Monday, August 21, 2017

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसंबर सन् 1885 को मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी ए. ओ. ह्यूम

ने की । तथा  व्योमेश चंद्र बनर्जी

इसमें प्रथम अध्यक्ष नियुक्त किये गये  । दादाभाई नौरोजी

ने इंडियन नेशनल यूनियन पार्टी को कांग्रेस पार्टी नाम दिया । कांग्रेस में सबसे पहले स्वराज का लक्ष्य बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया था ।
            1907 में सूरत अधिवेशन में सभापति के लिए रासबिहारी बोस को चुना गया । जबकि गरम दल वाले बाल गंगाधर तिलक को सभापति बनाना चाहते थे । अतः कांग्रेसी नेताओं में आपस में वैचारिक मतभेद बढ़ने लगा । ऐसी स्थिति में मोतीलाल नेहरू

ने कांग्रेस से उग्रवादी गरम दल के नेताओं को प्रथक कर दिया । जो कांग्रेस में पहली फूट साबित हुई । कांग्रेस में फूट हो जाने से कांग्रेस दो गुटों में बट गई । पहले गुट को उग्रवादी या गरम दल नाम दिया गया । वहीं दूसरा गुट उदारवादी या  नरम दल के नाम से मशहूर हुआ । बाद मै प्रथम विश्व युद्ध छिडने के बाद 1916 में लखनऊ समझोते में दोनो दल फिर से एक हो गए । गरम दल के प्रमुख नेता लाला लालपति राय , बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल थे । जिन्है 'लाल-बाल-पाल'

के नाम से जाना जाता है । जबकि नरम दल के प्रमुख नेता दादा भाई नौरोजी,

गोपाल क्रष्ण गोखले,

फिरोजशाह मेहता

और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी

थे । जिन्हें उदारवादी कांग्रेसी नेताओ के नाम से जाना जाता है । नरम दल वाले नेता मोतीलाल नेहरु जैसे थे । जो अंग्रेजो के चापलूस थे । वह हमेशा यह सोचते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर भारत में गठबंधन सरकार बने । लेकिन गरम दल वाले नेता बाल गंगाधर तिलक जैसे महान क्रांतिकारी थे । वे अंग्रेजों के कट्टर विरोधी थे । वह पूर्ण स्वशासन की मांग कर रहे थे । उनका मानना था कि गठबंधन सरकार से तो गुलामी कई गुना अच्छी है । उग्रवादी गरम दल के नेता वंदे मातरम् गाते थे । वंदेमातरम से अंग्रेजो को चिढ़ होती थी । क्योंकि यह गीत भारतीयों के हृदय में देशभक्ति की भावना को भरता था । इसीलिए गरम दल के नेताओं को अंग्रेजो कठोर यातनाएं देने लगे । लाला लाजपत राय को 1 वर्ष के लिए और बाल गंगाधर तिलक को 6 वर्ष का निर्वासित जीवन व्यतीत करने के लिए बर्मा भेजा गया । जबकि नरम दल वाले नेता अंग्रेजों को प्रसन्न रखने और गरम दल वाले नेताओं को चिढ़ाने के लिए जन गण मन गाते थे । अंग्रेजों ने देखा कि जन गण मन की अपेक्षा वन्दे मातरम के समर्थक हजारों गुना ज्यादा हो चुके हैं । तो उन्होंने नरम दल वालों के साथ मिलकर एक हवा उड़ाई । कि मुसलमानों को वंदे मातरम नहीं गाना चाहिए क्योंकि इसमे मूर्तिपूजा है । जबकि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी हैं । यह बीज अंग्रेज़ो के कहने पर नेहरु जी ने बोया था । तो दोनों दलों में विवाद होने लगा । और दोनों दल इस बात के निर्णय के लिए गांधीजी के पास गए । गांधी जी खुद जन गण मन के पक्ष में नहीं थे । तो उन्होंने एक नया गीत दिया । विजयी विश्व तिरंगा प्यारा । लेकिन यह गीत भी नेहरु जी को नहीं जमा । बाद मे गांधी जी की मृत्यु के बाद जन गण मन को राष्ट्रगान बनाया गया । किंतु वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत इस डर से बनाया गया कि कहीं विद्रोह की स्थिति पैदा ना हो जाए । लेकिन सभा और प्रमुख सरकारी उत्सव में राष्ट्रगान को गाना अनिवार्य कर दिया गया । वहीं विधालयों में गांधी जी का पसंद किया हुआ विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा । गीत गाया जाने लगा ।

1786 में कांग्रेस का अधिवेशन कोलकाता में हुआ था । जिसमें दादाभाई नौरोजी अध्यक्ष चुने गए । दादाभाई नौरोजी प्रथम फारसी अध्यक्ष थे । 1887 है कांग्रेस का अधिवेशन मद्रास में हुआ था । जिसमें बदरुद्दीन तैयबजी जी को अध्यक्ष चुने गए । जो प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष थे । 1888 में कांग्रेस का अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ था । जिसमें जॉर्ज यूले

को अध्यक्ष चुना गया । जो प्रथम यूरोपीय अध्यक्ष थे । 1890 में कांग्रेस का अधिवेशन कोलकाता में हुआ था । जिसमें फिरोजशाह मेहता अध्यक्ष चुने गए । 1896 में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता में हुआ था । जिसमें रहीमतुल्ला सयानी

अध्यक्ष चुने गए । इस अधिवेशन में सर्वप्रथम राष्ट्रीय गीत कब गाया गया । 1895 में पुणे और 1902 में अहमदावाद अधिवेशन की अध्यक्षता सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने की थी । 1992 के बनारस अधिवेशन की अध्यक्षता गोपाल कृष्ण गोखले ने की थी । इस अधिवेशन में सर्वप्रथम स्वराज्य प्राप्ति हेतु संकल्प लिया गया । 1906 मे सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता रासबिहारी बोस ने की थी । इस अधिवेशन में सर्वप्रथम कांग्रेस में फूट हुई थी । 1909 मे लाहौर अधिवेशन में मदन मोहन मालवीय

अध्यक्ष चुने गए । इसे कांग्रेस का रजत जयंती अधिवेशन कहते हैं । 1910 में इलाहाबाद अधिवेशन की अध्यक्षता विलियम वैडरबर्न

ने की थी । यह दो बार अध्यक्षता करने वाला यूरोपीय नागरिक था । इसने 1889 में मुंबई अधिवेशन मे भी अध्यक्षता की थी ।1911 में कोलकाता अधिवेशन की अध्यक्षता बिशन नारायण धर

ने की थी । इस अधिवेशन में सर्वप्रथम राष्ट्रीय गान का गायन किया गया । 1914 में मद्रास अधिवेशन की अध्यक्षता भूपेंद्रनाथ बसु

ने की थी । इस अधिवेशन में पहली बार गवर्नर जनरल की उपस्थिति हुई ।


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