Saturday, August 19, 2017

1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

सर्वप्रथम भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 की क्रांति को वीर सावरकर ने भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा । इस आंदोलन का मुख्य कारण चर्बी वाला कारतूस था । सन 1857 में सैनिकों को एनफील्ड नामक राइफल दी गई थी । जिसमें भरे जाने वाले कारतूस गाय तथा सूअर की चर्बी से भारत मे बनते थे । जिन्हें बन्दूक मे भरने से पहले जिनके ऊपर लगे कागज के खोल को दांत से काटकर खोलना पडता था । सैनिकों को कारतूसों मे चर्बी होने की बात 1857 मे पता चली । तो सैनिकों ने अंग्रेजों से कहा कि मुसलमान लोग सूअर को छूना तो दूर वे उसका नाम भी नहीं लेते है वे सूअर को खिंजीर कहते है उनके धर्म के अनुसार सूअर कहने से उनकी जवान गंदी हो जाती है सूअर मनुष्यों की विष्टा खाने वाला शूद्र जाति के गंदे लोगों द्वारा पाला जाने वाला  जानवर है । इससे हिन्दु और मुस्लिम दोनों ही घ्रणा करते हैं । और आप लोग इनकी चर्बी का प्रयोग कारतूसों मे कर रहे है जिसे हम मुंह से काटकर खोलते है और गाय को हिंदू लोग लक्ष्मी का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हैं जिसका कत्ल करके कारतूस बनाकर गौ माता का ही अपितु ईश्वर का अपमान हो रहा है । किन्तु अंग्रेज़ों ने भारतीय सैनिकों को फटकार लगा दी । जिससे भारतीय सैनिक बौखला गए । और विद्रोह के लिए तैयार हो गए । इसके अलावा और कई कारण इस आंदोलन को भडकाने के लिए उत्तरदाई रहे हैं । राजनीतिक कारणों में डलहौजी की गोद निषेध प्रथा थी । जिसके द्वारा सतारा,संबलपुर,बघात,जेतपुरा,उदयपुर,नागपुर और झांसी आदि शहरों को जबरदस्ती छीनकर अंग्रेजी राज्य में मिलाया गया था । धार्मिक कारणों में इस आंदोलन को भड़काने का मुख्य कारण ईसाई धर्म का भारत में विशेष प्रचार करना था । अंग्रेजों मानते थे कि भारत पर हमारे अधिकार का मुख्य उद्देश्य संपूर्ण भारत को ईसाई बनानार ईसाई धर्म की पताका को यूरोप से एशिया तक फहराऐं । अंग्रेज़ कहते थे कि समस्त ब्रिटिश नागरिकों का यह कर्तभ्य है कि वे भारत के एक-एक नागरिक को ईसाई बनाने के महान काम में अपनी पूरी ताकत लगाऐं । अंग्रेजों ने भारतीय लोगों को गुमराह करने का ऐसा जाल बिछाया कि हजारों लोग इस जाल में फंस गए । अंग्रेजों ने हिंन्दुस्तान वासियों को प्रलोभन दिया कि जो हिन्दुस्तानी नागरिक  ईसाई धर्म स्वीकार करेगा उसे सरकारी नौकरी मिलेगी और साथ साथ उसकी उच्च पदों पर जल्दी जल्दी तरक्की होगी । इसके अलावा इस विद्रोह के फैलने के कुछ सामाजिक कारण भी हैं । अंग्रेजों को अपनी स्वेत चमड़ी पर गर्व था वे भारतीयों को काली चमड़ी कहकर उनका  उपहास करते थे । विलियम बैटिंग ने सती प्रथा और कन्या हत्या को बंद करा कर और डलहौजी ने विधवा पुनर्विवाह को मान्यता देकर रूढ़िवादी भारतीयों में असंतोष भर दिया । इसके अलावा डलहौजी ने पंडितो और गरीब किसानो से माफी तथा दान में मिली हुई जमीन को छीन लिया जिससे भारतीय जमींदार दरिद्र वह कंगाल हो गए । उनके मन में अंग्रेजो के प्रति असंतोष इसलिए व्याप्त हो गया क्योंकि वे स्थाई बंदोबस्त, रैयतवाड़ी व्यवस्था और मारवाड़ी व्यवस्था से परेशान होकर उनकी स्थिति दयनीय हो गई थी । अतः किसानों की आर्थिक तंगी का यह कारण भी विद्रोह का कारण बना । सन 1806 में लॉर्ड विलियम बैटिंग मद्रास में गवर्नर था इसने भारतीय सिपाहियों को मस्तक पर तिलक लगाने पगड़ी, कुंडल , गले मे माला और जनेऊ पहनने पर पाबंदी लगा दी थी । सन 1856 में सभी भारतीय सैनिकों ने समुद्र पार जाने से मना कर दिया जिससे वर्मा के रेजीडेंसी भंग हो गई । किंन्तु 1857 में लॉर्ड विलियम बैटिंग ने सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम बनाया । जिसके द्वारा सरकार जहां चाहेगी सैनिकों से काम कराएगी । यह कानून बनाया गया । जिससे भारतीय सैनिक असंतुष्ट हो गए । और विद्रोह करने के लिए तैयार हो गए । जो 1857 की क्रांति का एक कारण बना । 10 मई सन 1857 को मेरठ के सिपाहियों की बगावत से भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ । दूसरे दिन मुगल बादसाह के सेनापति बख्त खान ने दिल्ली के सिपाहियों से मिलकर दिल्ली पर अपना कब्जा करके मुगल बादशाह  बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का सुल्तान घोषित कर दिया । और संपूर्ण दिल्ली पर अपना कब्जा कर लिया । भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पनप रहा यह असंतोष स्वतंत्रता संग्राम के रूप में भड़क उठा । यह आंदोलन दावानल की तरह शीघ्र ही संपूर्ण देश में तितर-बितर हो गया । यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे बड़ा तथा पहला आंदोलन था । जो ब्रिटिश सरकार को भारत से उखाड़ फेंकने के लिए संपूर्ण देश में एक समान जागृत हुआ । दिल्ली के बाद इस आंदोलन की चिंगारी संपूर्ण देश में दावानल की तरह भडकने लगी । अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों से हथियार छीन कर उन्हें बंदी बना लिया । इस आंन्दोलन में भारी तादाद में लोगों ने भाग लिया । बिहार में इस आंदोलन का नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया । कानपुर में आंदोलनकारियों ने तात्या टोपे की मदद से नाना साहब को पेशवा घोषित कर दिया । और अजीमुल्ला उसका सलाहकार बना । झांसी में रानी लक्ष्मीबाई को शासक घोषित किया गया । लखनऊ में वाजिस अली के पुत्र बिरजिस कादिर को अवध का नवाब बनाया गया । और अपनी मां हजरत महल ने उसकी ओर से मौलावी अहमदुल्लाह के नेतृत्व में लखनऊ की रेजीडेंसी को घेर लिया । बरेली मै आंन्दोलन खान बहादुर ने किया । इलाहाबाद में लियाकत अली सेना लेकर अंग्रेजों पर टूट पड़ा । फैजाबाद में अहमदुल्लाह ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया । इस आंदोलन का प्रतीक चिन्ह कमल और चपाती था । यह आंदोलन लॉर्ड कैनिंग के समय होने वाला एक भयंकर आंन्दोलन था ।

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