गए । बक्सर के युद्ध के बाद क्लाइव ने बंगाल में दोहरा शासन प्रबंध लागू किया । जिसके द्वारा नवाब की सेना और कोष पर कंपनी का अधिकार रहता था । इसके अलावा शासन का संपूर्ण दायित्व नवाव पर रहता था । किंतु उसके पास न तो सैनिक सकती थी और नहीं धन । क्लाइव ने बंगाल में निजामत (देखरेख) का काम अपने हाथ में ले लिया था । उसने रजा खां को बंगाल में तथा सिताब खां को बिहार में दीवान नियुक्त किया । जिनका मुख्य कार्य राजस्व (भूमिकर) वसूलकर उसे कंपनी के कोष में जमा करना था । द्वैत शाशन के कारण बंगाल के कृषि, उद्योग तथा व्यापार नष्ट होते चले गए । साधारण जनता दरिद्रता और कंपनी के अत्याचारों से पीड़ित थी । ऐसी स्थिति में हाहाकार मच गया । तो ब्रिटिस सरकार ने 1772 मे रेग्यूलेटिंग एक्ट नामक कानून बनाकर उसे भारत मे पारित (चलाया) किया । इसके द्वारा द्वैध शासन पद्धति की कुप्रथा बंद करके गवर्नर की प्रथा शुरू कर दी गई । और ईष्ट इण्डिया कंपनी के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर नियुक्त किया गया ।

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