Sunday, August 27, 2017

जालियांवाला बाग हत्याकांड

अमृतसर में जलियांवाला बाग एक छोटा सा पार्क है जो आज के वर्तमान समय में भी वहीं पर स्थत है । जैसा आज है वैसा ही 1919 के समय था । इस पार्क में एक ही दरवाजा था । और तीन और से मकानों से गिरा हुआ था । रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में प्रदर्शन करने वाले पंजाब के लोकप्रिय नेता सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों ने बिना किसी अपराध के गिरफ्तार करके काले पानी की सजा सुना दी थी । जिसके विरोध में लोगों ने एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला । जिसे अंग्रेजों ने काफी रोकने का प्रयास किया किंतु वह सफल नहीं हुए । तो जुलूस करने वाले लोगों ने गुस्से में आकर सरकारी इमारतों में आग लगा दी । अमृतसर की ऐसी स्थिति से घबराकर सरकार ने 10 अप्रैल 1919 को शहर का प्रशासन सैन्य अधिकारी जनरल डायर को सौंप दिया । जिसने सभा आयोजन एवं प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया । मगर यह सूचना जनता को पता नही चल पाई । 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने एक विरोध सभा का आयोजन किया । जिसमें लगभग 10 हजार लोग एकत्रित होकर अपने काम मे लगे हुए थे । तभी अचानक जनरल डायर अपने 90 सशक्त सैनिकों के साथ वहां आकर मुख्य द्वार को घेर लेता है । और लोगों को सूचित किए बिना सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दे देता है । सैनिक देखते ही देखते 1650 गोलियां लोगों के सीने में दाग देते है । सैकड़ों लोग अपनी जान बचाने के लिए भाग में स्थित कुए में जिंदा कूद जाते है । भारी हडकंप मच जाता है । इसमें लगभग 1 हजार लोग मारे  जाते हैं । और 2 हजार से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हो जाते है । ब्रिटिश सरकार जनरल डायर को पद से हटा देती है । किंतु उसकी निंदा नहीं करती है । बल्कि उसे ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करने वाला शेर मानकर उसे एक रत्न जडित तलवार भेंट करती है । इस दावानल कार्य की पूरा संसार  निंदा  करता है । डायर की क्रूरता भरी करतूत से अनेक अंग्रेजों की आत्मा तक कांप जाती है । भारतीय क्रांतिकारी उधम सिंह ने 13 अप्रैल 1940 को लंदन में जनरल डायर को गोली से मारकर इस हत्याकांड का बदला लेता है । उधम सिंह को 4 जून सन 1940 को इंग्लैंड में फांसी दे दी जाती

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